28 May RoDTEP का पुनरुद्धार : भारत के निर्यात – आधारित भविष्य की नई उड़ान
पाठ्यक्रम मानचित्रण :
सामान्य अध्ययन – 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास – RoDTEP का पुनरुद्धार बनाम भारत के निर्यात आधारित भविष्य की नई उड़ान की दिशा।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए :
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), निर्यातोन्मुख इकाइयों (EOU), भारतीय सीमा शुल्क पोर्टल, RoDTEP (निर्यात उत्पादों पर शुल्क एवं करों की छूट) योजना, पीएम गति शक्ति
मुख्य परीक्षा के लिए :
RoDTEP योजना का उद्देश्य क्या है? MEIS योजना के स्थान पर RoDTEP योजना क्यों शुरू की गई?
खबरों में क्यों?
- हाल ही में भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेते हुए अग्रिम प्राधिकरण (AA) धारकों, निर्यातोन्मुख इकाइयों (EOU) तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZ) को RoDTEP (निर्यात उत्पादों पर शुल्क एवं करों की छूट) योजना का लाभ पुनः प्रदान करने की घोषणा की है।
- भारत सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय 5 फरवरी, 2024 को योजना की समाप्ति के बाद उत्पन्न हुई अनिश्चितता को दूर करता है। इससे भारत के प्रमुख निर्यातकों को कर-तटस्थता का लाभ मिलेगा और वैश्विक बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति मजबूत होगी।
- इस योजना के अंतर्गत वे शुल्क और कर वापस लिए जाते हैं जो अन्य किसी योजना में शामिल नहीं होते हैं।
- देश के निर्यात संवर्धन संगठनों ने इस योजना की पुनर्बहाली के लिए जोरदार मांग की थी, जिसके परिणामस्वरूप यह कदम उठाया गया है।
RoDTEP क्या है?
- भारत सरकार द्वारा RoDTEP ( निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट ) योजना 1 जनवरी, 2021 को शुरू की गई थी। इस योजना का मुख्य लक्ष्य उन करों, शुल्कों और लेवी की प्रतिपूर्ति करना है, जो निर्यातकों को अन्य मौजूदा योजनाओं के तहत वापस नहीं मिलते थे। यह योजना MEIS (भारत से व्यापारिक निर्यात योजना) के स्थान पर लाई गई थी, क्योंकि MEIS को विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के साथ असंगत पाया गया था।
RoDTEP के प्रमुख उद्देश्य :
- निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना : यह योजना निर्यातकों को उन अप्रतिपूर्ति योग्य शुल्कों और करों (जैसे बिजली शुल्क, ईंधन कर, मंडी कर) की भरपाई करती है, जिससे भारतीय उत्पादों की वैश्विक बाजारों में लागत कम होती है और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है।
- विश्व व्यापार संगठन का अनुपालन : MEIS के विपरीत, RoDTEP को WTO के अनुरूप बनाया गया है. यह सुनिश्चित करता है कि भारत की निर्यात सब्सिडी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के अनुरूप हो, जिससे भविष्य में किसी भी विवाद से बचा जा सके।
- ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहन देना : निर्यातकों पर लागत के बोझ को कम करके, यह योजना घरेलू विनिर्माण और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देती है।
- निर्बाध प्रतिपूर्ति : यह योजना डिजिटल और स्वचालित है, जो ICEGATE (भारतीय सीमा शुल्क पोर्टल) पर क्रेडिट लेजर के माध्यम से कुशल, पारदर्शी और शीघ्र रिफंड सुनिश्चित करती है।
- व्यापक निर्यात क्षेत्रों को समर्थन देना : RoDTEP में विभिन्न क्षेत्रों और उत्पादों को शामिल किया गया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि उच्च घरेलू मूल्य संवर्धन वाले क्षेत्रों को भी वित्तीय सहायता मिले।
- विदेशी मुद्रा आय में वृद्धि होना : निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाकर, यह योजना वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने और अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करने में मदद करती है।
- निर्यात बास्केट का विविधीकरण : लागत के दबाव को कम करके, यह योजना निर्यातकों को नए बाजारों और उत्पादों की खोज करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे पारंपरिक वस्तुओं से परे भारत के निर्यात पोर्टफोलियो में विविधता आती है।
- रोजगार-प्रधान क्षेत्रों को समर्थन देना : RoDTEP विशेष रूप से श्रम-प्रधान क्षेत्रों जैसे कपड़ा, चमड़ा, कृषि और हस्तशिल्प को लाभ पहुंचाता है, जिससे रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलता है और ग्रामीण व अर्ध-शहरी आजीविका को समर्थन मिलता है।
RoDTEP की प्रमुख विशेषताएं :
