भारत में पवन ऊर्जा का उन्नयन : ऊर्जा सुरक्षा से सतत विकास तक

भारत में पवन ऊर्जा का उन्नयन : ऊर्जा सुरक्षा से सतत विकास तक

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में नवीकरणीय ऊर्जा की भूमिका, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ पवन ऊर्जा, पवन टरबाइन, राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE), मद्रास उच्च न्यायालय, नवीकरणीय ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), पंचामृत, शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

 

  • तमिलनाडु, जो पवन ऊर्जा उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य रहा है, ने हाल ही में “पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए पुनर्शक्तिकरण, नवीनीकरण और जीवन विस्तार नीति – 2024” पेश किया है। 
  • यह नीति पुरानी पवन टर्बाइनों के आधुनिकीकरण और उनकी दक्षता बढ़ाने पर केंद्रित है। 
  • पवन ऊर्जा उत्पादकों ने तमिलनाडु के इस नीति का विरोध करते हुए एक ऐसे ढांचे की मांग कर रहे हैं, जो पवन ऊर्जा उत्पादन को बेहतर तरीके से बढ़ावा दे सके। 
  • इसके विरोध में, पवन ऊर्जा उत्पादकों ने मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका दायर की, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के इस नीति के कार्यान्वयन पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है।

 

पवन ऊर्जा के प्रमुख लाभ : 

 

  • नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए “ राष्ट्रीय पुनर्शक्ति और परिचालन अवधि विस्तार नीति-2023 ” की शुरुआत की थी। पवन ऊर्जा के कई लाभ हैं, जो इसे स्थिर और संधारणीय ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत बनाते हैं।
  • अक्षय और नवीकरणीय ऊर्जा : पवन ऊर्जा प्राकृतिक रूप से पुनः भरती है, अर्थात यह अक्षय और नवीकरणीय ऊर्जा के प्रमुख स्त्रोत के रूप में जीवाश्म ईंधन के विपरीत संधारणीय होती है। जैसे डेनमार्क अपनी आधी बिजली पवन ऊर्जा से प्राप्त करता है, जिससे उसे निरंतर और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित होती है।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी : पवन टर्बाइन बिना CO₂ उत्सर्जित किए बिजली उत्पन्न करते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है। उदाहरण स्वरूप, 2021 में अमेरिकी पवन ऊर्जा ने 189 मिलियन मीट्रिक टन CO₂ उत्सर्जन को रोका, जो 41 मिलियन कारों के सड़कों से हटाने के बराबर है।
  • स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और ऊर्जा स्वतंत्रता : पवन ऊर्जा आयातित ईंधन पर निर्भरता कम करती है, जिससे ऊर्जा स्वतंत्रता बढ़ती है और स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • रोजगार सृजन में सहायक होना : पवन ऊर्जा परियोजनाओं से निर्माण, स्थापना, रखरखाव और संचालन के क्षेत्र में अनेक प्रकार के रोजगार सृजित होते हैं। भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु में, इस क्षेत्र ने हजारों रोजगार अवसर प्रदान किए हैं।
  • पुनर्शक्तिकरण करना : पुराने, कम क्षमता वाले टर्बाइनों को उच्च क्षमता वाले टर्बाइनों से बदलने से उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, 2 मेगावाट टर्बाइन में 6.5 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन होता है, जबकि आधुनिक 2.5 मेगावाट टर्बाइन से 8 मिलियन यूनिट बिजली उत्पन्न होती है।
  • नवीनीकरण के माध्यम से कार्यक्षमता में सुधार करना : पुराने टर्बाइनों के घटकों जैसे ब्लेड और गियरबॉक्स को उन्नत करना और उनकी ऊंचाई बढ़ाना, जिससे बिना पूरी तरह से बदलाव के उनकी कार्यक्षमता में सुधार किया जा सकता है।
  • परिचालन जीवन का विस्तार करना : पुराने टर्बाइनों की कार्यशीलता और सुरक्षा को बढ़ाकर उनका परिचालन जीवन बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार, पवन ऊर्जा न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि यह आर्थिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।

 

भारत और तमिलनाडु में पवन ऊर्जा क्षमता :  

 

