21 Jul रेगिस्तान और लोकतंत्र : भारत – यूएई रणनीतिक संबंधों की नई दिशा
सामान्य अध्ययन – प्रश्नपत्र – 2 – भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भारत के पड़ोसी देश, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (सीईपीए), भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी), मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए), विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), अंतरिम व्यापार समझौता।
ख़बरों में क्यों?
- हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) अपने परंपरागत साझेदारी के दायरे से आगे बढ़ते हुए अब सहयोग के नए और रणनीतिक क्षेत्रों में कदम रख रहे हैं। दोनों देश अब केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहकर, परमाणु ऊर्जा, अत्याधुनिक तकनीक, डिजिटल वित्त और रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग को विस्तार देने की दिशा में अग्रसर हैं।
- वर्तमान में हुए यह प्रगति न केवल आर्थिक स्थिरता और सतत विकास की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाती है, बल्कि क्षेत्रीय संपर्क को भी नई ऊर्जा प्रदान करती है।
भारत-यूएई आर्थिक सहयोग : साझेदारी के नए आयाम
- व्यापारिक साझेदारी में ऐतिहासिक छलांग : भारत और यूएई के बीच व्यापारिक संबंधों ने अभूतपूर्व गति पकड़ी है। 2027 का लक्ष्य निर्धारित करने के बावजूद, दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार $100 अरब के आंकड़े को पाँच वर्ष पहले ही पार कर गया है, जिससे यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
- सीईपीए : द्विपक्षीय व्यापार में क्रांतिकारी परिवर्तन : वर्ष 2022 में हस्ताक्षरित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) व्यापार में बाधाओं, टैरिफ और दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर व्यापार प्रवाह को सुगम बना रहा है। यह समझौता दोनों देशों के बीच आर्थिक सेतु का कार्य कर रहा है।
- डिजिटल व्यापार गलियारा : व्यापार प्रक्रिया में नवाचार : सीईपीए के अंतर्गत “वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर” की स्थापना से सीमा शुल्क प्रक्रिया में तेजी आई है और व्यापारिक पारदर्शिता बढ़ी है। यह पहल भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (IMEEC) की व्यापक रणनीति को मजबूती देती है।
- निवेश का विस्तार : भरोसे की बुनियाद : यूएई का भारत में कुल एफडीआई $23 अरब तक पहुँच चुका है, जो स्थिर निवेश परिवेश में उसके विश्वास को दर्शाता है।
- द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) 2023: संरक्षित निवेश का आधार : वर्ष 2023 में हुई द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) ने यूएई के निवेशकों को कानूनी सुरक्षा प्रदान की है, जिससे पूंजी प्रवाह और दीर्घकालिक परियोजनाओं में रुचि बढ़ी है।
- विविधता में ताकत : भारत-यूएई व्यापार अब केवल ऊर्जा या वस्त्र तक सीमित नहीं, बल्कि खाद्य प्रसंस्करण, हरित ऊर्जा, आईटी, और पेट्रोकेमिकल जैसे विविध क्षेत्रों तक फैल चुका है — जिससे यह संबंध अधिक रणनीतिक और समग्र बन चुका है।
वित्तीय समावेशन और मुद्रा सहयोग का विस्तार
- मुद्रा लेन-देन में बदलाव : रुपये-दिरहम का प्रयोग : अब द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 10% भारतीय रुपये और यूएई दिरहम में तय हो रहा है, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हो रही है और लेन-देन अधिक लचीला बन रहा है।
- जयवान कार्ड : एक साझा फिनटेक पहल : यूएई ने भारतीय “रुपे” प्लेटफॉर्म पर आधारित जयवान कार्ड लॉन्च किया है, जो दोनों देशों के बीच डिजिटल भुगतान सहयोग की दिशा में एक नया अध्याय है।
