27 Jul आधुनिक भारतीय इतिहास में बाल गंगाधर तिलक के विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ आधुनिक भारतीय इतिहास , महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तिलक की भूमिका तथा वर्तमान समय में उनके विचारों का महत्त्व ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारतीय होम रूल आंदोलन, लखनऊ पैक्ट, गरम दल , केसरी , मराठा ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ आधुनिक भारतीय इतिहास में बाल गंगाधर तिलक के विचारों की वर्तमान प्रासंगिकता ’ से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, 23 जुलाई 2024 को, भारत ने बाल गंगाधर तिलक की 168वीं जयंती मनाई। इस अवसर पर स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् के रूप में लोकमान्य की अद्वितीय विरासत को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक : व्यक्तित्व और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान :
- लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था।
- पेशे से एक वकील होने के बावजूद, उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता है। उनके विचारों और कार्यों ने उन्हें भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है।
- लोकमान्य तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान “ स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा ” जैसे क्रांतिकारी नारे दिए, जो भारतीयों की राष्ट्रीय आकांक्षाओं को अभिव्यक्त करते थे।
- उनका निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ।
- बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के प्रारंभिक और प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिनका योगदान न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की दिशा में था, बल्कि उन्होंने तत्कालीन भारत में सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
‘ लाल-बाल-पाल ‘ की तिकड़ी और ‘ गरम दल ‘ का गठन :
- लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर बाल गंगाधर तिलक ने ‘ लाल-बाल-पाल ‘ की तिकड़ी का गठन किया।
- यह तिकड़ी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ‘ गरम दल ‘ या ‘ उग्रपंथी दल ’ के रूप में जानी गई। गरम दल ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कठोर संघर्ष की आवश्यकता पर जोर दिया और भारतीय जनमानस को आत्मनिर्भरता और स्वाधीनता की दिशा में प्रेरित किया।
- उनकी विचारधारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अधिक सशक्त और आक्रामक दृष्टिकोण की समर्थक थी, जो उस समय की कांग्रेस की नरमपंथी विचारधारा से अलग और भिन्न थी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश :
- सन 1890 में तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल होकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी।
- उनकी नेतृत्व क्षमता और विचारशीलता ने कांग्रेस की नीतियों को एक नई दिशा प्रदान की।
- उन्होंने स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की, जिसके तहत उन्होंने भारतीयों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्त्रों और उत्पादों को अपनाने की अपील की।
- यह आंदोलन भारत में आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ था।
होम रूल लीग की स्थापना :
- अप्रैल 1916 में तिलक ने बेलगाम में अखिल भारतीय होम रूल लीग (All India Home Rule League) की स्थापना की।
- यह लीग भारत के स्वशासन के लिए एक प्रमुख संस्था थी। इसका कार्यक्षेत्र महाराष्ट्र (बॉम्बे को छोड़कर), मध्य प्रांत, कर्नाटक और बरार में था।
- होम रूल लीग के माध्यम से तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन को संगठित किया और भारतीयों को स्वशासन के महत्व और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
हिंदू-मुस्लिम एकता :
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए भी महत्वपूर्ण प्रयास किए।
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर लखनऊ पैक्ट (1916) पर हस्ताक्षर किए।
- यह पैक्ट दोनों समुदायों के बीच समझौते और सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जो आगे चलकर भारतीय राजनीति में एकता और सामंजस्य को बढ़ावा देने में सहायक साबित हुआ था।
पत्रकारिता और साहित्य :
- तिलक ने मराठी भाषा में ‘केसरी’ और अंग्रेजी भाषा में ‘मराठा’ नामक समाचार पत्रों का प्रकाशन किया।
- ये पत्र – पत्रिकाएँ स्वतंत्रता संग्राम के विचारों को फैलाने और जनता में जागरूकता पैदा करने के लिए महत्वपूर्ण माध्यम थीं।
- इसके अतिरिक्त, तिलक ने ‘ गीता रहस्य ‘ और ‘ द आर्कटिक होम इन द वेदाज ‘ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तकों का लेखन किया। ‘गीता रहस्य’ में उन्होंने भगवद गीता की गहराई से व्याख्या की और उसे भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीयता के संदर्भ में प्रस्तुत किया।
सामाजिक योगदान :
- लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी के संस्थापक थे, जिसे 1884 में स्थापित किया गया था।
- इस सोसाइटी की स्थापना में गोपाल गणेश अगरकर और अन्य सहयोगी भी शामिल थे।
- इस सोसाइटी का उद्देश्य भारतीय समाज में शिक्षा का प्रसार करना और सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहित करना था।
