04 Jun पदोन्नति में एससी / एसटी आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है : सर्वोच्च न्यायालय
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के ‘ भारतीय संविधान और शासन व्यवस्था, एससी और एसटी से संबंधित मुद्दे पर निर्णय, सार्वजनिक रोज़गार और पदोन्नति में आरक्षण ’ खंड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पदोन्नति में आरक्षण, इंद्रा साहनी निर्णय, अनुच्छेद 16 (4), अनुच्छेद 16 (4A), अनुच्छेद 16(4B), एम नागराज केस, सर्वोच्च न्यायालय ’ खंड से संबंधित है। इसमें PLUTUS IAS टीम के सुझाव भी शामिल हैं। यह लेख ‘ दैनिक कर्रेंट अफेयर्स ’ के अंतर्गत ‘ पदोन्नति में एससी / एसटी आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है : सर्वोच्च न्यायालय ’ से संबंधित है।)
ख़बरों में क्यों ?
- हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए पदोन्नति में आरक्षण को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती1।
- भारत के उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्यों को SC-ST के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के लिए मात्रात्मक डेटा एकत्र करना अनिवार्य है।
- सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को लेकर देश भर में इसलिए चर्चा हो रही है, क्योंकि यह भारतीय समाज में आरक्षण के मुद्दे से जुड़ा एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
भारत में मौलिक अधिकार :
- भारतीय संविधान के अनुसार, मौलिक अधिकार वे आधारभूत अधिकार हैं जो प्रत्येक नागरिक के लिए सुनिश्चित किए गए हैं और उनके समग्र विकास और भलाई के लिए अपरिहार्य हैं।
- इन अधिकारों का उल्लेख संविधान के तीसरे भाग में, अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक में किया गया है, जिसमें छह प्रमुख मौलिक अधिकार सम्मिलित हैं।
- ये मौलिक अधिकार सभी भारतीय नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी देते हैं, और उनके व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण के लिए अनिवार्य हैं।
भारत में आरक्षण संबंधी विभिन्न घटनाक्रम का सफ़र :
भारत में आरक्षण संबंधी घटनाक्रम का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:
- इंद्रा साहनी निर्णय, 1992 : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि अनुच्छेद 16(4) केवल नियुक्तियों में आरक्षण की अनुमति देता है। यह भारत में पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति नहीं देता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 27% ओबीसी आरक्षण को वैध ठहराया लेकिन आरक्षण की सीमा 50% तक सीमित कर दी, जब तक कि भारत में कोई असाधारण परिस्थितियाँ न हों।
- 77वाँ संशोधन अधिनियम, 1995 : भारत में हुए 77वाँ संशोधन अधिनियम, 1995 ने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 16(4A) को जोड़ा, जिससे राज्यों को एससी/एसटी कर्मचारियों के पदोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति मिली।
- 85वाँ संशोधन अधिनियम, 2001 : इसने पदोन्नति में आरक्षण के माध्यम से एससी/एसटी उम्मीदवारों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान की।
- एम. नागराज निर्णय, 2006 : भारत के सर्वोच्च न्यायालय नें एम. नागराज निर्णय में वर्ष 2006 में इंद्रा साहनी के मामले में दिए गए अपने ही निर्णय को आंशिक रूप से पलटा और पदोन्नति में एससी/एसटी के लिए “क्रीमी लेयर” अवधारणा को जोड़कर इसे और विस्तारित किया।
- जरनैल सिंह बनाम भारत संघ, 2018: भारत के सर्वोच्च न्यायालय नें इस मामले में पदोन्नति में आरक्षण के लिए मात्रात्मक डेटा की आवश्यकता को समाप्त कर दिया था।
- 103वाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 : भारतीय संविधान में हुए 103वाँ संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत इसने भारत में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण का प्रावधान किया।
- जनहित अभियान बनाम भारत संघ, 2022 : इसने 103वें संविधान संशोधन को चुनौती दी, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये 10% आरक्षण लागू किया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायलय के खंडपीठ ने इस मामले में 3-2 के बहुमत से अपने फैसले में न्यायालय ने आरक्षण से संबंधित संशोधन को बरकरार रखा। इसने सरकार को वंचित सामाजिक समूहों के लिये मौज़ूदा आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण लाभ प्रदान करने की अनुमति दी।
भारत में पदोन्नति में आरक्षण के लाभ और हानियाँ :
भारत में पदोन्नति में आरक्षण के लाभ और हानियों का निम्नलिखित आयाम है –
भारत में आरक्षण से होने वाले लाभ :
- सामाजिक न्याय और समावेशन : इसके तहत यह भारत में सेवाओं के उच्च पदों पर ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों (SC, ST, OBC) के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देता है, जिससे समाज में समानता और न्याय की भावना मजबूत होती है।
