07 Jan ट्रांसजेंडर पहचान पत्र : कानूनी बदलाव और सामाजिक स्वीकृति
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के अंतर्गत ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था , सामाजिक न्याय , ट्रांसजेंडर से संबंधित मुद्दे और उससे संबंधित कल्याण योजनाएँ ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019, उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020, लैगिंक डिस्फोरिया , उच्च न्यायालय, आधार कार्ड , जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 , अनुच्छेद 21 , ट्रांसजेंडर पहचान पत्र ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में सुश्री X बनाम कर्नाटक राज्य, 2024 मामले में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति अपने जन्म प्रमाण पत्र पर नाम और लिंग में बदलाव कर सकते हैं।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए यह बदलाव उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 और उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 के तहत किया जा सकता है, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को इस प्रकार के परिवर्तन की स्पष्ट अनुमति दी गई है।
सुश्री X बनाम कर्नाटक राज्य, 2024 मामला का मुख्य तथ्य :
सुश्री X बनाम कर्नाटक राज्य, 2024 मामले के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:
- याचिकाकर्ता को लैंगिक डिस्फोरिया था, जिसके कारण उसने लिंग परिवर्तन सर्जरी कराई और आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, और पासपोर्ट में अपने नाम और लिंग में कानूनी रूप से बदलाव किया। हालांकि, जन्म प्रमाण पत्र में यह परिवर्तन स्वीकार नहीं किया गया।
- याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जन्म प्रमाण पत्र में बदलाव की अनुमति नहीं देने से उसके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि इससे दोहरी पहचान उत्पन्न होती है, जिससे उत्पीड़न और भेदभाव हो सकता है।
- उन्होंने उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 का हवाला दिया, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी पहचान के अनुसार दस्तावेज़ों में बदलाव करने की अनुमति दी गई है।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि 1969 का जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम सामान्य अधिनियम है, जबकि ट्रांसजेंडर अधिकारों का संरक्षण करने वाला अधिनियम विशेष अधिनियम है।
- उच्च न्यायालय ने इस मामले के निर्णय में यह भी कहा कि विशेष कानून के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति का लिंग सभी आधिकारिक दस्तावेज़ों में दर्ज किया जाना चाहिए।
- यह निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर विशेष कानूनों की सर्वोच्चता की पुष्टि करता है।
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 से संबंधित मुख्य :
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं:
- ट्रांसजेंडर की परिभाषा : ट्रांसजेंडर वे व्यक्ति होते हैं जिनका लिंग जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाता। इसमें ‘इंटरसेक्स भिन्नता वाले व्यक्ति’ और ‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति’ शब्दों को स्पष्ट किया गया है, ताकि लिंग परिवर्तन सर्जरी या चिकित्सा उपचार के बिना भी ट्रांसजेंडर पुरुष और महिलाएं इसमें शामिल हो सकें।
- भेदभाव का निषेध : यह विधेयक शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सुविधाओं में भेदभाव को रोकता है। इसके अलावा, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को यात्रा, संपत्ति और कार्यालयों में समान अधिकार प्रदान करता है।
- पहचान प्रमाण पत्र : यह विधेयक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपनी लिंग पहचान पर अधिकार प्रदान करता है। इसके तहत, जिला मजिस्ट्रेट बिना मेडिकल परीक्षण के प्रमाण पत्र जारी करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
- चिकित्सा देखभाल : इस विधेयक में HIV की निगरानी, चिकित्सा देखभाल, लैंगिक पुनर्निर्धारण सर्जरी, और बीमा कवरेज जैसी स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने का प्रावधान है।
- राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद : सरकार को सलाह देने और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों की शिकायतों का समाधान करने के लिए एक राष्ट्रीय ट्रांसजेंडर व्यक्ति परिषद स्थापित की गई है।
- अपराध और दंड का प्रावधान : इस विधेयक के तहत बलपूर्वक श्रम, दुर्व्यवहार और अधिकारों से वंचित करने जैसे अपराधों के लिए 6 माह से 2 वर्ष तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
