भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (NSSC) 2024

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (NSSC) 2024

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत आंतरिक सुरक्षा , भारत की आंतरिक सुरक्षा चुनौतियां और उनका प्रबंधन , भारत की रक्षा प्रणाली और कूटनीति के बीच संतुलन की चुनौतियाँ ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन , राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो , वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

  • हाल ही में, भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में 7वें राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन-2024 का उद्घाटन किया। 
  • इस सम्मेलन में भारत में उभरती राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए रोडमैप पर शीर्ष पुलिस अधिकारियों के नेतृत्व में चर्चा की गई। 
  • शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने इस बात पर भी चर्चा की कि स्वतंत्र भारत में आदिवासी समुदायों से संबंधित मुद्दों का “गैर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण” से अध्ययन कैसे किया जाए।

 

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (NSSC) 2024 की मुख्य विशेषताएँ : 

 

  • राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (NSSC) 2024 की परिकल्पना प्रधानमंत्री द्वारा DGP/IGSP सम्मेलन के दौरान की गई थी, जिसका उद्देश्य वरिष्ठ पुलिस नेतृत्व के बीच विचार-विमर्श के माध्यम से प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों का समाधान ढूंढना था।
  • इस सम्मेलन में प्रतिभागियों में विविधता देखने को मिली, जिसमें शीर्ष पुलिस नेतृत्व, अत्याधुनिक स्तर पर कार्य करने वाले युवा पुलिस अधिकारी और विशिष्ट क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे।
  • सम्मेलन के दौरान राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा विकसित एक नया डैशबोर्ड लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित पुलिस निदेशकों और महानिरीक्षकों के वार्षिक सम्मेलन के दौरान लिये गए निर्णयों के कार्यान्वयन में सहायता करना है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (NSSC) 2024 में जनजातीय मुद्दों पर गैर-पश्चिमी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, ताकि स्वदेशी आबादी के साथ सम्मान, समावेशन और सशक्तीकरण पर ज़ोर दिया जा सके।
  • इस सम्मेलन में विविध सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा के दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं का कट्टरपंथीकरण, विशेष रूप से “इस्लामी और खालिस्तानी कट्टरपंथ” पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया गया।
  • वर्तमान भारत में मादक पदार्थ और तस्करी देश की आंतरिक सुरक्षा में एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है, जो सामाजिक और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर रहे है।
  • सम्मेलन के दौरान गैर-प्रमुख बंदरगाहों और मछली पकड़ने के बंदरगाहों पर सुरक्षा, जो तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण जोखिम पैदा करते हैं, जैसे मुद्दे पर भी चर्चा की गई।
  • इस सम्मेलन में उभरते सुरक्षा खतरों और तकनीकी चुनौतियों पर भी विचार-विमर्श किया गया।

 

भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) की आवश्यकता क्यों है?

  • भारत को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि उसे बाहरी और आंतरिक खतरों का सामना करना पड़ता है। 
  • चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे और सैन्य असमानताओं के कारण बाहरी खतरे बढ़ रहे हैं। 
  • वैश्विक स्तर पर राजनीतिक अस्थिरता, जैसे यूक्रेन और गाजा में युद्ध, भारत की आर्थिक महत्वाकांक्षाओं को प्रभावित कर रहे हैं। 
  • क्वाड और ब्रिक्स जैसे गठबंधनों के माध्यम से रिश्तों को संतुलित करने के लिए एक सुसंगत राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस)आवश्यक है। 
  • आर्थिक मजबूती भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि विभिन्न मंत्रालय सीमित संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) भारत को अपने रक्षा और आर्थिक उद्देश्यों को प्राथमिकता देने और प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद करेगी।

 

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) के प्रमुख तत्व : 

राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस) में निम्नलिखित प्रमुख तत्व शामिल होने चाहिए – 

