सर्वोच्च न्यायालय की चिंता : सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी का लोकतंत्र पर असर

सर्वोच्च न्यायालय की चिंता : सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी का लोकतंत्र पर असर

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , सूचना का अधिकार, अर्ध-न्यायिक निकाय, भारत में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 , डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 , केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) , सर्वोच्च न्यायालय , RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 , वैधानिक निकाय , विपक्ष का नेता ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI अधिनियम, 2005) के तहत सूचना आयुक्तों (IC) की नियुक्ति में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा हो रही निरंतर देरी पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी होने के कारण भारत में नागरिकों को अपने सूचना अधिकार का सही तरीके से उपयोग करने में कठिनाई होती है, साथ ही कई मामलों में सुनवाई भी लंबित रहती है।

 

भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 से संबंधित मुख्य चिंताएँ : 

 

  1. सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी : भारत में वर्ष 2024 तक केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) में सूचना आयुक्त (IC) के 8 पद रिक्त थे। वहीं 23,000 अपीलें लंबित हैं, जिससे नागरिकों को सूचना प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  2. राज्यों में सूचना आयोग का निष्क्रिय होना : भारत में कुछ राज्यों में सूचना आयोग वर्ष 2020 से निष्क्रिय हो गए हैं, जबकि कुछ राज्य RTI अधिनियम के तहत याचिकाएँ स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
  3. प्रथम अपील की प्रक्रिया : लोक सूचना प्राधिकारियों (PIO) से असंतुष्ट नागरिक अक्सर प्रथम अपील के लिए नामित अपीलीय प्राधिकारी के पास जाते हैं।
  4. विभिन्न राज्यों में अधीनस्थ नियमों में भिन्नता का होना : राज्यों में RTI अधिनियम का क्रियान्वयन अलग-अलग नियमों के कारण भिन्न होता है। वहीं कुछ राज्यों में ऑनलाइन पोर्टल की कमी या पंजीकरण में असंगतता के कारण प्रक्रिया जटिल हो जाती है।
  5. निष्पक्षता और पारदर्शिता का अभाव : सूचना आयुक्तों के पद पर नियुक्त अधिकांश लोग पूर्व नौकरशाह होते हैं, जिससे निर्णय प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता पर प्रश्न उठते रहते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अंजलि भारद्वाज एवं अन्य बनाम भारत संघ (2019) मामले में विविध पृष्ठभूमि से लोगों की नियुक्ति की आवश्यकता पर बल दिया था।
  6. सार्वजनिक हित में व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिककरण करना : RTI अधिनियम के तहत सरकार को सार्वजनिक हित में व्यक्तिगत डेटा को सार्वजनिक करने की अनुमति दी गई है। वर्ष 2023 में पारित डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 द्वारा इसे प्रतिबंधित किया गया, जिससे लोक प्राधिकरणों की जवाबदेही पर असर पड़ सकता है।
  7. एकतरफा संशोधन का अधिकार होना : RTI (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत केंद्र सरकार को सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन का निर्धारण करने का एकमात्र अधिकार दिया गया, जिससे उनकी स्वायत्तता पर प्रश्नचिह्न उठने लगे हैं।

 

भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 से संबंधित मुख्य तथ्य : 

 

  1. उद्देश्य : इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सरकारी प्राधिकरणों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देना और पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को बढ़ावा देना है।
  2. उत्पत्ति : भारत में RTI अधिनियम की उत्पत्ति 1980 के दशक में राजस्थान में शुरू हुए आंदोलन से हुई है, जहाँ ग्रामीणों ने जवाबदेही और अभिलेखों तक पहुँच की माँग की थी।
  3. भारत में RTI अधिनियम की धारा 8(2) के तहत प्रमुख प्रावधान : जब सार्वजनिक हित सूचना की गोपनीयता से अधिक महत्त्वपूर्ण हो, तब सूचना का प्रकटीकरण करना आवश्यक होता है। 
  4. भारत में RTI अधिनियम की धारा 22 के तहत प्रमुख प्रावधान : भारत में RTI अधिनियम की धारा 22 को अन्य कानूनों से ऊपर प्राथमिकता दी जाती है।
  5. छूट : आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA), 1923 : नौकरशाहों को आधिकारिक दस्तावेज़ों की गोपनीयता बनाए रखने की अनुमति देता है। अन्य कानूनों: जैसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, RTI अधिनियम के तहत सूचना को प्रतिबंधित किया जा सकता हैं।
  6. संशोधन : सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 : सूचना आयुक्तों का कार्यकाल अब केंद्र सरकार द्वारा तय किया जाता है, और वेतन एवं सेवा शर्तें भी केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।

 

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) क्या है ?