- यूपीआई-आनी एकीकरण : भारत का UPI और यूएई का आनी प्लेटफ़ॉर्म नवंबर 2025 तक जुड़ जाएंगे, जिससे सीमाओं के पार त्वरित और सस्ते डिजिटल भुगतान संभव होंगे।
- सीबीडीसी सहयोग : केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्राओं (CBDC) की आपसी संगतता सुनिश्चित करने को लेकर विचार-विमर्श जारी है, जिससे वित्तीय सुरक्षा और स्थायित्व को बल मिलेगा।
- स्विफ्ट विकल्प की तलाश : भारत और यूएई बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक वैकल्पिक और सुरक्षित संदेश प्रणाली विकसित करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं, जिससे डेटा संप्रभुता सुनिश्चित हो सके।
- वैश्विक दक्षिण के लिए फिनटेक मॉडल : यह साझेदारी डिजिटल फिनटेक इन्फ्रास्ट्रक्चर में सहयोग का एक आदर्श मॉडल बन रही है, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण देशों के लिए जो संप्रभु भुगतान प्रणालियों की ओर अग्रसर हैं।
- एमएसएमई और स्टार्टअप के लिए बढ़त : फिनटेक कनेक्टिविटी छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को सशक्त बना रही है, जिससे लेन-देन की लागत कम हो रही है और वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच आसान हो रही है।
प्रौद्योगिकी और शिक्षा : नवाचार की साझा यात्रा
- वाइब्रेंट गुजरात 2024 : तकनीकी सहयोग पर केंद्रित : गुजरात शिखर सम्मेलन 2024 में एआई, अंतरिक्ष, बायोटेक और स्वच्छ ऊर्जा तकनीक में भारत-यूएई साझेदारी को प्रमुखता दी गई।
- ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की दिशा में कदम : दोनों राष्ट्र नवाचार, अनुसंधान और डिजिटल बदलाव के माध्यम से अपने शिक्षा व आर्थिक मॉडल को ज्ञान-केंद्रित बनाना चाहते हैं।
- आईआईटी अबू धाबी: अनुसंधान का नया केंद्र : यूएई में आईआईटी अबू धाबी का शुभारंभ उच्च शिक्षा में सहयोग को नई दिशा देता है, विशेषकर अनुसंधान और पीएचडी कार्यक्रमों के माध्यम से।
- आईआईएम अहमदाबाद दुबई कैंपस : दुबई में आईआईएम की उपस्थिति खाड़ी क्षेत्र में भारतीय प्रबंधन शिक्षा की बढ़ती मांग को रेखांकित करती है।
- आईआईएफटी का विस्तार : भारतीय विदेश व्यापार संस्थान (IIFT) ने दुबई में परिसर स्थापित कर व्यापार और रणनीतिक शिक्षा को सीईपीए समझौते के अनुरूप सुदृढ़ किया है।
- मानव संसाधन गतिशीलता और कौशल उन्नयन पर बल देना : शिक्षा व उद्योग की आपसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, दोनों देशों ने मानव संसाधन गतिशीलता और कौशल उन्नयन पर बल दिया है।
- तकनीकी और शैक्षणिक संगम : भारत-यूएई साझेदारी शिक्षा और तकनीक को एकीकृत कर नवाचार गलियारा बना रही है, जो दक्षिण एशिया और अरब क्षेत्र के बीच सहयोग को नई ऊँचाई तक ले जा रही है।
भारत-यूएई रक्षा और रणनीतिक सहयोग : साझेदारी की नई परिभाषा
- रणनीतिक संवाद में नई ऊँचाई : दोनों देशों के बीच रक्षा वार्ता अब सचिव स्तर तक पहुँच गई है, जो संयुक्त सुरक्षा ढांचे की दिशा में बढ़ते संस्थागत विश्वास और सहयोग को दर्शाती है।
- समन्वित सैन्य अभ्यास : डेजर्ट साइक्लोन, डेजर्ट फ्लैग, और भारत-फ्रांस-यूएई त्रिपक्षीय अभ्यास जैसे संयुक्त अभ्यासों के माध्यम से दोनों सेनाएँ आपसी तालमेल, परिचालन दक्षता और युद्ध-सिद्धता को मज़बूत कर रही हैं।
- समुद्री और क्षेत्रीय सुरक्षा में साझेदारी : इन अभ्यासों का फोकस हिंद महासागर क्षेत्र और पश्चिम एशिया में आतंकवाद-रोधी उपायों, समुद्री मार्गों की सुरक्षा और व्यापक क्षेत्रीय स्थिरता पर है — जो साझा रणनीतिक चिंताओं का प्रमाण है।