  1. रणनीतिक संसाधन आवंटन : एनएसएस को यह स्पष्ट करना चाहिए कि रक्षा, वित्त और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों का आवंटन कैसे किया जाएगा। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे संतुलित विकास और तत्परता सुनिश्चित हो सके।
  2. रक्षा और अर्थव्यवस्था का एकीकरण : एनएसएस को रक्षा जरूरतों को आर्थिक लक्ष्यों के साथ जोड़ना चाहिए। उदाहरण के लिए, रक्षा बजट पारदर्शी होना चाहिए और पनडुब्बी और जहाज निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए, जहां भारत चीन से काफी पीछे है।
  3. बहु-संरेखण विदेश नीति : एनएसएस को भारत की बहु-संरेखण रणनीति को औपचारिक रूप देना चाहिए, जिसमें क्वाड और ब्रिक्स जैसे समूहों के भीतर संबंधों को संतुलित करना शामिल है। यह रणनीति भारत को सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करते हुए चीन के साथ अपने व्यापार घाटे का प्रबंधन करने में मदद करती है।
  4. गोपनीयता : राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए रणनीति को गोपनीय रखा जाना चाहिए। कमजोरियों को उजागर करने से चीन जैसे अधिक शक्तिशाली पड़ोसियों के खिलाफ भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है।

 

अमेरिका और अन्य देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में परिभाषा :

 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका : अमेरिका राष्ट्रीय सुरक्षा को मूल्यों और राष्ट्रीय हितों के एक संघ के रूप में परिभाषित करता है। एनएसएस में “मूल्यों” का उल्लेख कई बार किया गया है, जिसमें अमेरिका की नेतृत्वकारी भूमिका पर जोर दिया गया है।
  • यूनाइटेड किंगडम : यूके की 2021 एकीकृत समीक्षा वैश्विक साझेदारी और सीमित सैन्य संसाधनों के बावजूद एक यूरोपीय शक्ति के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखने पर केंद्रित है।
  • फ्रांस : सन 2022 में, फ्रांस के एनएसएस ने यूक्रेन युद्ध के कारण परमाणु निवारण पर ध्यान केंद्रित किया, जिसका उद्देश्य यूरोपीय नेतृत्व को स्थापित करना था, हालांकि इसे सीमित सफलता मिली है।

भारत सरकार का जनजातीय समुदायों के प्रति गैर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण :

 

  • स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार ने जनजातीय समुदायों के प्रति गैर-औपनिवेशिक दृष्टिकोण अपनाया। 
  • आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को आदतन अपराधी अधिनियम, 1952 से बदल दिया गया, जिससे पूर्व में ‘आपराधिक’ माने जाने वाले समुदाय अब ‘अधिसूचित जनजातियां’ बन गए। 
  • राष्ट्रीय वन नीति, 1952 ने वनों के साथ जनजातीय समुदायों का परस्पर सहजीवी संबंधों को मान्यता दी है। 
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार को रोकने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान किया है। 
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 ने वन-निवासी समुदायों को भूमि पर स्वामित्व का अधिकार दिया। हालांकि, आदिवासी समुदायों से जुड़ा कलंक और औपनिवेशिक मानसिकता अभी भी चुनौतियां बनी हुई हैं, जिससे आदिवासी समुदायों की मुख्यधारा में समावेशित करने में बाधा उत्पन्न होती है।

 

गैर-अनुसूचित जनजातियों के सामने आनेवाली प्रमुख चुनौतियाँ : 

 

  • गैर-अनुसूचित जनजातियों को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें प्रमुख है विधायी संरक्षण की कमी। यह स्थिति उन्हें और अधिक असुरक्षित बनाती है, जिससे उनके अधिकारों का उल्लंघन होता है।

 

  1. विधायी संरक्षण की कमी : 

 

  • गैर-अनुसूचित जनजातियों के लिए पर्याप्त कानूनी ढांचा उपलब्ध नहीं है। इसके चलते वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर बने रहते हैं, और उनके लिए न्याय प्राप्त करना कठिन हो जाता है।

 

  1. जनजातीय समुदायों के खिलाफ बढ़ती हिंसा :

     

 

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि जनजातीय समुदायों के खिलाफ अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है। 2021 में 8,802 मामलों से बढ़कर 2022 में यह संख्या 10,064 तक पहुँच गई, जो कि 14.3% की वृद्धि को दर्शाती है।

