19 Dec कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 और भारत में राजनीतिक दल
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , भारतीय संविधान , राजनीतिक दलों में POSH लागू करने की आवश्यकता , भारत में महिला सुरक्षा से संबंधित पहल, उसके निहितार्थ और मुख्य चुनौतियाँ ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्दे, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, विशाखा दिशा-निर्देश, सर्वोच्च न्यायालय, जनहित याचिका , दबाव समूह ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ( Prevention of Sexual Harassment Act- POSH अधिनियम ) की लागू होने की प्रक्रिया पर एक जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई की है।
- भारत में यह मामला विशेष रूप से भारतीय राजनीतिक संगठनों की संरचना को देखते हुए अस्पष्ट बना हुआ है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने POSH अधिनियम के समान प्रभावी कार्यान्वयन के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।
- इसे भारत में महिला सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
क्या है कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ?
- कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (Prevention of Sexual Harassment Act- POSH अधिनियम ), जिसे भारत सरकार ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की समस्या से निपटने और सुरक्षित एवं अनुकूल कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू किया था, महिलाओं सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा से संबंधित एक महत्वपूर्ण पहल है।
- इस अधिनियम की उत्पत्ति 1997 में विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ऐतिहासिक निर्णय से हुई, जिसमें महिलाओं को यौन – उत्पीड़न से बचाने के लिए विशाखा दिशा-निर्देश तैयार किए गए थे।
- ये दिशा-निर्देश भारतीय संविधान के सिद्धांतों (जैसे अनुच्छेद 15, जो लिंग के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करता है) और अंतर्राष्ट्रीय संधियों (जैसे CEDAW, जिसे भारत ने 1993 में अनुमोदित किया था) पर आधारित हैं, जो इस अधिनियम के कानूनी आधार के रूप में कार्य करते हैं।
- इस अधिनियम में यौन उत्पीड़न की परिभाषा विस्तृत रूप से दी गई है, जिसमें अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन प्रस्ताव, यौन अनुग्रह के लिए अनुरोध, यौन टिप्पणी, पोर्नोग्राफी का प्रदर्शन और किसी भी अन्य यौन उत्पीड़नकारी व्यवहार को शामिल किया गया है, चाहे वह शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक हो।
- इस अधिनियम में कार्यस्थल की परिभाषा भी व्यापक है और इसमें सरकार द्वारा स्थापित या वित्तपोषित सार्वजनिक क्षेत्र के संगठन, निजी क्षेत्र के संगठन, और वे स्थान भी शामिल हैं जहाँ कर्मचारियों को रोजगार के दौरान जाना पड़ता है।
- POSH अधिनियम की धारा 3(1) के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी महिला को किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना न करना पड़े।
POSH अधिनियम के प्रमुख प्रावधान :
- आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन करना आवश्यक : इस अधिनियम के तहत नियोक्ताओं को यौन उत्पीड़न की शिकायतों को प्राप्त करने और उनका समाधान करने के लिये 10 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रत्येक कार्यस्थल पर एक ICC का गठन करना आवश्यक है।
- रोकथाम और निषेध : यह अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने और उसे निषिद्ध करने के लिए नियोक्ताओं पर कानूनी जिम्मेदारी डालता है।
- साक्ष्य एकत्र करने की शक्ति प्रदान करना : शिकायत समिति को सिविल न्यायालयों के समान साक्ष्य एकत्र करने का अधिकार दिया गया है, जिससे वे मामले की जांच कर सकें।
- छोटे संगठनों में शिकायतों के समाधान से संबंधित एक स्थानीय समिति के गठन का प्रावधान होना : यदि किसी संगठन में 10 से कम कर्मचारी हैं, या विशेष परिस्थितियों में आंतरिक समिति का गठन संभव नहीं है, तो ज़िलाधिकारी द्वारा एक स्थानीय समिति (LC) का गठन किया जाता है, जो शिकायतों का समाधान करती है।
- नियोक्ताओं की जिम्मेदारी : इस अधिनियम के तहत नियोक्ताओं को कार्यस्थल पर जागरूकता अभियान चलाने, सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने और POSH अधिनियम के बारे में जानकारी प्रदर्शित करने का कर्तव्य होता है।
- दंड का प्रावधान होना : यदि कोई नियोक्ता POSH अधिनियम के नियमों का पालन नहीं करता है, तो उसे जुर्माना और व्यवसाय लाइसेंस रद्द करने जैसी सजा दी जा सकती है।
- अपील की प्रक्रिया : यदि कोई व्यक्ति ICC के फैसले से असंतुष्ट है, तो वह अपनी अपील औद्योगिक न्यायाधिकरण या श्रम न्यायालय में कर सकता है।
- संबंधित पक्षों को शिकायत से संबंधित उचित अवसर देने की विस्तृत प्रक्रिया का निर्धारण किया जाना : इस अधिनियम में एक विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिसमें शिकायत दर्ज करने, जांच करने और सभी संबंधित पक्षों को उचित अवसर देने की व्यवस्था है।
भारत में POSH अधिनियम के तहत राजनीतिक दलों को लाना क्यों है जरूरी ?