- लोकमान्य तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी जैसे त्योहार को लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उन्होंने इस त्योहार को एक सामूहिक और सांस्कृतिक आयोजन के रूप में स्थापित किया, जिससे यह त्योहार केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी स्थापित हुआ।
- तिलक ने सम्राट छत्रपति शिवाजी की जयंती पर शिव जयंती मनाने का प्रस्ताव पेश किया। इस पहल ने शिवाजी के ऐतिहासिक महत्व को पुनर्जीवित किया और उनकी विरासत को नई ऊर्जा दी।
- तिलक ने हिंदू धर्म के अनुयायियों को अत्याचार के खिलाफ खड़ा होने और अपने धर्मग्रंथों का उपयोग करने पर जोर दिया।
- इस दृष्टिकोण ने धार्मिक आत्म-रक्षा की भावना को प्रोत्साहित किया और लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
वर्तमान समय में तिलक के विचारों की प्रासंगिकता :
- स्वदेशी उत्पादों और स्वदेशी आंदोलन : तिलक ने स्वदेशी उत्पादों को अपनाने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन को प्रोत्साहित किया। उन्होंने भारतीय उद्योगों और उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कई अभियान चलाए। आज के भारत में, जहाँ ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना को प्रमुखता दी जा रही है, तिलक के विचारों की प्रासंगिकता अत्यधिक है। उनकी विचारधारा हमें प्रेरित कर सकती है कि हम अपनी स्वदेशी क्षमताओं को पहचानें और उनका पूर्ण उपयोग करें। इस प्रकार, आर्थिक राष्ट्रवाद के पुनरुद्धार में तिलक की दृष्टि को शामिल किया जा सकता है, जिससे भारत न केवल आर्थिक रूप से सशक्त होगा बल्कि देशवासियों की आत्म-निर्भरता भी बढ़ेगा।
- मातृभाषा का महत्व : तिलक ने कांग्रेस की स्थानीय बैठकों में मातृभाषा के उपयोग की वकालत की थी, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि मातृभाषा के माध्यम से आम लोगों तक सन्देश और विचार पहुँचाना अधिक प्रभावी होगा।
- हाल ही में भारत सरकार ने ‘ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ’ (2020) के माध्यम से संस्कृत और स्थानीय और मातृ भाषाओं को अपनाने पर जोर दिया है। इस नीति के तहत, भारतीय भाषाओं को शिक्षा और प्रशासन में अधिक महत्व दिया जा रहा है। तिलक की यह दृष्टि कि मातृभाषा का प्रयोग लोगों के साथ सच्चा संवाद स्थापित करने के लिए आवश्यक है, आज भी प्रासंगिक है और वर्तमान में भारत सरकार द्वारा ‘ नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ’ (2020) नीति के माध्यम से इसे साकार किया जा रहा है।
- जातिवाद और अस्पृश्यता के खिलाफ दृष्टिकोण : तिलक जातिवाद और अस्पृश्यता के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने समाज में जातियों और संप्रदायों के बीच विभाजन को समाप्त करने के लिए व्यापक आंदोलन चलाया। उनके समय में समाज में जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई ने महत्वपूर्ण सामाजिक बदलावों की नींव रखी। आज भी भारतीय समाज में जातिवाद और सामाजिक असमानताएँ एक चुनौती बनी हुई हैं। तिलक के दृष्टिकोण की इस संदर्भ में प्रासंगिकता है कि हमें समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने और समानता की दिशा में काम करना चाहिए। उनके विचार हमें यह याद दिलाते हैं कि सामाजिक समरसता और एकता के लिए लगातार प्रयास करना अत्यंत आवश्यक हैं।
निष्कर्ष :
- लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के भारतीय समाज और राजनीति में कई महत्वपूर्ण विचार विशेष रूप से स्वदेशी आंदोलन, मातृभाषा के महत्व और जातिवाद के खिलाफ उनके दृष्टिकोण आज भी हमारे समाज को मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
- लोकमान्य बालगंगाधर तिलक का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रति उनके दृढ़ समर्पण और राष्ट्रीयता की गहरी भावना को दर्शाता है। इस प्रकार, तिलक के विचार आज भी भारतीय समाज और राजनीति में अत्यधिक प्रासंगिक हैं। उनकी दृष्टि हमें यह सिखाती है कि स्वदेशी उत्पादों को अपनाना, मातृभाषा का सम्मान करना और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष करना, भारतीय समाज की प्रगति और एकता के लिए अत्यंत आवश्यक है। इन विचारों को अपनाकर हम एक समृद्ध और सशक्त भारत की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
स्रोत – द इंडियन एक्सप्रेस एवं पीआईबी।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. निम्नलिखित जानकारी पर विचार करें:
अखबार | संबंधित व्यक्तित्व | क्षेत्र | |
1 | केसरी | बालगंगाधर तिलक | महाराष्ट्र |
2 | कालांतर | लाला लाजपत राय | पंजाब |
3 | अमृत बाज़ार पत्रिका | शिशिर कुमार घोष | बंगाल |
4 | स्वराज | महात्मा गाँधी | गुजरात |
उपरोक्त पंक्तियों में से कितनी पंक्तियों में दी गई जानकारी सही ढंग से मेल खाती है?
(a) 1 और 2
(b) 2 और 3
(c) 3 और 4
(d) 1 और 3
उत्तर – (d)
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. “ भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करना लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के उल्लेख के बिना अधूरी है।” क्या आप इससे सहमत हैं? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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