भारतीय अन्न बनाम वैश्विक पहचान निर्यात की नई राह : एपीडा की पहल

भारतीय अन्न बनाम वैश्विक पहचान निर्यात की नई राह : एपीडा की पहल

सामान्य अध्ययन – 3 भारतीय अर्थव्यवस्था एवं भारतीय कृषि का विकास 

                                                                                                                         

खबरों में क्यों?

 

  • हाल ही में कृषि निर्यात को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के तहत, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने ओडिशा सरकार के सहयोग से 25 अप्रैल 2025 को भुवनेश्वर स्थित डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन हॉल, ओयूएटी में एक कार्यशाला-सह-प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया।
  • इस आयोजन का उद्देश्य राज्य के विशिष्ट कृषि उत्पादों की वैश्विक बाजारों तक पहुँच सुनिश्चित करना था। कार्यक्रम में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ), महिला कृषि उद्यमी, सरकारी प्रतिनिधि और निर्यातक सक्रिय रूप से शामिल हुए। विभिन्न प्रतिभागियों द्वारा 10 से अधिक प्रदर्शनी स्टॉल लगाए गए, जिनमें ओडिशा के विशिष्ट जीआई टैग प्राप्त और पारंपरिक उत्पाद जैसे कोरापुट काला जीरा चावल, कंधमाल हल्दी, कोरापुट कॉफी, नयागढ़ का कांतेई मुंडी बैंगन, केंद्रपाड़ा रसबली और सालेपुर रसगुल्ला प्रदर्शित किए गए।
  • अपने संबोधन में राज्य के उपमुख्यमंत्री एवं कृषि मंत्री श्री कनक बर्धन सिंह देव ने राज्य के जैविक और जीआई प्रमाणित उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई और इस दिशा में एपीडा द्वारा दिए जा रहे सहयोग की सराहना की।

 

एपीडा ( APEDA ) : 

 

 

  • कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को संस्थागत रूप से बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा एक स्वायत्त निकाय कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की स्थापना की गई। यह निकाय दिसंबर 1985 में संसद द्वारा पारित एक विशेष कानून, ‘एपीडा अधिनियम, 1985’ के अंतर्गत गठित किया गया था, जो 13 फरवरी 1986 से प्रभाव में आया।
  • इस अधिनियम के लागू होने के साथ ही, एपीडा ने पूर्ववर्ती संस्था “प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात संवर्धन परिषद” (PFPEC) का स्थान ले लिया और अब यह भारत में कृषि आधारित प्रसंस्कृत उत्पादों के निर्यात को दिशा, सहायता और बढ़ावा देने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहा है।

 

एपीडा का प्रमुख कार्य और दायित्व : 

 

