04 Feb लैंगिक बजट (Gender Budgeting) 2025 – 26
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 1 के अंतर्गत ‘ केंद्रीय बजट 2025-26 , सामाजिक न्याय , महिलाओं से संबंधित मुद्दे , बजट के माध्यम से लैंगिक समानता की ओर बढ़ना ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत में लैंगिक बजट 2025-26 , जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 , मिशन शक्ति , महिला एवं बाल विकास मंत्रालय , सतत विकास लक्ष्य (SDG) – 5 , प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण ’ खण्ड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2025 को केंद्रीय बजट 2025-26 प्रस्तुत किया।
- इस बजट में भारत में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए लैंगिक बजट (Gender Budgeting) को प्राथमिकता देते हुए इसे प्रमुखता से बढ़ाया गया है।
- इस वर्ष कुल केंद्रीय बजट का 8.86% हिस्सा महिलाओं और लड़कियों के कल्याण के लिए निर्धारित किया गया है, जो कि पिछले वित्त वर्ष 2024-25 के 6.8% की तुलना में स्पष्ट रूप से अधिक है।
- इस बजट में विशेष रूप से महिलाओं के कल्याण के लिए ₹4.49 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष के ₹3.27 लाख करोड़ से 37.25% की वृद्धि को दर्शाता है।
लैंगिक बजट 2025-26 की प्रमुख विशेषताएँ :
- कुल लैंगिक बजट आवंटन : ₹4.49 लाख करोड़ (37.25% की वृद्धि)
- केंद्रीय बजट में लैंगिक बजट का हिस्सा : 8.86% (2024-25 में 6.8%)
- रिपोर्टिंग मंत्रालयों/विभागों की संख्या : 49 (2024-25 में 38)
- लैंगिक बजट रिपोर्ट करने वाले केंद्रशासित प्रदेश : 5
- लैंगिक बजट आवंटन में वृद्धि होना : वित्त वर्ष 2025-26 के लिए लैंगिक बजट ₹4.49 लाख करोड़ निर्धारित किया गया है, जो पिछले वर्ष के ₹3.27 लाख करोड़ से 37.5% अधिक है। इस बजट का कुल केंद्रीय बजट में हिस्सा 8.86% है।
- महिला कल्याण और साक्षरता को बढ़ावा देना : GBS 2025-26 में महिला शिक्षा, आर्थिक साक्षरता और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए योजनाएँ बनाई गई हैं। 49 मंत्रालयों को लैंगिक-विशिष्ट जानकारी प्रदान की गई है, जिससे लैंगिक समानता को प्रोत्साहन मिलेगा।
- लैंगिक बजट का वर्गीकरण करना : लैंगिक बजट को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है, जिससे इसकी प्रभावशीलता और कार्यान्वयन की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है।
- विभिन्न मंत्रालयों की व्यापक भागीदारी को सुनिश्चित करना : इस बार का बजट, जेंडर-रिस्पॉन्सिव बजटिंग (Gender-Responsive Budgeting, GRB) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें न केवल आवंटनों में वृद्धि की गई है, बल्कि विभिन्न मंत्रालयों की भी अधिक व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की गई है, जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में सहायक होगी।
- केन्द्र सरकार द्वारा महिलाओं के समग्र कल्याण और विकास को प्राथमिकता देना : लैंगिकता (Gender) उन सामाजिक विशेषताओं को संदर्भित करती है जो महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों और लड़कों से जुड़ी होती हैं, जबकि जैविक भेद (Sex) शारीरिक विशेषताओं से संबंधित है, जो गुणसूत्रों और प्रजनन अंगों पर आधारित होती है। इस विस्तार से यह स्पष्ट है कि सरकार ने महिलाओं के विकास और समग्र कल्याण को प्राथमिकता दी है, जो आगामी वर्षों में सकारात्मक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव डाल सकता है।
भारत में जेंडर बजटिंग :
- जेंडर बजटिंग एक ऐसा उपकरण है, जो विभिन्न लैंगिक पहचानों आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नीतियों का निर्माण और संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित करता है।
- यह महिलाओं और पुरुषों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सरकारी योजनाओं में संतुलित आवंटन सुनिश्चित करता है।
भारत में जेंडर बजटिंग की पृष्ठभूमि :
- भारत में जेंडर बजटिंग की शुरूआत लैंगिक समानता की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता 1979 में CEDAW (महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों का उन्मूलन) के अनुमोदन और उसकी स्वीकृति से शुरू हुई थी।