- रक्षा विनिर्माण और औद्योगिक सहयोग : भारतीय रक्षा कंपनियाँ IDEX, दुबई एयरशो जैसे वैश्विक मंचों पर अपनी स्वदेशी क्षमताओं का प्रदर्शन कर रही हैं, जिससे रक्षा प्रौद्योगिकी में साझेदारी को गति मिल रही है।
- तेजस परियोजना में अमीराती भागीदारी : यूएई की कंपनियाँ तेजस हल्के लड़ाकू विमान के निर्माण में सक्रिय सहयोग कर रही हैं, जो रक्षा तकनीकी सहयोग में विश्वास और पारदर्शिता की मिसाल है।
- ड्रोन और एंटी-ड्रोन समाधान : युद्धक्षेत्र की आधुनिक चुनौतियों को देखते हुए, दोनों देश मानव रहित विमान प्रणालियों और उनके प्रतिरोधी समाधानों के संयुक्त अनुसंधान और निर्माण पर काम कर रहे हैं।
- रक्षा कूटनीति का विस्तार : DefExpo और Gulf Defence Exhibition जैसी प्रदर्शनों में पारस्परिक भागीदारी, भारत और यूएई के बीच रक्षा-संबंधी कूटनीतिक संवाद को निरंतर प्रगाढ़ कर रही है।
स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में परमाणु ऊर्जा सहयोग :
- वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य : यूएई अपनी कुल विद्युत आवश्यकताओं का लगभग 25% परमाणु स्रोतों से पूरा करता है, जिसकी कुल क्षमता 5.6 गीगावाट है।
- भविष्य का रोडमैप (2030 तक) : यूएई 2030 तक अपनी परमाणु क्षमता को दोगुना करने की योजना पर कार्य कर रहा है, जो ऊर्जा विविधीकरण की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास है।
- PACE सहयोग: वैश्विक भागीदारी : भारत और यूएई, PACE (Partnership for Accelerating Clean Energy) पहल के तहत अमेरिका और फ्रांस के साथ मिलकर स्वच्छ परमाणु ऊर्जा के प्रसार में सहयोग कर रहे हैं।
- नेट-ज़ीरो लक्ष्य के लिए सहयोग : परमाणु ऊर्जा एक कार्बन-मुक्त और भरोसेमंद आधारभूत ऊर्जा स्रोत के रूप में दोनों देशों के जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों को सशक्त करता है।
- बराक परियोजना में भागीदारी : भारत की तकनीकी भागीदारी बराक परमाणु संयंत्र में है — जो अरब क्षेत्र का पहला बहु-इकाई चालू संयंत्र है — यह रणनीतिक सहयोग का एक प्रमुख उदाहरण है।
- प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी आदान-प्रदान : भारतीय और अमीराती परमाणु एजेंसियों के बीच सुरक्षा मानकों, प्रशिक्षण और नियामक ढाँचे के क्षेत्र में निरंतर संवाद चल रहा है।
- ऊर्जा सुरक्षा का साझा दृष्टिकोण : यह सहयोग भारत और यूएई की ऊर्जा सुरक्षा को एक नई मजबूती देता है और व्यापक रणनीतिक साझेदारी का आधार बनता है।
रणनीतिक संसाधन, अंतरिक्ष और अवसंरचना सहयोग :
- महत्वपूर्ण खनिजों पर साझेदारी : वर्ष 2024 में हस्ताक्षरित खनिज सहयोग समझौता का उद्देश्य लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसी हरित प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं को पूरा करना है।
- अंतरिक्ष अनुसंधान में भागीदारी : दोनों देश उपग्रह विकास, नेविगेशन और ध्रुवीय मिशनों में साझा अनुसंधान कर रहे हैं, जो अंतरिक्ष क्षेत्र में दीर्घकालिक सहयोग की नींव रखता है।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) – एकीकृत कनेक्टिविटी की परिकल्पना : भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) वस्तुओं, ऊर्जा और डेटा को जोड़ने वाली एक आधुनिक, बहु-स्तरीय अवसंरचना दृष्टि प्रस्तुत करता है।
- सब-सी केबल्स और डिजिटल नेटवर्किंग : गलियारे में प्रस्तावित समुद्र तलीय केबल्स, एशिया, खाड़ी और यूरोप के बीच तेज़, सुरक्षित और संप्रभु डेटा ट्रांसफर को सुनिश्चित करेंगे।
- सीमा पार ऊर्जा ग्रिड : तीनों क्षेत्रों के बीच ऊर्जा साझा करने के लिए विद्युत ग्रिड इंटरकनेक्शन की योजना, ऊर्जा क्षेत्र में गहराई से जुड़ाव का संकेत देती है।