- महिला सांसदों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ना : 2016 में किए गए अंतर-संसदीय संघ (IPU) सर्वेक्षण से यह सामने आया कि वैश्विक स्तर पर 82% महिला सांसदों को मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिसमें लैंगिक भेदभावपूर्ण टिप्पणियाँ और धमकियाँ शामिल हैं। वहीं, अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में 40% महिला सांसद यौन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं।
- सुरक्षित कार्य वातावरण प्रदान करने की आवश्यकता : महिला सांसदों की बढ़ती संख्या के बावजूद, लोकसभा में उनकी सीटों का केवल 14.4% और राज्य विधानसभाओं में 10% से भी कम हिस्सा है, जो संरचनात्मक बाधाओं को दर्शाता है। राजनीतिक दलों में सुरक्षा सुनिश्चित करने से महिलाओं को और अधिक प्रतिनिधित्व और उनके नेतृत्व की भूमिका में वृद्धि हो सकती है।
- कानूनी और संवैधानिक आवश्यकता : POSH अधिनियम में “कार्यस्थल” और “कर्मचारी” की विस्तृत परिभाषाओं के तहत स्वयंसेवक, पार्टी कार्यकर्ता और क्षेत्रीय कार्यकर्ता भी आ सकते हैं, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होती है। इसके अलावा, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 समानता और भेदभाव से मुक्ति की गारंटी देते हैं।
- आंतरिक शिकायत प्रणालियों की कमी होना : राजनीतिक दलों में अक्सर प्रभावी और उचित शिकायत निवारण तंत्र का अभाव होता है। इसके कारण उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्टिंग में कमी आती है। आंतरिक समितियों में बाहरी सदस्यों को शामिल करना या POSH अधिनियम द्वारा निर्धारित निष्पक्षता मानकों को पूरा करना अनिवार्य नहीं होता, जिससे शिकायतों के निपटान में पारदर्शिता की कमी रहती है।
- चुनावी और संस्थागत सुधार को सुनिश्चित करने में मदद मिलना : POSH अधिनियम के तहत राजनीतिक दलों को शामिल करने से चुनाव आयोग को पार्टी संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने, प्रभावशाली संस्थाओं में आंतरिक लोकतंत्र और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना : भारत को स्वीडन और नॉर्वे जैसे देशों से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिन्होंने लिंग-संवेदनशील राजनीतिक प्रथाओं को अनिवार्य किया है। उदाहरण के लिए – वर्ष 2017 में यूके संसद में स्थापित स्वतंत्र शिकायत और शिकायत नीति (Independent Complaints and Grievance Policy- (ICGP) का उद्देश्य संसद में यौन उत्पीड़न से निपटना है।
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के संदर्भ में न्यायमूर्ति वर्मा समिति की मुख्य सिफारिशें :
- वर्ष 2012 में दिल्ली सामूहिक बलात्कार मामले के बाद महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा करने के लिए न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित कई महत्वपूर्ण सिफारिशें दी थी। जिनमें निम्नलिखित सिफारिशें शामिल है –
- घरेलू कामकाजी महिलाओं को शामिल करना : इस समिति ने यह सुझाव दिया कि घरेलू कामकाजी महिलाओं को भी POSH अधिनियम के तहत सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए, ताकि वे यौन उत्पीड़न से बच सकें।
- नियोक्ता को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को अन्य कानूनी उपायों के साथ-साथ मुआवज़ा देने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना : न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने यह अनुशंसा की कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को न केवल कानूनी उपायों के तहत बल्कि मुआवजा भी प्रदान किया जाना चाहिए, और इसके लिए नियोक्ता को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
- यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिए एक रोज़गार न्यायाधिकरण का गठन किया जाना : आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) के अलावा, समिति ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों के समाधान के लिए एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव रखा, ताकि अधिक निष्पक्ष और विस्तृत निर्णय लिया जा सके।
