भारत लौटे बुद्ध के अवशेष : बौद्ध धरोहर और भारत – वियतनाम का नव संवाद

भारत लौटे बुद्ध के अवशेष : बौद्ध धरोहर और भारत – वियतनाम का नव संवाद

पाठ्यक्रम : सामान्य अध्ययन -1- भारतीय इतिहास, कला एवं संस्कृति – भारत लौटे बुद्ध के अवशेष : बौद्ध धरोहर और भारत – वियतनाम का नव संवाद।

प्रारंभिक परीक्षा के लिए : 

भगवान गौतम बुद्ध, बौद्ध धर्म, महापरिनिर्वाण, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC),‘पड़ोस प्रथम’ और ‘एक्ट ईस्ट’ विदेश नीति  

मुख्य परीक्षा के लिए : 

भारत के बौद्ध धर्म का जन्म स्थान होने का क्या महत्व है? भारत द्वारा बौद्ध विरासत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के व्यापक निहितार्थ क्या है?

 

खबरों में क्यों?

 

 

  • हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार भगवान बुद्ध के पूज्य अवशेष एक महीने की सफल और ऐतिहासिक यात्रा के उपरांत अब भारत लौटने को है। यह प्रदर्शनी यात्रा, जो प्रारंभिक रूप से 21 मई को समाप्त होने वाली थी, वियतनाम में लोगों की गहरी श्रद्धा और उत्साह के चलते 2 जून तक बढ़ा दी गई। 
  • वियतनाम सरकार के विशेष अनुरोध पर बढ़ाए गए इस धार्मिक और सांस्कृतिक अभियान के दौरान, अवशेषों ने नौ प्रमुख नगरों की यात्रा की और लगभग डेढ़ करोड़ श्रद्धालुओं ने इनके दर्शन किए।
  • यह तीर्थ यात्रा न केवल एक आध्यात्मिक अनुभव थी, बल्कि भारत और वियतनाम के प्राचीन सांस्कृतिक-संबंधों का सशक्त प्रतीक भी बन गई। 
  • भगवान बुद्ध के पूज्य अवशेषों की वापसी भारतीय वायु सेना के विशेष विमान से दिल्ली के पालम वायुसेना अड्डे पर रात लगभग 10 बजे होगी। उनके साथ भारत सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल भी होगा, जिसका नेतृत्व ओडिशा के राज्यपाल डॉ. हरि बाबू कमभमपति कर रहे हैं।
  • पालम एयरबेस पर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के पदाधिकारी और भारत के वरिष्ठ भिक्षु गण उनका औपचारिक स्वागत करेंगे, जो इस आध्यात्मिक धरोहर की गरिमा को और भी बढ़ाएगा।

 

बुद्ध के पवित्र अवशेष : दिव्य स्मृतियाँ, श्रद्धा, आस्था और विरासत का प्रतीक : 

 

  • भगवान गौतम बुद्ध के अवशेष वे पवित्र भौतिक चिह्न हैं, जो उनके महापरिनिर्वाण और उनके दाह संस्कार के उपरांत संरक्षित किए गए थे — जैसे कि उनकी अस्थियाँ, दाँत या दाह संस्कार की राख। 
  • इन अवशेषों को न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा अत्यंत श्रद्धा के साथ पूजा जाता है, बल्कि वे बुद्ध की दिव्य उपस्थिति, करुणा और बोधि-मार्ग की स्थायी स्मृति भी माने जाते हैं।
  • परंपरागत रूप से इन्हें स्तूपों, विहारों या विशेष मंदिरों में प्रतिष्ठित किया जाता है, जहाँ ये ध्यान, साधना और भक्ति का केंद्र बनते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इनके दर्शन से आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति होती है और साधक को बुद्ध के आदर्शों के निकट पहुँचने की प्रेरणा मिलती है।
  • इन अवशेषों का संरक्षण केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि एक जीवंत विरासत को सहेजने का प्रयास भी है, जो न केवल अतीत से जुड़ाव को बनाये रखता है, बल्कि वर्तमान व भावी पीढ़ियों को भी बुद्ध के शांति, करुणा और ज्ञान के संदेश से जोड़ता है।

 

वियतनाम में बुद्ध अवशेष यात्रा : प्रमुख झलकियाँ और सारगर्भित निष्कर्ष : 

 