 

 

  1. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) एक स्वतंत्र निकाय है, जिसे सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित किया गया है।
  2. इसका उद्देश्य नागरिकों के सूचना के अधिकार को प्रभावी रूप से लागू करना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।
  3. केंद्रीय सूचना आयोग की स्थापना RTI अधिनियम, 2005 के तहत की गई थी। यह एक संवैधानिक निकाय नहीं है, बल्कि यह एक वैधानिक निकाय है।
  4. आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और आवश्यकतानुसार 10 या उससे कम केंद्रीय सूचना आयुक्त होते हैं।
  5. सूचना आयुक्तों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिशों पर की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री (अध्यक्ष), लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।

पात्रता और छूट :

  • ऐसे व्यक्ति जिनका विधि, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, समाज सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता या शासन में अनुभव हो।
  • सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति सांसद, विधायक नहीं हो सकते और उन्हें कोई लाभ का पद नहीं होना चाहिए।
  • उन्हें किसी राजनीतिक दल या व्यवसाय से कोई जुड़ाव नहीं होना चाहिए।
  • पुनर्नियुक्ति का प्रावधान नहीं है।

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) की शक्तियाँ :

  • गवाहों को बुलाना, दस्तावेजों का निरीक्षण करना, सार्वजनिक अभिलेखों की मांग करना, और जांच के लिए समन जारी करना।

केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का कार्य : 

  1. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) का प्रमुख कार्य RTI अधिनियम, 2005 के तहत नागरिकों के सूचना अधिकार की रक्षा और उसका प्रभावी क्रियान्वयन करना है। 
  2. यह केंद्रीय सरकार, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और अन्य सरकारी संस्थाओं से जुड़ी अपीलों से संबंधित समस्याओं का समाधान करता है।

 

समाधान की राह :

 

 

  1. नियुक्तियों की प्रक्रिया को तेज करने की जरूरत : सूचना आयोगों में रिक्तियों को जल्दी भरने के लिए नियुक्तियों की प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए, ताकि RTI के प्रभावी कार्यान्वयन में कोई बाधा न आए।
  2. नियुक्तियों के लिए चयन मानदंडों को व्यापक बनाने की आवश्यकता : उच्चतम न्यायालय की सिफारिशों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल करने के लिए चयन मानदंडों को व्यापक बनाना चाहिए।
  3. सार्वजनिक धन के प्रबंधन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए विस्तारित कवरेज की जरूरत : सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), खेल निकायों और सहकारी समितियों को RTI अधिनियम के दायरे में लाना चाहिए, ताकि सार्वजनिक धन के प्रबंधन में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
  4. डिजिटल एकीकरण के तहत एकीकृत RTI पोर्टल को अपनाने के लिए प्रेरित किए जाने की जरूरत : भारत के विभिन्न राज्यों में RTI आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए सभी डाकघरों को RTI आवेदन स्वीकार करने के लिए सक्षम किया जाए। राज्यों को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) द्वारा डिज़ाइन किए गए एकीकृत RTI पोर्टल को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए।
  5. सार्वजनिक प्राधिकरणों को जवाबदेह और पारदर्शी बनाने की जरूरत : सार्वजनिक प्राधिकरणों को RTI याचिकाओं को सही तरीके से संभालने के लिए अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाना चाहिए।

 

स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना आयुक्तों (IC) की नियुक्ति में देरी पर किस कारण गंभीर आपत्ति व्यक्त की है?

  1. भारत में इससे नागरिकों को सूचना प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
  2. इससे भारत के विभिन्न राज्यों में कई मामलों में सुनवाई लंबित रहती है।
  3. भारत में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी का नागरिकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  4. इससे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1 और 2 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – A

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

 

Q.1. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में हो रही देरी पर व्यक्त की गई चिंता और सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI अधिनियम, 2005) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए उठाए गए समाधान की दिशा में किए जाने वाले आवश्यक सुधारों को रेखांकित करते हुए  RTI अधिनियम से संबंधित प्रमुख चिंताओं और इसके तहत होने वाली प्रक्रियाओं की जटिलताओं का विश्लेषण करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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