भारत में POSH अधिनियम के अनुप्रयोग में राजनीतिक दलों के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ :
- कार्यस्थल की पहचान करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण होना : राजनीतिक दलों में अस्थायी कार्यकर्ताओं की नियुक्ति होती है, जिनका कोई स्थिर कार्यस्थल या उच्च अधिकारियों के साथ सीधा संबंध नहीं होता, जिससे कार्यस्थल की पहचान करना और ICC की स्थापना करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव होना : राजनीतिक दलों में आमतौर पर यौन उत्पीड़न जैसे मामलों का प्रबंधन उनके स्वयं के आंतरिक ढांचे के तहत किया जाता है, क्योंकि POSH अधिनियम के अनुप्रयोग के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।
- भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) की भूमिका : संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में स्पष्ट अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन POSH जैसे कानूनों के मामलों में इसकी भूमिका अभी भी अस्पष्ट है।
- विधिक उदाहरण : केरल उच्च न्यायालय ने संवैधानिक अधिकार अनुसंधान एवं वकालत केंद्र बनाम केरल राज्य (2022) मामले में फैसला सुनाया कि राजनीतिक दलों का अपने सदस्यों के साथ नियोक्ता-कर्मचारी संबंध नहीं होता है और इसलिये वे ICC के लिये बाध्य नहीं हैं। यह निर्णय राजनीतिक दलों में कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों के लागू करने में जटिलताओं को उजागर करता है।
राजनीतिक दलों से संबंधित अन्य मुद्दे :
- राजनीतिक दलों को RTI अधिनियम के दायरे में लाना : वर्ष 2013 में केन्द्रीय सूचना आयोग (CIC) द्वारा राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकरण घोषित किया गया था, लेकिन अधिकांश दल इसका विरोध करते हैं। इसके कारण लोकतांत्रिक जवाबदेही कमजोर होती है, और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता की कमी होती है।
- आयकर अनुपालन की कमी : आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A के तहत राजनीतिक दलों को करों से छूट प्राप्त है, यदि वे अपने वित्तीय विवरणों को सही तरीके से प्रस्तुत करते हैं। हालांकि, कई दल इन विवरणों में पारदर्शिता नहीं रखते, जिससे उस पर वित्तीय दुरुपयोग के आरोप लगते रहते हैं।
आगे की राह :
- विधायी संशोधन की आवश्यकता : POSH अधिनियम में आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए ताकि राजनीतिक दलों को इसके दायरे में स्पष्ट रूप से लाया जा सके। इसके साथ ही, विशेषकर पार्टी संरचनाओं के संदर्भ में “कार्यस्थल” और “नियोक्ता” से संबंधित अस्पष्टताओं को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
- स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता : भारत में POSH अधिनियम के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजनीतिक दलों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है। यदि छोटे संगठनों (जिनमें 10 से अधिक सदस्य हों) को आंतरिक समितियां गठित करने का आदेश दिया जा सकता है, तो राजनीतिक दलों को इस दायरे से बाहर रखने का कोई औचित्य नहीं है।
- आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना अनिवार्य करना : राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) की स्थापना अनिवार्य बनानी चाहिए। इससे POSH अधिनियम का सही अनुपालन सुनिश्चित होगा और एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जा सकेगा।
नियमित रूप से प्रशिक्षण और संवेदनशीलता कार्यक्रम आयोजित कर यौन उत्पीड़न के मामलों में लोगों में जागरूकता बढ़ाना : राजनीतिक दलों को यौन उत्पीड़न के मामलों और ICC की कार्यप्रणाली पर सदस्यों को शिक्षित करने के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षण और संवेदनशीलता कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए, ताकि इस विषय पर जागरूकता बढ़े और प्रभावी कदम उठाए जा सकें। - महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित एक समर्पित न्यायाधिकरण की स्थापना करना : वर्मा समिति की सिफारिश के अनुरूप, राजनीतिक दलों में उत्पीड़न की शिकायतों के निपटारे के लिए एक समर्पित न्यायाधिकरण की स्थापना की जानी चाहिए। इससे महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और समावेशी राजनीतिक वातावरण सुनिश्चित किया जा सकेगा, साथ ही जवाबदेही भी बढ़ेगी और निवारण समय पर होगा।