  1. यात्रा अवधि में विस्तार : प्रारंभिक रूप से 21 मई 2025 को समाप्त होने वाली इस पवित्र यात्रा को, वियतनाम की सरकार की विशेष मांग पर, श्रद्धालुओं की गहन आस्था और भावनात्मक जुड़ाव को देखते हुए 2 जून 2025 तक बढ़ा दिया गया।
  2. भौगोलिक व्यापकता : इस आध्यात्मिक अभियान के अंतर्गत बुद्ध के पवित्र अवशेषों को वियतनाम के नौ प्रमुख नगरों में ले जाया गया, जिससे विविध बौद्ध समुदायों तक समान श्रद्धा और सहभागिता सुनिश्चित हो सकी।
  3. अभूतपूर्व जन-सहभागिता : पूरे तीर्थ मार्ग में 1.5 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने अवशेषों के दर्शन कर श्रद्धा अर्पित की, जो इस आयोजन की धार्मिक गूढ़ता और सांस्कृतिक व्यापकता को दर्शाता है।
  4. भारत सरकार की राजनयिक भागीदारी : इन अवशेषों को भारत सरकार के एक विशेष प्रतिनिधिमंडल द्वारा लाया गया, जिसका नेतृत्व ओडिशा के राज्यपाल डॉ. हरि बाबू कमभमपति ने किया। यह भारत की सांस्कृतिक संरक्षकता और कूटनीतिक सद्भाव का प्रतीक रहा।
  5. यात्रा का सफल समन्वय और संचालन : इस यात्रा का सफल समन्वय भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) ने संयुक्त रूप से किया, जिससे आयोजन में सुचारु व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय समन्वय बना रहा।
  6. वियतनामी प्रशासन का सक्रिय सहयोग : वियतनाम सरकार ने इस ऐतिहासिक प्रदर्शन को न केवल सुलभ बनाया, बल्कि उसका विस्तार भी सुनिश्चित किया, जो बौद्ध धर्म और भारत-वियतनाम मित्रता के प्रति उसकी गहरी निष्ठा को दर्शाता है।
  7. आध्यात्मिक जागृति और सामाजिक समरसता : तीर्थयात्रा के दौरान जिन नगरों में अवशेष पहुंचे, वहाँ व्यापक स्तर पर आध्यात्मिक वातावरण बना। श्रद्धालुओं ने आस्था के साथ पूजा-अर्चना कर धार्मिक सौहार्द का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  8. सांस्कृतिक-सामरिक दृष्टिकोण से महत्व : यह यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं थी, बल्कि भारत-वियतनाम सांस्कृतिक कूटनीति को सशक्त करने वाली एक प्रभावी पहल भी रही, जिससे भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ का विस्तार हुआ।

 

बौद्ध कूटनीति में भारत की भूमिका : सांस्कृतिक संरक्षकता से वैश्विक प्रभाव तक : 

 

  1. धर्म का उद्गम स्थल : भारत वह पवित्र भूमि है जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ (बोधगया), उन्होंने प्रथम उपदेश दिया (सारनाथ) और परिनिर्वाण को प्राप्त हुए (कुशीनगर)। यह स्थान बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक आधार हैं।
  2. अवशेषों की जिम्मेदारी : भारत में सुरक्षित रखे गए बुद्ध के पवित्र अवशेष, न केवल धार्मिक पूंजी हैं, बल्कि विश्व बौद्ध समुदाय के प्रति भारत की जिम्मेदारी और प्रतिबद्धता के प्रतीक हैं।
  3. आस्था के आदान-प्रदान का माध्यम : भारत समय-समय पर बौद्ध बहुल देशों को बुद्ध के अवशेषों को दर्शनार्थ भेजता है, जिससे धार्मिक सद्भाव और अंतरराष्ट्रीय मैत्री को बढ़ावा मिलता है।
  4. सांस्कृतिक संवाद का सशक्त माध्यम : यह प्रक्रिया भारत को एक आध्यात्मिक नेतृत्व की भूमिका में स्थापित करती है और विभिन्न देशों के बौद्ध समुदायों के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को प्रोत्साहित करती है।
  5. संस्कृति मंत्रालय की सक्रियता : भारत का संस्कृति मंत्रालय तीर्थयात्राओं, बौद्ध स्थलों के संरक्षण, और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलनों में भागीदारी द्वारा बौद्ध विरासत के संरक्षण में योगदान देता है।
  6. अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) की भूमिका : अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC), भारत की बौद्ध कूटनीति का मुख्य स्तंभ है, जो वैश्विक मंचों पर भारत की बौद्ध नीति का समन्वय और प्रतिनिधित्व करता है।
  7. सॉफ्ट पावर का वाहक : बौद्ध धर्म और उससे जुड़ी विरासत को साझा कर भारत अपनी सॉफ्ट पावर को सुदृढ़ करता है, विशेषकर एशियाई और बौद्ध-बहुल देशों में।
  8. ‘एक्ट ईस्ट नीति’ में योगदान : बौद्ध कूटनीति भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ को सशक्त करती है, जो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के माध्यम से आसियान देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करती है।