- भारत में जेंडर बजटिंग की शुरूआत वित्तीय वर्ष 2005-06 में पहली बार जेंडर बजट स्टेटमेंट पेश करने से किया गया था। तब से यह हर साल बजट में शामिल किया जाता है, जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के प्रति सरकार की निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- जेंडर बजटिंग मिशन शक्ति योजना के तहत आती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत 2021 में मिशन शक्ति पहल शुरू की गई, जो महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संबल (महिलाओं की सुरक्षा) और सामर्थ्य (कौशल विकास) जैसे उप-योजनाओं के माध्यम से कार्य करती है।
आवश्यकता : जेंडर बजटिंग केवल एक वित्तीय उपाय भर नहीं है, बल्कि यह लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए एक नैतिक आवश्यकता भी है। वर्ष 2024 की जेंडर गैप रिपोर्ट के अनुसार, भारत 146 देशों में से 129वें स्थान पर है, जो भारत में लैंगिक समानता में सुधार की आवश्यकता को स्पष्ट करता है।
महत्त्व : यह लैंगिक आधार पर होने वाले सभी प्रकार के भेदभाव और शोषण को संबोधित करने के साथ – ही – साथ सतत विकास लक्ष्य 5 (वैश्विक लैंगिक समानता) को भी समर्थन तथा बढ़ावा देता है और महिला-विशिष्ट कानूनी ढाँचों जैसे कि आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 2013 और कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन में मदद करता है।
कार्यान्वयन मंत्रालय : इसका कार्यान्वयन केंद्रीय स्तर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) तथा राज्य स्तर पर महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण, वित्त और योजना विभाग के द्वारा जबकि जिला स्तर पर महिला सशक्तिकरण केंद्र (HEW) द्वारा किया जाता है।
भारत में जेंडर बजटिंग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ :
- लैंगिक संवेदनशील योजनाओं के लिए धन आवंटन की प्रक्रिया में अस्पष्टता होना : भारत में लैंगिक संवेदनशील योजनाओं के लिए धन आवंटन की प्रक्रिया में अस्पष्टता के कारण अक्सर विसंगतियाँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरणस्वरूप, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, महिलाओं के योगदान को सही तरीके से रिपोर्ट नहीं किया जाता है। इसी तरह, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) में महिलाओं के लिए 100% आवंटन का दावा किया जाता है, लेकिन वास्तविकता में केवल 23% महिलाओं को ही घर दिए जाते हैं।
- जेंडर बजट के निधियों का कुछ प्रमुख मंत्रालयों में ही संकेंद्रण होना : भारत में लगभग 90% जेंडर बजट कुछ विशेष मंत्रालयों जैसे MGNREGS, PMAY-G और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) में ही केंद्रित है, जिससे अन्य क्षेत्रों में इसका प्रभाव सीमित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप यह महिला सशक्तिकरण के लिए आवश्यक विविध पहलुओं को नजरअंदाज करता है।
- सरकार द्वारा संचालित विभिन्न प्रकार की दीर्घकालिक योजनाओं से प्रभवित होना : सरकार द्वारा संचालित विभिन्न प्रकार की दीर्घकालिक योजनाओं, जैसे आयुष्मान भारत और आवास योजना का जेंडर बजट में ही समावेश करने से यह तात्कालिक महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों के लिए धन के हस्तांतरण में कमी और रुकावट की स्थिति उत्पन्न करता है। इससे भारत में महिलाओं के लिए त्वरित सुधार की योजना प्रभावित होती है।
- अपर्याप्त निगरानी तंत्र और जेंडर विशिष्ट डेटा के अभाव के कारण जेंडर बजट के प्रभाव का सही मूल्यांकन की कमी होना : भारत में अपर्याप्त निगरानी तंत्र और जेंडर विशिष्ट डेटा के अभाव के कारण जेंडर बजट के प्रभाव का सही आकलन करना कठिन हो जाता है। इससे जेंडर बजट से संबंधित योजनाओं की प्रभावशीलता और आवश्यकता का मूल्यांकन सही तरीके से नहीं हो पाता है।
- देश में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी होना : भारत में जेंडर आधारित बजट हमेशा राजनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप नहीं होता है, जिससे योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न होती है, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के बीच बेहतर सहयोग और निगरानी तंत्र की आवश्यकता पर बल दिया है, ताकि जेंडर बजटिंग की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सके।
समाधान / आगे की राह :
- लैंगिक बजट रिपोर्टिंग प्रक्रिया को स्पष्ट और पारदर्शी बनाने की आवश्यकता : भारत में लैंगिक बजट रिपोर्टिंग प्रक्रिया को स्पष्ट और पारदर्शी बनाना आवश्यक है, ताकि आवंटन के सही प्रक्रिया को स्पष्ट किया जा सके और जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सके।
