पोलावरम – बनकाचेरला अंतरराज्यीय जल विवाद : विकास बनाम अधिकार की लड़ाई

पोलावरम – बनकाचेरला अंतरराज्यीय जल विवाद : विकास बनाम अधिकार की लड़ाई

पाठ्यक्रम – मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 – भारतीय राजनीति एवं शासन व्यवस्था

प्रारंभिक परीक्षा – भारत में सहकारी संघवाद, अंतर्राज्यीय विवाद, अर्ध-न्यायिक निकाय, पोलावरम–बनकाचेरला लिंक परियोजना (PBLP), जल संसाधन, अंतर्राज्यीय नदी परियोजना

 

ख़बरों में क्यों ? 

 

 

  • हाल ही में केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे जल विवादों के समाधान के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति गठित करने की घोषणा की है। 
  • केंद्र सरकार द्वारा यह कदम खासकर पोलावरम–बनकाचेरला लिंक परियोजना (PBLP) और कृष्णा-गोदावरी नदियों के जल बँटवारे को लेकर पैदा हुए मतभेदों को दूर करने के उद्देश्य से उठाया गया है। 
  • इस विवाद की जड़ें दोनों राज्यों के बीच जल संसाधनों पर अधिकार, उसके आपस में वितरण, और परियोजनाओं की वैधता को लेकर गहरे मतभेदों में हैं, जो कानूनी, पर्यावरणीय और संघीय स्तर पर जटिलताओं को जन्म दे रहा है।

 

पोलावरम-बनकाचेरला लिंक परियोजना (PBLP) से संबंधित विवाद की पृष्ठभूमि क्या है?

 

  • यह परियोजना गोदावरी नदी के बाढ़ के अतिरिक्त जल को कृष्णा और पेन्ना नदियों की ओर मोड़कर रायलसीमा क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल की समस्या को कम करने का प्रयास है। योजना के अंतर्गत गोदावरी के अतिरिक्त जल को पोलावरम बांध से निकालकर प्रकाशम बैराज और बोलापल्ली जलाशय के जरिए सुरंग के माध्यम से बनकाचेरला जलाशय तक पहुँचाया जाएगा। इससे दक्षिण आंध्र प्रदेश के सूखाग्रस्त इलाकों में जल सुरक्षा और कृषि स्थिरता बढ़ाने की उम्मीद है।

 

पोलावरम- बनकाचेरला परियोजना विवाद का प्रमुख कारण : 

 

  1. आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 का उल्लंघन होना : तेलंगाना का आरोप है कि आंध्र प्रदेश ने बिना केंद्र, कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (KRMB) और केंद्रीय जल आयोग (CWC) की मंजूरी के इस परियोजना को आगे बढ़ाया है। अधिनियम के तहत ऐसे किसी भी अंतर-राज्यीय नदी परियोजना के लिए पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
  2. अतिरिक्त जल की सीमा पर विवाद : आंध्र प्रदेश ने गोदावरी से 200 TMC अतिरिक्त जल का दावा किया है, जिसे तेलंगाना ने मान्यता नहीं दी है। तेलंगाना का तर्क है कि इस दावे को किसी सक्षम अथवा न्यायाधिकरण द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया है।
  3. पर्यावरणीय और अनुमतियों से जुड़ी चिंताएँ : पर्यावरण विशेषज्ञ समिति ने ओडिशा और छत्तीसगढ़ के डूब क्षेत्र विवाद के कारण परियोजना की पुनः पर्यावरणीय समीक्षा और केंद्रीय जल आयोग से परामर्श की मांग की है।
  4. जलांतरण से संबंधित अधिकार विवाद की मूल जड़ : तेलंगाना का कहना है कि बिना आपसी सहमति के गोदावरी जल को कृष्णा बेसिन में स्थानांतरित करना उसकी परियोजनाओं के लिए जल उपलब्धता को प्रभावित करेगा।
  5. सहकारी संघवाद का उल्लंघन का मामला होना : तेलंगाना के मुताबिक, आंध्र प्रदेश की एकपक्षीय पहल साझा संसाधनों के प्रबंधन के लिए आवश्यक आपसी सहमति के सिद्धांत के खिलाफ है।

 

भारत में अंतर्राज्यीय जल विवादों के समाधान हेतु मौजूद कानूनी और संवैधानिक तंत्र : 

 

  • अनुच्छेद 262 संसद को अधिकार देता है कि वह अंतर्राज्यीय नदियों के जल विवादों के लिए कानून बना सके और विवादों का निपटारा कर सके।
  • नदी बोर्ड अधिनियम, 1956 केंद्र को राज्यों से परामर्श कर नदी बोर्ड बनाने का अधिकार देता है, लेकिन अब तक कोई बोर्ड नहीं बना है।
  • अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 विवाद समाधान के लिए केंद्र सरकार वार्ता करती है, फिर विवाद न सुलझने पर जल विवाद अधिकरण गठित किया जाता है, जिसके निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका विवादों में न्यायालय का हस्तक्षेप अनुच्छेद 262 के दायरे में सीमित होते हुए भी होता रहा है, जैसे महादयी जल विवाद (2018) सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र के बीच जल आवंटन को सुलझाया तथा अधिकरण के निर्णय के कार्यान्वयन का निर्देश दिया है।