 

भारत में कार्यक्रम : स्वागत, प्रदर्शनी और प्रतिष्ठापन

 

आयोजन विवरण तारीख महत्व
दिल्ली में औपचारिक स्वागत अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के अधिकारियों और वरिष्ठ भिक्षुओं द्वारा पालम वायुसेना स्टेशन पर अवशेषों का आधिकारिक स्वागत किया गया। 2 जून 2025 यह पवित्र अवशेषों की औपचारिक वापसी और स्वागत का प्रतीक है।
राष्ट्रीय संग्रहालय में सार्वजनिक प्रदर्शनी अवशेषों को सार्वजनिक दर्शन के लिए प्रदर्शित किया गया, ताकि भक्तगण उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें। 3 जून 2025 आध्यात्मिक सम्पर्क के लिए सार्वजनिक पहुंच प्रदान करता है।
औपचारिक प्रार्थना सभा वरिष्ठ बौद्ध भिक्षुओं, आईबीसी महासचिव और राजनयिक प्रतिनिधियों द्वारा आयोजित। 3 जून 2025 आध्यात्मिक और कूटनीतिक महत्व पर जोर दिया गया।
राष्ट्रपति का काफिला अवशेषों को पूरे राजकीय प्रोटोकॉल के साथ वाराणसी के रास्ते दिल्ली से सारनाथ ले जाया गया। 4 जून 2025 अवशेषों के राष्ट्रीय और ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला गया।
मार्ग का महत्व बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक के अवशेषों को जोड़ने वाली यात्रा। 4 जून 2025 आध्यात्मिक विरासत और निरंतरता का प्रतीक है।
मूलगंध कुटी विहार में प्रतिष्ठापन सारनाथ के प्रसिद्ध बौद्ध मठ में संरक्षित अवशेष। 4 जून 2025 यह तीर्थयात्रा के पवित्र समापन का प्रतीक है।
आध्यात्मिक समापन अंतिम प्रतिष्ठापन अधिनियम बौद्ध विरासत के प्रति भारत की संरक्षकता को सुदृढ़ करता है। 4 जून 2025 आध्यात्मिक विरासत और अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करता है।

 

भारत-वियतनाम साझेदारी में बौद्ध तीर्थ यात्रा का एक सांस्कृतिक सेतु के रूप में महत्व: 

 

  1. सांस्कृतिक संवाद का सशक्त माध्यम : यह तीर्थयात्रा भारत और वियतनाम के बीच सांस्कृतिक मैत्री और ऐतिहासिक निकटता को नए आयाम देती है, जिससे पारंपरिक संबंध और अधिक सुदृढ़ होते हैं।
  2. साझी बौद्ध विरासत का पुनर्स्मरण : बौद्ध धर्म दोनों देशों के लिए एक साझा आध्यात्मिक धरोहर है, जो राजनीतिक सीमाओं से परे जाकर गहन आत्मिक जुड़ाव का मार्ग प्रशस्त करता है।
  3. जन स्तर पर संवाद और सहभागिता : यह पहल केवल औपचारिक कूटनीति तक सीमित नहीं, बल्कि आम नागरिकों के बीच विश्वास, समझ और आपसी समर्पण को भी बल देती है।
  4. ‘एक्ट ईस्ट नीति’ को समर्थन : तीर्थयात्रा जैसे सांस्कृतिक आयोजन भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ रणनीति के तहत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ बहुआयामी सहयोग को गति प्रदान करते हैं।
  5. व्यापक द्विपक्षीय सहयोग का आधार : संस्कृति के माध्यम से निर्मित विश्वास, भविष्य में व्यापार, रणनीतिक साझेदारी और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग का द्वार खोलता है।
  6. वियतनाम द्वारा भारत की आध्यात्मिक भूमिका की स्वीकृति : अवशेष यात्रा की अवधि बढ़ाना यह दर्शाता है कि वियतनाम, भारत को एक गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नेता के रूप में स्वीकार करता है।
  7. धार्मिक साझेदारी की पुष्टि : यह यात्रा ऐतिहासिक बौद्ध संबंधों की पुनः पुष्टि करती है और समकालीन वैश्विक संदर्भ में उन्हें प्रासंगिक बनाए रखती है।
  8. बहुस्तरीय सहयोग की नई संभावनाओं को जन्म देना : यह सांस्कृतिक संपर्क शिक्षा, अनुसंधान, तीर्थ पर्यटन और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे क्षेत्रों में सहयोग की नई संभावनाओं को जन्म देता है।