  1. कृषि उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन : एपीडा देश के फलों, सब्जियों, अनाज, मांस, डेयरी उत्पादों, शहद, अचार, फूलों, पेय पदार्थों और औषधीय पौधों जैसे निर्धारित कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु कार्य करता है।
  2. निर्यात-उन्मुख उद्योगों का सशक्तिकरण : यह प्राधिकरण कृषि प्रसंस्करण से जुड़ी इकाइयों के आधारभूत ढांचे के विकास और आधुनिकीकरण में मदद करता है, जिसके लिए वित्तीय सहायता, सर्वेक्षण, व्यवहार्यता रिपोर्ट और सब्सिडी योजनाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
  3. निर्यातकों का पंजीकरण एवं नियमन : अनुसूचित उत्पादों का निर्यात करने वाले व्यक्तियों और संगठनों को एपीडा द्वारा पंजीकृत किया जाता है, जिससे निर्यात प्रक्रिया अधिक संगठित और पारदर्शी बनती है।
  4. गुणवत्ता मानकों की स्थापना : अंतरराष्ट्रीय बाजारों की आवश्यकताओं के अनुरूप गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एपीडा उत्पाद-विशिष्ट मानक और विनिर्देश तय करता है।
  5. निरीक्षण और प्रमाणीकरण : मांस एवं मांस उत्पादों के संबंध में स्वच्छता, सुरक्षा और गुणवत्ता के उच्च मानदंडों को बनाए रखने हेतु यह प्राधिकरण बूचड़खानों, प्रसंस्करण केंद्रों और भंडारण स्थलों का निरीक्षण करता है।
  6. उन्नत पैकेजिंग एवं ब्रांडिंग को बढ़ावा : निर्यात उत्पादों की आकर्षक प्रस्तुति और टिकाऊपन के लिए बेहतर पैकेजिंग विधियों को प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में मजबूती मिले।
  7. प्रशिक्षण और क्षमता वर्धन और दक्षता को बढ़ाना : किसानों, निर्यातकों और कृषि उद्यमियों की निर्यात संबंधी समझ और दक्षता को बढ़ाने के लिए एपीडा नियमित रूप से कार्यशालाएं, प्रशिक्षण कार्यक्रम और सेमिनार आयोजित करता है।
  8. निर्यातकों को नवीनतम बाजार रुझानों, मांगों और प्रचार-सामग्री की जानकारी उपलब्ध कराना : अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों, खरीदार-विक्रेता बैठकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से यह संस्थान निर्यातकों को नवीनतम बाजार रुझानों, मांगों और प्रचार-सामग्री की जानकारी उपलब्ध कराता है।

 

एपीडा की भूमिका : एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण : 

 

  1. निर्यात संवर्धन में अग्रणी : एपीडा विविध कृषि और प्रसंस्कृत उत्पादों जैसे फलों, सब्जियों, मांस, डेयरी, और पेय पदार्थों के निर्यात को प्रोत्साहित करता है। यह विशेष रूप से जीआई-टैग वाले और जैविक उत्पादों के वैश्विक प्रचार पर बल देता है।
  2. नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन : यह संस्था वाणिज्य मंत्रालय के अधीन कार्य करते हुए कृषि निर्यात नीति (AEP) के अनुरूप सरकारी योजनाओं को धरातल पर उतारने का कार्य करती है।
  3. वैश्विक बाजार तक पहुँच सुनिश्चित करना : व्यापार मेलों, अंतरराष्ट्रीय बैठकों और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से एपीडा निर्यातकों को बाजार तक पहुंच प्रदान करता है, साथ ही बाज़ार संबंधी जानकारी भी उपलब्ध कराता है।
  4. प्रशिक्षण और क्षमता वर्धन : किसानों, एफपीओ और निर्यातकों को गुणवत्ता मानकों, प्रमाणन प्रक्रियाओं और निर्यात संबंधी जानकारियों पर नियमित प्रशिक्षण देकर उन्हें सशक्त बनाता है।
  5. जैविक खेती का समर्थन : एपीडा भारत के राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) का क्रियान्वयन करता है, जो जैविक प्रमाणीकरण और निर्यात सहायता की नींव है।
  6. बुनियादी ढांचे का विकास : कोल्ड चेन, पैक हाउस और परीक्षण प्रयोगशालाओं जैसी आधारभूत सुविधाओं के विकास में सहयोग करता है, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता और निर्यात योग्यता सुनिश्चित हो सके।
  7. नियामक भूमिका का निर्वहन : यह संस्था निर्यातकों का पंजीकरण करती है, गुणवत्ता मानकों को निर्धारित करती है तथा मांस और डेयरी उत्पादों का निरीक्षण कर उनके निर्यात को नियंत्रित करती है।
  8. संस्थागत साझेदारी और सहयोग : राज्य सरकारों, आईसीएआर, एसएफएसी एवं अन्य संगठनों के साथ मिलकर समन्वित कृषि निर्यात रणनीतियाँ तैयार करता है।

 

भारतीय कृषि निर्यात : प्रमुख चुनौतियाँ और सीमाएँ : 

 