- RoDTEP का प्राथमिक लक्ष्य और इसका मुख्य उद्देश्य : RoDTEP का प्राथमिक लक्ष्य उन अंतर्निहित करों, शुल्कों और लेवी की प्रतिपूर्ति करना है, जिन्हें किसी अन्य निर्यात प्रोत्साहन योजना के तहत वापस नहीं किया जाता है, जिससे निर्यातित वस्तुओं पर कर तटस्थता सुनिश्चित होती है।
- सभी अप्रत्यक्ष करों और शुल्कों को शामिल किया जाना : इसमें राज्य वैट, मंडी कर, कोयला उपकर, बिजली शुल्क और परिवहन में प्रयुक्त ईंधन जैसे छिपे हुए करों और शुल्कों को शामिल किया गया है, जिन पर पहले छूट नहीं दी जाती थी।
- WTO के अनुरूप होना : यह योजना WTO के अनुरूप है और MEIS जैसी पूर्ववर्ती योजनाओं का स्थान लेती है, जिन्हें निर्यात सब्सिडी होने के कारण WTO में चुनौती दी गई थी।
- पात्रता : यह सभी निर्यात क्षेत्रों पर लागू होता है. शुरुआत में एए धारकों, ईओयू और एसईजेड को छोड़कर, अब उन्हें भी 2025 तक इसमें शामिल कर लिया गया है, जिससे यह अधिक समावेशी और व्यापक हो गया है।
- डिजिटल प्रसंस्करण : यह छूट सीमा शुल्क से जुड़े एक स्वचालित, डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से हस्तांतरणीय शुल्क क्रेडिट/इलेक्ट्रॉनिक स्क्रिप्स के रूप में जारी की जाती है, जिससे पारदर्शिता और उपयोग में आसानी सुनिश्चित होती है।
- दोहरे लाभ का निषेध : यदि निर्यातकों ने अग्रिम प्राधिकरण (पुनर्स्थापना से पूर्व), समान करों के लिए शुल्क वापसी, या ईओयू/एसईजेड लाभ जैसी कुछ अन्य योजनाओं के अंतर्गत लाभ प्राप्त कर लिया है, तो वे RoDTEP का दावा नहीं कर सकते, जिससे दोहरे दावों से बचा जा सके।
- उत्पाद के अनुसार गतिशील दरों का होना : RoDTEP दरें उत्पाद/HS कोड के अनुसार अलग-अलग होती हैं, तथा उद्योग हितधारकों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर एक समर्पित RoDTEP समिति द्वारा समय-समय पर संशोधित की जाती हैं।
- निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए समर्थन : निर्यात मूल्य श्रृंखला में छिपी लागतों को बेअसर करके, RoDTEP भारतीय निर्यात की मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाता है, जिससे आउटबाउंड व्यापार को बढ़ावा देने के सरकार के लक्ष्य को समर्थन मिलता है।
RoDTEP का रणनीतिक महत्व :
- निर्यात लागत में कमी लाना : यह योजना निर्यातित उत्पादों पर लगने वाले अप्रत्यक्ष करों और शुल्कों (जैसे केंद्रीय और राज्य कर, लेवी) को वापस कर देती है, जिससे भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं।
- कर तटस्थता या निर्यात पर कर भार से मुक्ति : यह योजना निर्यात को पूरी तरह अप्रत्यक्ष करों से मुक्त रखने के सिद्धांत को लागू करती है, जिससे कर तटस्थता सुनिश्चित होती है।
- अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप ढांचा : इस योजना ने पिछली MEIS (Merchandise Exports from India Scheme) योजना का स्थान लिया है। RODTEP विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के पूरी तरह से अनुरूप है, जो व्यापार विवादों और संभावित प्रतिबंधों के जोखिम को कम करता है।
- MSME और लघु निर्यातकों के लिए निर्यात प्रोत्साहन : कम मार्जिन वाले क्षेत्र जैसे कपड़ा, हस्तशिल्प, कृषि आदि को RoDTEP से राहत मिलती है, जिससे उन्हें वैश्विक व्यापार में प्रभावी भागीदारी करने का अवसर मिलता है।
- व्यापक लाभार्थी आधार : हाल में AA, EOUs (Export Oriented Units) और SEZ (Special Economic Zone) इकाइयों को भी शामिल किए जाने के बाद, यह योजना अब लगभग सभी निर्यातकों को लाभ पहुंचा रही है, जिससे इसकी पहुंच और प्रभावशीलता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- पारदर्शिता और दक्षता : यह योजना पूरी तरह से स्वचालित आईटी प्रणाली के माध्यम से काम करती है, जिससे छूट दावों का तेज़ और पारदर्शी निपटान सुनिश्चित होता है। इससे मानवीय हस्तक्षेप कम होता है और प्रक्रिया अधिक कुशल बनती है।
- ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ को समर्थन देना : भारतीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनाकर, RODTEP ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों को मजबूत करता है, जिससे घरेलू विनिर्माण और निर्यात दोनों को बढ़ावा मिलता है।
- औपचारिक व्यापार को बढ़ावा : RoDTEP के तहत अनिवार्य दस्तावेज़ीकरण और डिजिटल प्रक्रियाएं व्यापार को अधिक औपचारिक और संगठित रूप में ढालने में मदद करती हैं।
भारतीय निर्यात क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ :
- उच्च लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे की कमी होना : खराब बुनियादी ढाँचा, भीड़भाड़ वाले बंदरगाह और ऊँची आंतरिक परिवहन लागत भारतीय निर्यात की लागत को बढ़ाती है, जिससे वे वैश्विक स्तर पर कम प्रतिस्पर्धी हो जाते हैं।
- सीमित निर्यात विविधता का होना : भारत का निर्यात कुछ ही क्षेत्रों जैसे पेट्रोलियम, रत्न एवं आभूषण और वस्त्र तक सीमित है। उच्च मूल्य और प्रौद्योगिकी-केंद्रित क्षेत्रों में इसकी उपस्थिति बहुत ही कम और सीमित है।
- जटिल नियामक ढाँचा का होना : निर्यातकों को अक्सर विभिन्न विभागों से कई प्रकार की स्वीकृतियों, दस्तावेज़ों और असंगत नियमों का सामना करना पड़ता है, जिससे देरी होती है और अनुपालन लागत बढ़ती है।
- मुक्त व्यापार समझौतों ( FTA ) की सीमित पहुंच : आसियान देशों जैसे प्रतिस्पर्धियों की तुलना में भारत के पास कम मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) हैं, जिससे तरजीही बाज़ार तक पहुँच सीमित हो जाती है और प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित होती है।
- मुद्रा अस्थिरता से असुरक्षा और अस्थिर विनिमय दरों का होना : विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव विशेष रूप से एमएसएमई निर्यातकों के लिए जोखिमपूर्ण होता है, जिनके पास हेजिंग साधन नहीं होते हैं।
- ऋण और वित्तीय संसाधनों की कमी का होना : छोटे निर्यातकों के लिए सुलभ और सस्ता वित्त उपलब्ध नहीं है, जिससे उनका वैश्विक विस्तार और तकनीकी उन्नयन बाधित होता है।
- विदेशी बाज़ारों में गैर-टैरिफ बाधाओं का होना : भारतीय निर्यातकों को अक्सर विकसित बाज़ारों में स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपायों, गुणवत्ता मानकों और प्रमाणन संबंधी मुद्दों का सामना करना पड़ता है, जिससे बाज़ार तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
- अनुसंधान एवं नवाचार की कमी का होना : भारतीय निर्यातकों का ध्यान अब भी मूल्य संवर्धन, डिजाइन और ब्रांडिंग के बजाय मूल वस्त्रों और कच्चे माल पर केंद्रित है। फलतः मूल्य संवर्धन, नवाचार और ब्रांडिंग पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसके कारण कम मूल्य वाली वस्तुओं और उत्पादों पर निर्भरता बढ़ रही है।
- वैश्विक अनिश्चितताएँ और भू-राजनीतिक तनाव का होना : निर्यातक वैश्विक आर्थिक मंदी, व्यापार युद्ध और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान (जैसे COVID-19, लाल सागर संकट) जैसे बाहरी झटकों के प्रति संवेदनशील हैं। कोविड-19, रूस-यूक्रेन संघर्ष, लाल सागर संकट जैसे बाहरी झटकों से भारतीय आपूर्ति श्रृंखला और निर्यात गहरे प्रभावित हुए हैं।
समाधान / आगे की राह :
- बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स को सुदृढ़ करना : निर्यात से जुड़ी लागत और समय को कम करने के लिए, पीएम गति शक्ति और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति जैसी पहलों के माध्यम से बंदरगाहों, सड़कों और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क का आधुनिकीकरण और विस्तार करना महत्वपूर्ण है।
- नियामक प्रक्रियाओं का सरलीकरण और डिजिटलीकरण करना : नियामक बाधाओं को कम करने के लिए, सिंगल विंडो क्लीयरेंस के माध्यम से डिजिटल और सुव्यवस्थित सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को लागू करना आवश्यक है। यह निर्यातकों के लिए व्यापार को आसान बनाएगा।
- निर्यात विविधता को बढ़ावा देना : भारत को अपने निर्यात बास्केट में विविधता लानी चाहिए, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ग्रीन टेक्नोलॉजी जैसे उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। साथ ही, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे पारंपरिक बाजारों से परे नए बाजारों में विस्तार करना भी महत्वपूर्ण है।
- MSME और नवाचार आधारित इकाइयों को सशक्त बनाना : छोटे निर्यातकों और स्टार्टअप्स को सहायता प्रदान करना महत्वपूर्ण है। इसमें निर्यात वित्त, प्रमाणन और अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन तक उनकी पहुंच में सुधार करना शामिल है।
- व्यापार समझौतों और कूटनीति को सशक्त बनाना : भारत को प्रमुख साझेदारों के साथ संतुलित मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) को अंतिम रूप देना चाहिए और बहुपक्षीय व्यापार मंचों में अपनी भूमिका बढ़ानी चाहिए।
- वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एकीकरण और मूल्य श्रृंखला एकीकरण को बढ़ावा देना : उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और विनिर्माण को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अतिरिक्त, निर्यात-उन्मुख क्षेत्रों में क्लस्टर विकास का समर्थन करना भी आवश्यक है।
- गुणवत्ता मानकों और प्रमाणन प्रणाली को वैश्विक बनाना : वैश्विक गुणवत्ता मानदंडों के अनुरूप होने और अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परीक्षण और प्रमाणन क्षमताओं को बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
- ब्रांड इंडिया और डाटा-चालित रणनीति के विकास को बढ़ावा देना : भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय अभियान शुरू किए जाने चाहिए। इसके साथ ही, बाजार की जानकारी और खरीदार के रुझानों को समझने के लिए डेटा एनालिटिक्स टूल का उपयोग करना भी महत्वपूर्ण है।
- पारदर्शिता, नीतिगत स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित करना आवश्यक : निर्यातकों में दीर्घकालिक विश्वास बनाए रखने के लिए RoDTEP, SEIS और DEH जैसी योजनाओं में नीतिगत स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
निष्कर्ष :
- RoDTEP (Remission of Duties and Taxes on Exported Products) की प्रमुख विशेषताएं इसे एक प्रभावी और आधुनिक निर्यात प्रोत्साहन योजना बनाती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय निर्यात को बढ़ावा देना और वैश्विक व्यापार में देश की स्थिति को मजबूत करना है।
- एए धारकों, ईओयू (निर्यात-उन्मुख इकाइयों) और एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्रों) को RoDTEP लाभों की बहाली भारतीय निर्यात के लिए कर तटस्थता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने की दिशा में एक समय पर और रणनीतिक कदम है।
- जैसे-जैसे वैश्विक व्यापार की गतिशीलता विकसित होती है और संरक्षणवादी प्रवृत्तियाँ बढ़ती हैं, RoDTEP जैसी योजनाएँ छिपी हुई लागतों को कम करके और WTO मानदंडों के अनुपालन को बढ़ाकर भारत के निर्यात की गति को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, इन लाभों का सही मायने में दोहन करने के लिए, भारत को व्यापक व्यापार सुविधा सुधारों के साथ प्रोत्साहन-आधारित योजनाओं को पूरक बनाना चाहिए। इसमें बुनियादी ढाँचे का उन्नयन, एफटीए का विस्तार और एमएसएमई के लिए मजबूत संस्थागत समर्थन शामिल है।
- एक मजबूत वैश्विक व्यापार उपस्थिति के साथ आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए एक स्थिर, पारदर्शी और सहायक निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है। यह रोजगार सृजित करेगा, विदेशी मुद्रा अर्जित करेगा और आर्थिक विकास में तेजी लाएगा।
- अतः एक स्थिर, नीति-संगत और संस्थागत रूप से समर्थ निर्यात परितंत्र ही आत्मनिर्भर भारत के आर्थिक विजन को साकार कर सकता है, जो न केवल रोजगार और विदेशी मुद्रा का स्रोत बनेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की हिस्सेदारी को निर्णायक रूप से बढ़ा भी सकेगा।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 28th May 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. RoDTEP (निर्यात उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट) योजना के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- इसका उद्देश्य किसी अन्य निर्यात प्रोत्साहन योजना के तहत वापस नहीं किए गए अंतर्निहित करों और शुल्कों की प्रतिपूर्ति करना है।
- यह योजना WTO के अनुरूप है और इसने MEIS योजना को प्रतिस्थापित किया है।
- प्रारंभ में, इस योजना में अग्रिम प्राधिकरण धारक और SEZ इकाइयाँ शामिल थीं।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा सही है / हैं?
A. केवल 1 और 2
B. केवल 2 और 3
C. केवल 1 और 3
D. 1, 2 और 3
उत्तर – A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. RoDTEP (Remission of Duties and Taxes on Exported Products) योजना भारत के निर्यात प्रोत्साहन ढांचे में किस प्रकार एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है? यह निर्यात प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में किस प्रकार महत्वपूर्ण और सहायक है? चर्चा कीजिए कि भारतीय निर्यातकों को किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, और वैश्विक व्यापार में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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