  1. राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) के अनुसार भारत में पवन ऊर्जा की कुल क्षमता 1,163.86 गीगावाट है, जो इसे वैश्विक स्तर पर प्रमुख पवन ऊर्जा उत्पादक देशों में शामिल करता है। 
  2. हालांकि, भारत अपनी पवन ऊर्जा क्षमता का केवल 6.5% उपयोग कर रहा है। 
  3. तमिलनाडु, 10,603.5 मेगावाट स्थापित क्षमता के साथ, पवन ऊर्जा उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है और देश की ऊर्जा आपूर्ति में अहम योगदान दे रहा है। 
  4. इस राज्य में लगभग 20,000 पवन टर्बाइन हैं, जिनमें से आधे 1 मेगावाट से कम क्षमता वाले हैं, जो आधुनिक टर्बाइनों की तुलना में कम प्रभावी हैं। 
  5. भारत 2024 तक पवन ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता में चौथे स्थान पर रहेगा। इसके वर्ष 2025-30 तक पवन ऊर्जा उत्पादन की लागत ताप विद्युत उत्पादन की तुलना में प्रतिस्पर्धी होने की उम्मीद है, जिससे भारत में पवन ऊर्जा की वृद्धि को और भी बढ़ावा मिलेगा।

 

भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र की चुनौतियाँ और उद्योग जगत द्वारा विरोध करने का प्रमुख कारण : 

 

भारत में पवन ऊर्जा क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. भूमि अधिग्रहण में देरी और भूमि की कमी : पवन ऊर्जा संयंत्रों के लिए भूमि अधिग्रहण एक जटिल और समय-साध्य प्रक्रिया है, जो परियोजना के क्रियान्वयन में देरी और लागत में वृद्धि का कारण बनती है। 2.5 मेगावाट जैसे बड़े टर्बाइनों के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है, जो अक्सर मौजूदा पवन फार्मों में उपलब्ध नहीं होती। इस कारण अपग्रेड करने में मुश्किलें आती हैं।
  2. बुनियादी ढांचे के निर्माण में देरी होना : ट्रांसमिशन नेटवर्क और सब-स्टेशनों के निर्माण में देरी हो रही है। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के अरलवैमोझी क्षेत्र में छह साल से नए सब-स्टेशनों का निर्माण रुका हुआ है, जिससे ऊर्जा उत्पादन में बाधा उत्पन्न हो रही है।
  3. बैंकिंग सुविधाओं का अभाव और वित्तीय समस्याएँ : भारत में पवन ऊर्जा नीति के अनुसार, पुनः संचालित टर्बाइनों को नई परियोजनाओं के रूप में माना जाता है। वर्ष 2018 के बाद स्थापित पवन टर्बाइनों के लिए बैंकिंग की सुविधा नहीं मिलती है। इसका असर इन परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता पर पड़ता है, क्योंकि अतिरिक्त ऊर्जा को भविष्य के लिए भंडारण नहीं किया जा सकता है।
  4. मौसम की अनिश्चितता : पवन ऊर्जा उत्पादन मौसम पर निर्भर करता है, जो मानसून और अन्य खराब मौसम स्थितियों के दौरान अस्थिर और अप्रत्याशित हो सकता है।
  5. अपर्याप्त ट्रांसमिशन और ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर : भारत का ग्रिड पवन ऊर्जा के बड़े पैमाने पर एकीकरण के लिए तैयार नहीं है। उदाहरण के तौर पर, गुजरात और तमिलनाडु में पवन फार्मों को ग्रिड से जोड़ने वाली सीमित ट्रांसमिशन लाइनों के कारण बिजली कटौती की समस्या उत्पन्न होती है।
  6. अद्यतन नीतियों का अभाव : पुरानी नीतियाँ नई तकनीकों और वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होतीं हैं। पवन ऊर्जा नीति में पुराने टर्बाइनों को शामिल न करने के कारण निवेशकों ने इस नीति का विरोध किया है।
  7. सटीक पवन मानचित्रण की कमी असंगति : उच्च गुणवत्ता वाले पवन संसाधनों की कमी और सटीक पवन मानचित्रण की कमी के कारण कई क्षेत्रों में पवन फार्मों का प्रदर्शन उम्मीद से कम हुआ है। 
  8. शहरीकरण और पारिस्थितिकी तंत्र की चिंता : बढ़ते शहरीकरण और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर पवन ऊर्जा फार्मों के असर के कारण खासकर पक्षियों और वन्यजीवों के संरक्षण को लेकर इन परियोजनाओं का विरोध किया जा रहा है। इन समस्याओं के कारण पवन ऊर्जा क्षेत्र में निवेशकों और उद्योग जगत का विरोध बढ़ रहा है, जो इन बाधाओं को दूर करने के लिए सुधार की मांग कर रहे हैं।