- लॉजिस्टिक हब और ट्रांसपोर्ट नेटवर्क : भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) के तहत मल्टी-मॉडल परिवहन व्यवस्था से व्यापारिक वस्तुओं की आवाजाही अधिक तेज़, सस्ती और कुशल हो जाएगी।
- संयुक्त निवेश प्रयास : यूएई के सॉवरेन वेल्थ फंड्स IMEEC में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण में भागीदार बन सकते हैं, जिससे परियोजनाओं को पूंजी और रणनीतिक सहयोग दोनों मिलेगा।
नवाचार आधारित सहयोग और सतत विकास की दिशा में I2U2 पहल :
- क्षेत्रीय चौकड़ी का उदय : I2U2 (भारत, इज़राइल, यूएई, अमेरिका) को “पश्चिम एशिया का क्वाड” कहा जा सकता है। यह मंच आर्थिक साझेदारी, तकनीकी नवाचार और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक सहयोग तंत्र के रूप में उभरा है।
- खाद्य सुरक्षा में निवेश : यूएई के वित्तीय सहयोग से गुजरात में दो आधुनिक फूड पार्क विकसित किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य कृषि निर्यात को प्रोत्साहित करना और उत्पादन चक्र में खाद्य अपव्यय को न्यूनतम करना है।
- हरित ऊर्जा की ओर कदम : I2U2 के माध्यम से 2030 तक गुजरात और राजस्थान में 60 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने का लक्ष्य तय किया गया है, जिससे स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को बल मिलेगा।
- स्वच्छ तकनीकी साझेदारी : यह मंच सौर ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन और स्मार्ट ग्रिड जैसी आधुनिक तकनीकों में सहयोग के लिए कार्य कर रहा है, जो सतत भविष्य की आधारशिला बनेगा।
- निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी : I2U2 सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल को प्रोत्साहित करता है, जिसके अंतर्गत चारों देशों की प्रमुख कंपनियाँ साझा परियोजनाओं में निवेश और तकनीकी सहयोग कर रही हैं।
- कृषि तकनीक में नवाचार : AI-सक्षम खेती, जल संरक्षण, और नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकी समाधानों के माध्यम से खाद्य उत्पादन को टिकाऊ और जलवायु-संवेदनशील बनाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
- वैश्विक दक्षिण के लिए उदाहरण : I2U2 एक ऐसा कार्यशील मॉडल है, जो विशेष रूप से संयुक्त आर्थिक परियोजनाओं और विकास साझेदारी के संदर्भ में दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए नई दिशा और संभावनाएँ प्रस्तुत करता है।
वैश्विक मंचों पर भागीदारी और अफ्रीकी क्षेत्र में विस्तार :
- ब्रिक्स में यूएई की भूमिका : यूएई के हालिया ब्रिक्स में प्रवेश से उसकी भू-राजनीतिक स्थिति और मजबूत हुई है, जिससे वह एशिया-अफ्रीका के बीच एक सेतु के रूप में उभर रहा है।
- भारत-अफ्रीका समन्वय : भारत, यूएई को एक रणनीतिक सेतु मानते हुए अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार, अवसंरचना और विकास सहयोग को नई गति देने की दिशा में कार्य कर रहा है।
- सीईपीए नेटवर्क का रणनीतिक लाभ : भारत, यूएई के साथ-साथ उसके 25 से अधिक सीईपीए समझौतों का लाभ उठाकर अमीरात को वैश्विक आपूर्ति केंद्र के रूप में उपयोग कर सकता है।
- ऊर्जा-गहन औद्योगिक आकर्षण : यूएई की कम लागत वाली ऊर्जा और स्थिर नियामक ढांचा रसायन, उर्वरक और धातु जैसे क्षेत्रों में भारतीय निवेश के लिए आदर्श अवसर प्रदान करता है।
- लॉजिस्टिक हब के रूप में यूएई : यूएई, भारतीय व्यापार के लिए पश्चिम एशिया और अफ्रीका का प्रवेश द्वार बनता जा रहा है, जो ट्रांसशिपमेंट, निवेश और निर्यात के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
- बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग : भारत और यूएई, G20, ब्रिक्स और IORA जैसे वैश्विक मंचों पर साझा हितों को आगे बढ़ाते हुए नीति समन्वय को सुदृढ़ कर रहे हैं।