संस्कृति के माध्यम से वैश्विक प्रभाव : भारत की सॉफ्ट शक्ति दृष्टि

 

  1. भारत की शांति – संचारक राष्ट्र की छवि : भारत, अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर के माध्यम से विश्व समुदाय में एक शांतिप्रिय, समावेशी और नैतिक शक्ति के रूप में उभरता है।
  2. विदेश नीति के साथ समन्वय : सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘पड़ोस प्रथम’ और ‘एक्ट ईस्ट’ जैसी विदेश नीति पहलों को सामाजिक-सांस्कृतिक समर्थन प्रदान करते हैं।
  3. वैश्विक बौद्ध मंच पर नेतृत्व : भारत अंतरराष्ट्रीय बौद्ध संवादों और सांस्कृतिक संरक्षण अभियानों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, जिससे उसकी विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा सुदृढ़ होती है।
  4. धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा : यह यात्रा विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच संवाद और सह अस्तित्व के मूल्य को रेखांकित करती है।
  5. बौद्ध पर्यटन को बल मिलना : ऐसे आयोजनों से बौद्ध तीर्थ स्थलों — बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर आदि — की ओर अंतरराष्ट्रीय पर्यटन आकर्षित होता है।
  6. शैक्षणिक एवं अनुसंधान सहयोग : यह अवसर विश्व के विद्वानों और शिक्षण संस्थानों को बौद्ध दर्शन, संस्कृति और इतिहास के क्षेत्र में संयुक्त अनुसंधान हेतु प्रेरित करता है।
  7. धरोहर स्थलों का वैश्विक महत्व : भारत की भूमिका यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त बौद्ध स्थलों के संरक्षण और प्रचार में लगातार महत्वपूर्ण बनी हुई है।
  8. शांति, समरसता और सांस्कृतिक समन्वय के प्रतीक के रूप में भारत की छवि : शांति, समरसता और सांस्कृतिक समन्वय के प्रतीक के रूप में भारत की छवि को इस तरह की पहलें और अधिक प्रभावशाली बनाती हैं।

 

निष्कर्ष : 

 

  • भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की वियतनाम यात्रा और भारत में उनकी पुनर्प्राप्ति एक साधारण धार्मिक घटना नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक सेतु का निर्माण है। 
  • यह पहल भारत को न केवल बौद्ध धर्म के जन्म स्थान और संरक्षक के रूप में स्थापित करती है, बल्कि यह भी प्रमाणित करती है कि संस्कृति और अध्यात्म अंतरराष्ट्रीय संबंधों को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं। 
  • यह यात्रा ‘एक्ट ईस्ट नीति’ को सांस्कृतिक आधार देती है और भारत को शांति, सद्भाव और संवाद का वैश्विक अग्रदूत बनाती है।
  • सारनाथ में अवशेषों की प्रतिष्ठा न केवल भारत की आध्यात्मिक परंपरा की निरंतरता है, बल्कि यह वैश्विक सहयोग के भविष्य को भी दिशा देती है, जहाँ संस्कृति ही कूटनीति की सबसे शक्तिशाली भाषा बन जाती है।

 

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 31st May 2025.

 

स्त्रोत – पी.आई.बी. एवं द हिन्दू।  

 

 प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की वियतनाम में हाल की तीर्थयात्रा के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
1. वियतनाम सरकार के अनुरोध पर तीर्थयात्रा को उसके मूल कार्यक्रम से आगे बढ़ा दिया गया।
2. अवशेषों को ओडिशा के राज्यपाल के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा ले जाया गया।
नीचे दिए गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:
(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 व 2 दोनों
(D) न तो 1 न ही 2

उत्तर – C

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. चर्चा कीजिए कि हाल ही में वियतनाम में भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों की यात्रा को भारत की सांस्कृतिक कूटनीति और विदेश नीति के संदर्भ में कैसे देखा जा सकता है? यह आयोजन भारत को बौद्ध विरासत के वैश्विक संरक्षक के रूप में किस प्रकार स्थापित करता है, और भारत-वियतनाम द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने में इसकी क्या भूमिका है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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