- भारत निर्वाचन आयोग को कार्यस्थल सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की निगरानी करने और इन्हें लागू करने के लिए सक्षम बनाने की आवश्यकता : भारत निर्वाचन आयोग को कार्यस्थल सुरक्षा मानदंडों के अनुपालन की निगरानी करने और इन्हें लागू करने के लिए सक्षम बनाना चाहिए। इसके साथ ही, राजनीतिक दलों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।
निष्कर्ष :
- भारत में राजनीतिक दलों में POSH अधिनियम को लागू करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के विचार-विमर्श से यह सिद्ध होता है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा से संबंधित सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त कानूनी ढांचा का निर्माण करना अत्यंत आवश्यक है। राजनीतिक दलों की सामाजिक और राजनीतिक भूमिका को देखते हुए, उन्हें महिलाओं के उत्पीड़न से सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना चाहिए। इस कदम से न केवल राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली में सुधार होगा, बल्कि यह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली यौन हिंसा और महिलाओं के लिए एक सुरक्षित कार्यस्थल एवं उनसे संबंधित सुरक्षा के मानकों को भी प्रभावित करेगा।
स्त्रोत – द हिन्दू।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, भारत सरकार द्वारा कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से बचाव के लिए लागू किया गया है।
- विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले में, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं के यौन उत्पीड़न से बचने के लिए दिशा-निर्देश दिए थे, जो POSH अधिनियम के कानूनी आधार के रूप में कार्य करते हैं।
- POSH अधिनियम केवल सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों पर लागू होता है।
- POSH अधिनियम की धारा 3(1) के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी महिला को किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना न करना पड़े।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 4
B. केवल 2 , 3 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – A
व्याख्या :
- POSH अधिनियम, 2013, महिलाओं को कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। अतः कथन 1 सही है।
- विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले में, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने महिलाओं के यौन उत्पीड़न से बचने के लिए दिशा-निर्देश दिए थे, जो POSH अधिनियम के कानूनी आधार के रूप में कार्य करते हैं। अतः कथन 2 सही है।
- POSH अधिनियम केवल सरकारी संगठनों पर लागू नहीं है, यह निजी क्षेत्र और उन स्थानों पर भी लागू होता है जहाँ कर्मचारियों को काम के दौरान जाना होता है। अतः कथन 3 गलत है।
- POSH अधिनियम के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि कार्यस्थल पर किसी महिला को यौन उत्पीड़न का सामना न करना पड़े। अतः कथन 4 सही है। इस प्रकार विकल्प A सही उत्तर है।
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. देश में POSH अधिनियम और अन्य विधिक उपबंधों के होने के बावजूद भी महिलाओं के प्रति यौन-उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि हो रही है। इस संकट से निपटने के लिए आप कौन से नवाचारी उपाय सुझाएंगे? POSH अधिनियम की भूमिका और इसके प्रभावी कार्यान्वयन पर विचार करते हुए यह विश्लेषित कीजिए किक्या राजनीतिक दलों को इसके दायरे में लाया जाना चाहिए? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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