- निवेश और कानूनी स्थिरता : यूएई का मजबूत मध्यस्थता ढांचा और निवेशक-अनुकूल कानून भारतीय कंपनियों को सुरक्षा और भरोसे का वातावरण प्रदान करता है।
परंपरा और साझेदारी का संगम सांस्कृतिक कूटनीति :
- अबू धाबी में बीएपीएस मंदिर : सांस्कृतिक प्रतीक : अबू धाबी में उद्घाटित बीएपीएस हिंदू मंदिर अरब जगत का पहला पारंपरिक मंदिर है, जो सांस्कृतिक संवाद और सहिष्णुता का प्रतीक है।
- धार्मिक सह-अस्तित्व का आदर्श : यह मंदिर यूएई में अंतर धार्मिक सौहार्द और विविधता को सम्मान देने की परंपरा को दर्शाता है, जिसे वहाँ की नेतृत्वकर्ता नीति समर्थन देती है।
- प्रवासी भावनाओं का जुड़ाव : यूएई में रह रहे 3.5 मिलियन भारतीय प्रवासी इस पहल को भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव के रूप में देख रहे हैं, जिससे ‘पीपल-टू-पीपल’ संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं।
- सॉफ्ट पावर की प्रस्तुति : भारत, इस सांस्कृतिक सहयोग का उपयोग बहुलवाद, समावेशिता और शांति के वैश्विक संदेश को प्रसारित करने हेतु करता है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रम : शैक्षणिक, कलात्मक और विरासत आधारित कार्यक्रम दोनों समाजों की आपसी समझ और सामंजस्य को प्रोत्साहित करते हैं।
- धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा : इस मंदिर के माध्यम से भारत, आध्यात्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में सक्रिय है, जिससे आर्थिक और सांस्कृतिक दोनों लाभ अपेक्षित हैं।
- द्विपक्षीय सौहार्द का प्रतीक : यूएई सरकार द्वारा इस मंदिर को समर्थन, आपसी विश्वास और साझा मूल्यों का प्रमाण है, जो दोनों देशों के दीर्घकालिक सांस्कृतिक सहयोग को परिभाषित करता है।
निष्कर्ष :
- भारत और यूएई के संबंध अब सिर्फ व्यापारिक सहयोग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने रक्षा, ऊर्जा, वित्तीय नवाचार, शिक्षा, अवसंरचना, और सांस्कृतिक संवाद तक अपने संबंधों को व्यापक विस्तार दिया है।
- सीईपीए, स्थानीय मुद्रा व्यापार और I2U2 जैसी पहलें आर्थिक एकीकरण को गति देती हैं।
वहीं I2U2, IMEEC और ब्रिक्स में यूएई की सक्रियता भारत की वैश्विक रणनीतिक पहुँच को और गहरा बनाती है। - यह साझेदारी, 21वीं सदी के लिए स्थायित्व, विकास और बहुपक्षीय समन्वय का एक आदर्श मॉडल बनकर उभर रही है।
- भारत और यूएई के संबंध अब एक बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी की ओर बढ़ रही है।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. हाल के भारत-यूएई संबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. बराक परमाणु ऊर्जा संयंत्र अरब जगत का पहला बहु-इकाई परमाणु संयंत्र है, जिसमें भारत की भागीदारी है।
2. यूएई में लॉन्च किया गया जयवान कार्ड भारत की रुपे टेक्नोलॉजी स्टैक पर आधारित है।
3. I2U2 समूह में भारत, यूएई, यूके और यूएसए शामिल हैं।
4. भारत और यूएई के बीच सीईपीए 2023 में लागू होगा।
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4
उत्तर – (a)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच व्यापार से परे स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल वित्त, रक्षा और बहुपक्षीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में बढ़ती रणनीतिक साझेदारी किस प्रकार भारत की क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका को प्रभावित कर रही है? इस साझेदारी के व्यापक महत्व पर चर्चा कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
No Comments