  1. अपर्याप्त बुनियादी ढांचा :  खराब लॉजिस्टिक्स, सीमित कोल्ड स्टोरेज और अव्यवस्थित परिवहन नेटवर्क निर्यात क्षमता को बाधित करते हैं। भारत का एलपीआई रैंक 2023 में 44वाँ स्थान इस चुनौती को रेखांकित करता है।
  2. उच्च लागत और कम प्रतिस्पर्धा : माल ढुलाई, सीमा शुल्क और नियामकीय खर्चों के कारण भारत के कृषि उत्पाद महंगे पड़ते हैं। भारत की लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी का 13–15% है, जबकि विकसित देशों में यह केवल 8–10% है।
  3. गुणवत्ता मानकों पर खरे न उतरना :  वैश्विक मानकों (जैसे GAP, HACCP) को पूरा करना चुनौतीपूर्ण होता है, जिससे निर्यात में अस्वीकृति बढ़ जाती है — विशेष रूप से यूरोपीय संघ में, जहां कुछ भारतीय फल-सब्जी शिपमेंट्स का 10% तक खारिज हुआ है।
  4. बाज़ार तक सीमित पहुँच : स्वच्छता (SPS) और तकनीकी बाधाओं के कारण कई देशों में प्रवेश कठिन हो जाता है। WTO के अनुसार, भारत के 15% कृषि निर्यात एसपीएस नियमों से प्रभावित होते हैं।
  5. मूल्य विविधता की कमी : कृषि निर्यात मुख्यतः कच्चे उत्पादों तक सीमित है, जिससे मूल्य संवर्धन और लाभ सीमित होता है। भारत 80% से अधिक कृषि उत्पाद बिना प्रसंस्करण के निर्यात करता है।
  6. प्राकृतिक अस्थिरता और उपज में उतार-चढ़ाव : मानसून की अनिश्चितता, जलवायु परिवर्तन और कीटों के प्रकोप से फसल उत्पादन अस्थिर रहता है, जिससे निर्यात की निरंतरता प्रभावित होती है।
  7. भौगोलिक विविधीकरण की कमी : भारत का 40% कृषि निर्यात केवल मध्य पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया तक सीमित है, जिससे वैश्विक जोखिम बढ़ता है और नए बाजारों में प्रवेश सीमित हो जाता है।
  8. नियामक जटिलताएँ और लालफीताशाही : प्रमाणन में देरी, जटिल प्रक्रियाएँ और अनेक अनुमतियाँ निर्यात में 25–30% तक की देरी का कारण बनती हैं, जिससे लागत भी बढ़ जाती है।

 

भारतीय कृषि निर्यात को प्रोत्साहित करने के रणनीतिक उपाय : 

 