 

भारत का नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य : 

 

भारत ने COP-26 (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय) सम्मेलन में ग्लासगो में अपने जलवायु लक्ष्यों को लेकर ‘ पाँच प्रमुख संकल्प ’ या ‘ पंचामृत ’ प्रस्तुत किए हैं। इनमें शामिल हैं:

  1. 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना : भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है।  
  2. ऊर्जा आवश्यकताओं के 50% का नवीकरणीय स्रोत से पूरा करना : भारत 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का आधा हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त करने का संकल्प लिया है।  
  3. कार्बन उत्सर्जन को कम करना : भारत का उद्देश्य 2030 तक अपने कुल कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी करना है।  
  4. कार्बन तीव्रता में 45% कमी लाना : वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता में 45% तक घटाना है।  
  5. शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना : भारत का लक्ष्य वर्ष 2070 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता में शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना है।

 

समाधान और आगे की राह :

 

 

  • व्यापक और लाभकारी नीति : पवन ऊर्जा क्षेत्र में दीर्घकालिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक व्यावसायिक रूप से लाभकारी और क्षेत्र के अनुकूल नीति अपनाई जानी चाहिए।  
  • भूमि उपयोग दक्षता को बढ़ावा देना : पवन फार्मों को कृषि या चरागाह भूमि के साथ साझा किया जा सकता है, जिससे दोहरे उपयोग की संभावना होती है। इससे किसानों को पवन टर्बाइनों के लिए भूमि पट्टे के माध्यम से अतिरिक्त आय प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। उदाहरण स्वरूप, अमेरिका के आयोवा में कई किसान अपनी ज़मीन का कुछ हिस्सा पवन टर्बाइनों के लिए पट्टे पर देते हैं, जिससे उनकी कृषि आय में वृद्धि होती है।  
  • पवन फार्मों का तीव्र गति से निर्माण और बिजली की मांग के अनुसार विस्तार करना : पवन फार्मों का निर्माण तीव्र गति से किया जाना चाहिए और उनकी क्षमता को स्थानीय बिजली की मांग के अनुसार बढ़ाना चाहिए। ब्रिटेन में हाल के वर्षों में अपतटीय पवन ऊर्जा संयंत्रों का तेजी से विस्तार इसका एक उदाहरण है।  
  • हाइब्रिड नवीकरणीय परियोजनाओं को बढ़ावा देना : पवन-सौर हाइब्रिड प्रणालियाँ कम हवा वाले समय में भी निरंतर ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करती हैं। ये प्रणालियाँ भूमि उपयोग को अधिकतम करने और ग्रिड की विश्वसनीयता में सुधार करने में भी सहायक हो सकती हैं। इन उपायों के माध्यम से, भारत न केवल अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को हासिल करेगा, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता को भी सुनिश्चित करेगा।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू। 

 

plutus ias current affairs HINDI 13th Nov 2024 pdf

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. पंचामृत के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। 

  1. पंचामृत भारत सरकार द्वारा शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रारंभ किया गया एक पहल है।
  2. पंचामृत के अंतर्गत भारत ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
  3. पंचामृत के तहत भारत केवल पवन ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने की योजना बना रहा है।
  4. पंचामृत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए पांच प्रमुख उपायों को शामिल किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A . केवल 1, 2 और 4

B. केवल 2, 3 और 4

C. इनमें से कोई नहीं।

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – A 

व्याख्या :
पंचामृत भारत सरकार का शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक रणनीतिक योजना है। इसमें पाँच प्रमुख उपायों को शामिल किया गया है, जिसके तहत भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना केवल पवन ऊर्जा तक सीमित नहीं है।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. पवन ऊर्जा भारत के वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन इसके लिए किन तकनीकी, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है?  तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक 15 )

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