भारत में ट्रांसजेंडरों के समक्ष मुख्य समस्याएँ :
भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है –
- सामाजिक बहिष्कार का शिकार होना : ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज में अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिए सामाजिक जीवन में भागीदारी मुश्किल हो जाती है और वे अकेलेपन का अनुभव करते हैं। सार्वजनिक स्थानों, जैसे शौचालय और आश्रय स्थल, में भी उन्हें उचित स्थान नहीं मिलता, जिसके कारण वे उत्पीड़न और हिंसा का शिकार होते हैं।
- शिक्षा में भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना : ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा में भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण उनकी पढ़ाई अधूरी रहती है। उनकी साक्षरता दर केवल 46% है, जो राष्ट्रीय औसत (74%) से कम है।
- शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ना और बेघर होना : परिवारों द्वारा अस्वीकार किए जाने और आवास की कमी के कारण कई ट्रांसजेंडर लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हो जाते हैं। उन्हें शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है, साथ ही मादक पदार्थों की लत जैसी समस्याओं का भी सामना करते हैं।
- सामाजिक असहिष्णुता और ट्रांसफोबिया के कारण हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ना : ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक असहिष्णुता और ट्रांसफोबिया के कारण हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। ट्रांसफोबिया का अर्थ है ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति नकारात्मक सोच, डर, घृणा या पूर्वाग्रह।
- अवसाद और आत्महत्या के विचारों जैसी मनोवैज्ञानिक संकटों और मानसिक समस्याओं का सामना पड़ना : ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी के कारण वे चिंता, अवसाद और आत्महत्या के विचारों जैसी मानसिक समस्याओं का सामना करते हैं।
- ट्रांसजेंडरों का नकारात्मक सार्वजनिक चित्रण : मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर ट्रांसजेंडरों का नकारात्मक चित्रण उनके प्रति सामाजिक अस्वीकृति और हिंसा को बढ़ावा देता है।
आगे की राह :
- सामाजिक सरोकारों पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता : सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नि:शुल्क विधिक सहायता, सहायक शिक्षा और अन्य सामाजिक अधिकारों जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं उपलब्ध हों।
- शिक्षा तक आसानी से पहुँच सुनिश्चित करना : भारत में सरकार को स्कूलों को ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए उत्पीड़न-रोधी और रैगिंग-रोधी नीतियाँ लागू करनी चाहिए ताकि उनके साथ होने वाली भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाओं में कमी आए।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नीति-निर्माण में शामिल करना : सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नीति बनाने की प्रक्रिया में शामिल किया जाए, ताकि उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके और उन्हें समाज में समान अवसर मिल सकें।
- वित्तीय सहायता और आर्थिक अवसर प्रदान करना : ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यवसाय शुरू करने या अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए आसान ऋण और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके।
- सार्वजनिक जागरूकता अभियानों का आयोजन करने की जरूरत : सरकार को ट्रांसजेंडर से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक शिक्षा अभियानों का आयोजन करना चाहिए, ताकि समाज में ट्रांसजेंडर से जुड़े मुद्दों पर असहिष्णुता कम हो और ट्रांसजेंडरों के प्रति नकारात्मक पूर्वाग्रही सोच को चुनौती दी जा सके।
स्त्रोत – योजना एवं द हिन्दू।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 07th Jan 2025
Q.1. उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कौन सा अधिकार दिया गया है?
- अपनी लिंग पहचान पर आधारित प्रमाण पत्र प्राप्त करने का अधिकार
- सभी सार्वजनिक कार्यालयों में ट्रांसजेंडर कर्मचारियों के लिए विशेष आरक्षण
- किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से सुरक्षा का अधिकार
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग शौचालय और आश्रय स्थल का अधिकार
उपर्युक्त में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 के संदर्भ में भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक समावेशन, कर्नाटक उच्च न्यायालय का हालिया निर्णय और सरकारी प्रयासों पर चर्चा करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
No Comments