  1. बुनियादी ढाँचे को आधुनिक स्वरूप देने की आवश्यकता :  खेत स्तर पर कोल्ड चेन सुविधाएँ, पैक हाउस, गुणवत्ता परीक्षण प्रयोगशालाएँ और लॉजिस्टिक्स केंद्रों का विकास किया जाए। कृषि निर्यात क्षेत्रों (Agri Export Zones – AEZs) की स्थापना की जाए तथा इन्हें प्रमुख बंदरगाहों और परिवहन नेटवर्क से जोड़ा जाए।
  2. मूल्य संवर्धन पर ज़ोर देने की जरूरत : कच्चे उत्पादों की बजाय प्रसंस्कृत एवं मूल्यवर्धित खाद्य सामग्री के निर्यात को प्रोत्साहन दिया जाए। इसके लिए प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना (PMKSY) जैसी योजनाओं के तहत अनुदान और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाए।
  3. जैविक और जीआई टैग वाले उत्पादों को बढ़ावा देने की आवश्यकता : वैश्विक प्रदर्शनियों, विपणन अभियानों और ब्रांडिंग के माध्यम से जीआई-प्रमाणित एवं जैविक उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय पहचान मजबूत की जाए। साथ ही, राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) के अंतर्गत प्रमाणन एवं ट्रेसबिलिटी प्रणाली को भी सुदृढ़ किया जाए।
  4. द्विपक्षीय व्यापार समझौतों का प्रभावी रूप से उपयोग करने बाजारों का विविधीकरण करने की जरूरत :  भारतीय कृषि निर्यात को पारंपरिक बाजारों तक सीमित रखने के बजाय अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और पूर्वी एशिया जैसे नए और उभरते बाजारों में विस्तार किया जाए। इसके लिए द्विपक्षीय व्यापार समझौतों (जैसे CEPA, FTA) का प्रभावी उपयोग किया जाए।
  5. निर्यात प्रक्रियाओं का सरलीकरण एवं डिजिटल माध्यम से पारदर्शी और त्वरित बनाने की आवश्यकता :  प्रमाणन, सीमा शुल्क स्वीकृति और निरीक्षण जैसी प्रक्रियाओं को डिजिटल माध्यम से पारदर्शी और त्वरित बनाया जाए। कृषि उत्पादों के लिए एकीकृत ‘सिंगल विंडो’ निर्यात मंजूरी प्रणाली की स्थापना की जाए।
  6. किसानों और एफपीओ के सशक्तिकरण की दिशा में कदम उठाने एवं और व्यापारिक नेटवर्क से जोड़ने की आवश्यकता :  किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और किसानों को वैश्विक गुणवत्ता मानकों, फसल कटाई के बाद प्रबंधन और निर्यात प्रक्रियाओं पर प्रशिक्षण दिया जाए। उन्हें निर्यातक इकाइयों, एग्रीगेटर्स और व्यापारिक नेटवर्क से जोड़ा जाए।
  7. बाज़ार जानकारी और प्रचार तंत्र को मज़बूत बनाने की आवश्यकता : वैश्विक मांग, मूल्य रुझानों और नियामकीय जानकारी का रियल टाइम डाटा उपलब्ध कराया जाए। अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों, आभासी क्रेता-विक्रेता बैठकों और रिवर्स बायर मिशनों का आयोजन नियमित रूप से किया जाए।
  8. निर्यातकों को नीतिगत सहयोग को प्रोत्साहित और वित्तीय समर्थन करने की आवश्यकता : निर्यातकों को प्रोत्साहन, क्रेडिट गारंटी योजनाएँ और परिवहन सब्सिडी दी जाए। साथ ही, कृषि निर्यात नीति (AEP) को राज्यों के स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए ताकि क्षेत्रीय स्तर पर निर्यात पारिस्थितिकी मजबूत हो सके।

 

निष्कर्ष : 

 

  • भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों, समृद्ध पारंपरिक ज्ञान और जीआई-टैग व जैविक उत्पादों की उपलब्धता के चलते देश में कृषि निर्यात की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। एपीडा जैसे संस्थान इन संभावनाओं को महत्व प्रदान करने में नीति निर्माण, अवसंरचना विकास और हितधारकों को जोड़ने में एक केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।
  • हालांकि, बुनियादी ढांचे की कमी, अधिक लॉजिस्टिक लागत, गुणवत्ता मानकों में कमी और अपर्याप्त मूल्य संवर्धन जैसी बाधाओं को दूर करना आज समय की माँग है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर एपीडा जैसे निकायों के सहयोग से समन्वित प्रयास करें, तो भारत विश्व कृषि निर्यात मानचित्र पर एक सशक्त और स्थायी उपस्थिति दर्ज कर सकता है।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू। 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1.यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है।
2. यह अनुसूचित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देता है।
3. यह राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?

A. केवल 1 और 2

B. केवल 2 और 3

C. केवल 1 और 3

D. 1, 2 और 3

उत्तर –  B

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि भारत से कृषि निर्यात को बढ़ावा देने में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की क्या भूमिका है? भारतीय कृषि निर्यात के सामने कौन-कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं, और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

 

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