- लैंगिक ऑडिट का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की जरूरत : भारत में विभिन्न मंत्रालयों में लैंगिक ऑडिट को अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि महिलाओं को वास्तविक और उपयुक्त लाभ मिल रहा है।
- जेंडर बजट के भाग C में पारदर्शिता बढ़ाई जाए : भारत में लैंगिक बजट के भाग C को और अधिक पारदर्शी बनाया जाए ताकि इसके प्रभाव को सही तरीके से समझा जा सके और सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें।
- जेंडर बजट का एकीकरण और समेकन को सुनिश्चित करने की जरूरत : देश के सभी मंत्रालयों में, जैसे बुनियादी ढाँचा और ग्रामीण विकास, जेंडर बजट को एकीकृत किया जाना चाहिए, जिससे हर सरकारी योजना में लैंगिक संवेदनशीलता से संबंधित आवंटन को सुनिश्चित किया जा सके।
- लिंग-विशिष्ट डेटा का संग्रहण और विश्लेषण करने की जरूरत : देश में महिलाओं की आवश्यकताओं और उनसे जुड़ी विभिन्न नीतियों के प्रभाव को समझने के लिए लिंग-विशिष्ट डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करने की अत्यंत आवश्यकता है।
- राज्य स्तर पर जेंडर बजट की भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत : भारत में सभी राज्य सरकारों को जेंडर रिस्पॉन्सिव बजटिंग में सक्रिय रूप से बढ़ती भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाए, ताकि सभी वर्गों, विशेष रूप से जनजातीय और अन्य सुभेद्य वर्गों की महिलाओं को सरकार की सभी योजनाओं में उनके समावेशन को सुनिश्चित किया जा सके।
- बजट आवंटन और सूचना प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता : देश में लैंगिक बजट आवंटन और सूचना प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाना आवश्यक है। धन आवंटन की पद्धतियों और उनके कारणों को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करने से जवाबदेही बढ़ेगी।
- एक सख्त निगरानी तंत्र और सतत मूल्यांकन पद्धति को विकसित करने की जरूरत : देश के सभी सभी मंत्रालयों में नियमित रूप से जेंडर आधारित ऑडिट आयोजित किए जाएं ताकि आवंटित धनराशि की प्रभावशीलता का सही तरीके से मूल्यांकन किया जा सके।
- जेंडर आधारित बजट पर प्रशिक्षण प्रदान करने एवं क्षमता निर्माण की आवश्यकता : देश के सभी विभागों के सरकारी अधिकारियों और अन्य हितधारकों को जेंडर आधारित बजट पर प्रशिक्षण देने से उन्हें बजट के सही उपयोग और आकलन में जेंडर दृष्टिकोण को शामिल करने के लिए जरूरी विशेषज्ञता प्राप्त होगी, जिससे बजट के उपयोग और आकलन में लैंगिक दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से समाहित सुनिश्चित किया जा सके।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. लैंगिक बजट (Gender Budgeting) 2025-26 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- कुल केंद्रीय बजट का 8.86% हिस्सा महिलाओं और लड़कियों के कल्याण के लिए निर्धारित किया गया है, जो पिछले वर्ष के 6.8% से अधिक है।
- इस बजट में महिला कल्याण के लिए ₹4.49 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष से 37.25% अधिक है।
- लैंगिक बजट को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है।
- जेंडर बजटिंग की शुरुआत भारत में 2005-06 में हुई थी, और यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत मिशन शक्ति योजना से जुड़ा हुआ है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – D
व्याख्या:
- कुल केंद्रीय बजट का 8.86% हिस्सा महिलाओं और लड़कियों के कल्याण के लिए निर्धारित किया गया है, जो पिछले वर्ष के 6.8% से अधिक है।
- इस बजट में महिला कल्याण के लिए ₹4.49 लाख करोड़ का आवंटन किया गया है, जो पिछले वर्ष से 37.25% अधिक है।
- लैंगिक बजट को तीन प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है।
- जेंडर बजटिंग की शुरुआत भारत में 2005-06 में हुई थी, और यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत मिशन शक्ति योजना से जुड़ा हुआ है। अतः विकल्प D सही उत्तर है।
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में लैंगिक बजट की पृष्ठभूमि, इसके मुख्य उद्देश्यों और चुनौतियों पर चर्चा करते हुए, इसके समाधान के उपायों पर विस्तृत रूप से विचार कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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