 

  1. अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचारों के मामले में क्षेत्रीय विषमताएँ : 

 

  • मध्य प्रदेश (30.61%), राजस्थान (25.66%) और ओडिशा (7.94%) में अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ अत्याचारों के मामले सबसे अधिक देखे गए हैं। यह दर्शाता है कि कुछ राज्य विशेष रूप से ऐसे अपराधों के लिए अधिक संवेदनशील हैं, जिससे जनजातीय समुदायों की सुरक्षा को गंभीर खतरा है।
  • इन चुनौतियों के समाधान के लिए ठोस नीतियों और उसका प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है, ताकि गैर-अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और उन्हें सशक्त बनाया जा सके।

 

जनजातीय समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान : 

  1. ऐतिहासिक कलंक को संबोधित करना : जन जागरूकता अभियानों, शैक्षिक सुधारों और मीडिया के माध्यम से रूढ़ियों को चुनौती देना और आदिवासी समुदायों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना चाहिए। यह आवश्यक है कि आदिवासी समुदायों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता को बढ़ावा दिया जाए, जिससे समाज में उनके प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित हो सके।
  2. कानून प्रवर्तन सुदृढ़ीकरण या बढ़ावा देना : आदिवासी समुदायों के खिलाफ अपराधों को रोकने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए कानून प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। इसके तहत दोषसिद्धि दर को बढ़ाना और त्वरित अदालतों की स्थापना आवश्यक कदम हैं, ताकि पीड़ितों को त्वरित और प्रभावी न्याय मिल सके।
  3. वन अधिकार अधिनियम (FRA) का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाना : स्थानीय स्तर पर एफआरए के कार्यान्वयन को मजबूत करने के प्रयास किए जाने चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आदिवासी समुदायों को उनकी भूमि से अन्यायपूर्ण तरीके से बेदखल नहीं किया जाए। भूमि स्वामित्व सत्यापन, वन प्रबंधन में सामुदायिक भागीदारी और विस्थापित जनजातीय समुदायों को कानूनी सहायता जैसी व्यवस्थाओं को बढ़ाया जाना चाहिए।
  4. जनजातीय समुदायों की संस्कृति, भाषा और परंपराओं को बढ़ावा और संरक्षण देना : जनजातीय समुदायों की संस्कृति, भाषा और परंपराओं को बढ़ावा देने और संरक्षित करने वाली पहलों का समर्थन करना चाहिए, जिससे उनके गौरव और पहचान को बढ़ावा मिलता है। त्योहारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन इसमें सहायक हो सकता है।
  5. राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना : स्थानीय शासन और निर्णय लेने वाले निकायों में जनजातीय समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना जरूरी है। इसके लिए लोकसभा (अनुच्छेद 330), राज्य विधानसभाओं (अनुच्छेद 332) और पंचायतों (अनुच्छेद 243) में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण और संविधान की पांचवीं अनुसूची का उचित कार्यान्वयन आवश्यक है। इन उपायों के माध्यम से हम जनजातीय समुदायों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं, जिससे उनके अधिकारों और गरिमा की रक्षा हो सके।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।  

Download plutus ias current affairs eng med 27th Sep 2024

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (NSSC) 2024 का मुख्य उद्देश्य क्या है और इसमें कौन सा प्रमुख विषय शामिल है?

A. आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और जलवायु परिवर्तन पर विमर्श करना।

B. साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करना और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों पर चर्चा करना।

C. अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुदृढ़ करना और जनसंख्या नियंत्रण करना।

D. पर्यावरण संरक्षण के उपायों पर विचार करना और कृषि विकास को बढ़ावा देना।  

उत्तर: B. साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करना और राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों पर चर्चा करना।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. हाल ही में संपन्न भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन 2024 के संदर्भ में, यह चर्चा कीजिए कि भारत को चीन द्वारा प्रस्तुत आर्थिक और रक्षा चुनौतियों का समाधान किस प्रकार करना चाहिए? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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