 

भारत के विभिन्न राज्यों में आपस में जल विवाद के समाधान में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ : 

 

 

  • निर्णय प्रक्रिया में देरी का होना : जल विवाद अधिकरणों के फैसलों में दशकों लग जाते हैं, जिससे विवाद लंबित रहता है।
  • विश्वसनीय जल डेटा आंकड़ों का अभाव होना : राज्यों के द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों में भारी मतभेद होते हैं, क्योंकि स्वतंत्र, विश्वसनीय जल आंकड़ों का अभाव है।
  • कानूनी जटिलताओं का होना : अनुच्छेद 262 के बावजूद न्यायालयों का हस्तक्षेप विवादों को और जटिल बनाता है।
  • निर्णय के क्रियान्वयन में आने वाली प्रमुख अड़चनों का होना : अधिकरण के आदेशों को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित करने में विलंब होता है, जिससे विवाद अनसुलझे बने रहते हैं।

 

समाधान की राह :

 

 

  1. समयबद्ध न्यायनिर्णय और स्थायी न्यायाधिकरण की स्थापना की आवश्यकता : विवादों के समाधान के लिए एक निश्चित समय सीमा और विशेषज्ञों सहित एक स्थायी न्यायाधिकरण की स्थापना आवश्यक है।
  2. विश्वसनीय और पारदर्शी जल डेटा प्रबंधन सुनिश्चित करने की जरूरत : एक स्वतंत्र नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना कर वास्तविक समय के जल आंकड़ों का संकलन और निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिए।
  3. सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने की जरूरत : राज्यों के बीच संवाद और विश्वास स्थापित करने हेतु अंतर्राज्यीय परिषद जैसे मंचों का अधिक उपयोग किया जाना चाहिए।
  4. परियोजनाओं की वैधता को अनिवार्य और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने की जरूरत : परियोजनाओं की योजना, स्वीकृति और क्रियान्वयन में सभी पक्षों की सहमति और कानूनी प्रावधानों का पालन अनिवार्य होना चाहिए।


निष्कर्ष : 

 

  1. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच पोलावरम-बनकाचेरला लिंक परियोजना एवं जल संसाधन विवाद केवल दो राज्यों का मामला नहीं है, बल्कि भारत में संघीयता, संसाधन प्रबंधन और न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं का दर्पण है। 
  2. इस विवाद के समाधान के लिए संवैधानिक, कानूनी और तकनीकी दृष्टिकोणों को एक साथ लाना होगा तथा सभी हितधारकों की सहमति और सहभागिता आवश्यक है। 
  3. देश में सभी अंतर्राज्यीय जल विवादों के समाधान के लिए विभिन्न राज्यों के बीच आपसी सहमति की जरूरत है, तभी देश में विभिन्न जल – परियोजनाओं के लिए साझा संसाधनों के न्यायसंगत और सतत प्रबंधन की दिशा में सार्थक प्रगति हो सकेगी।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं इंडियन एक्सप्रेस। 

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. पोलावरम-बनकाचेरला लिंक परियोजना (PBLP) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए : 

  1. यह परियोजना गोदावरी नदी के अतिरिक्त जल को कृष्णा और पेन्ना नदियों की ओर मोड़ने का प्रयास है।
  2. यह परियोजना केवल तेलंगाना के शुष्क क्षेत्रों के लिए लाभकारी है।
  3. इस परियोजना के द्वारा पोलावरम बांध से जल को बनकाचेरला जलाशय तक सुरंगों के माध्यम से पहुँचाने की योजना है।
  4. इस परियोजना को केंद्रीय जल आयोग की पूर्व अनुमति से ही प्रारंभ की गई थी।

उपरोक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है/ हैं ? 

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं।

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – A
व्याख्या : 

  • यह परियोजना गोदावरी के अतिरिक्त जल को रायलसीमा जैसे सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में भेजने की योजना है। कथन 2 और 4 गलत हैं, क्योंकि यह परियोजना केवल तेलंगाना के लिए नहीं, बल्कि आंध्र के लिए प्रस्तावित है, और बिना CWC की अनुमति के आगे बढ़ाई गई थी।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. पोलावरम-बनकाचेरला लिंक परियोजना (PBLP) से जुड़ा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच जल विवाद किस कारण उत्पन्न हुआ है? चर्चा कीजिए किभारत में अंतर्राज्यीय जल विवादों के समाधान हेतु मौजूदा संवैधानिक व कानूनी तंत्र की प्रमुख चुनौतियाँ तथा उसके समाधान की राह क्या हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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