- जातिगत एवं सामाजिक बाधाओं को तोड़ना : यह एक अधिक विविध एवं समावेशी नेतृत्व संरचना का निर्माण करता है, जिससे सामाजिक मुद्दों की बेहतर समझ और समाधान की दिशा में काम किया जा सकता है।
- सशक्तीकरण एवं उत्थान : यह हाशिये पर पड़े समुदायों को आगे बढ़ने और उच्च स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के अवसर प्रदान करता है।
- सकारात्मक भेदभाव : यह अंतर्निहित सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करने में सहायता प्रदान करता है, जिससे अतीत में हुए भेदभाव को संबोधित किया जा सकता है।
भारत में आरक्षण से होने वाली हानियाँ :
- योग्यता बनाम आरक्षण : इससे पदोन्नति के लिए सबसे योग्य उम्मीदवारों की अनदेखी हो सकती है, जिससे योग्यता की अवहेलना होती है।
- हतोत्साहन एवं हताशा : यह सामान्य श्रेणी के अभ्यर्थियों में हतोत्साहन एवं हताशा उत्पन्न कर सकता है, जो स्वयं को उपेक्षित महसूस करते हैं।
- क्रीमी लेयर का मुद्दा : आरक्षित श्रेणियों के अंतर्गत “क्रीमी लेयर” को अभी भी लाभ मिल सकता है, जिससे उत्थान का उद्देश्य कमजोर पड़ सकता है।
- वरिष्ठता एवं दक्षता को ध्यान में रखना : भरात नें पदोन्नति में आरक्षण वरिष्ठता-आधारित पदोन्नति प्रणालियों को बाधित कर सकता है, जिससे उक्त संबंधित संस्थान की समग्र दक्षता प्रभावित हो सकती है। इस तरह के तमाम विचार भारत में पदोन्नति में आरक्षण के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं और इस विषय पर व्यापक बहस की मांग करते हैं और यह आरक्षण से संबंधित सभी पहलूओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं।
भारत में आरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान :
भारतीय संविधान में आरक्षण से संबंधित निम्नलिखित प्रावधान हैं –
- अनुच्छेद 15(6) : यह अनुच्छेद राज्य को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण सहित विशेष प्रावधान करने की शक्ति प्रदान करता है, जिसमें अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर सहायता प्राप्त और गैर-सहायता प्राप्त निजी संस्थान दोनों ही शामिल हैं।
- अनुच्छेद 16(4) : यह अनुच्छेद राज्य को उन पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी सेवाओं में नियुक्तियों और पदों के आरक्षण की अनुमति देता है, जिनका राज्य की राय में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- अनुच्छेद 16(4A) : यह अनुच्छेद अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है, यदि उनका सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- अनुच्छेद 16(4B) : भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद विशेष वर्ष के रिक्त SC/ST कोटे को अगले वर्ष के लिए स्थानांतरित करने की अनुमति देता है।
- अनुच्छेद 16(6) : यह अनुच्छेद राज्य को नियुक्तियों में आरक्षण के लिए प्रावधान करने की शक्ति देता है, जो मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त 10% की अधिकतम सीमा के अधीन होंगे।
- अनुच्छेद 335 : भारतीय संविधान का यह अनुच्छेद भारत में सरकारी सेवाओं और पदों पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार करने के लिए और उसके लिए विशेष उपाय अपनाने की आवश्यकता को मान्यता देता है।
- 82वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2000 : वर्ष 2000 में भारतीय संविधान में हुए इस संशोधन ने अनुच्छेद 335 में एक शर्त जोड़ी, जो राज्य को किसी भी परीक्षा में अर्हक अंक में छूट प्रदान करने हेतु अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों के पक्ष में प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। इस तरह के तमाम प्रावधान भारतीय समाज में समानता और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं।
समाधान / आगे की राह :
- मेरिट- आधारित प्रणाली को प्रोत्साहित करना : भारत में पदोन्नति के लिए SC/ST/OBC उम्मीदवारों के लिए योग्यता मानदंडों में उचित छूट देने वाली प्रणाली को प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि योग्य उम्मीदवारों को उचित मानकों के अनुसार अवसर प्राप्त हो सकें।
- डेटा – संचालित नीति को अपनाने की आवश्यकता : भारत में पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि SC/ST/OBC के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रतिनिधित्व का विश्लेषण किया जाए। इस आंकड़े का उपयोग करके, केंद्र या राज्य सरकारों दोनों के द्वारा ही आरक्षण कोटा को पूरा करने के लिए एक स्पष्ट उद्देश्य निर्धारित किए जा सकते हैं। अतः भारत में पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के डेटा – संचालित नीति को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है।
- समानांतर पहलों को आरंभ करने की जरूरत : भारत में केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही ऐसी पहलों की वकालत करनी चाहिए जो इन समुदायों के लिए शिक्षा और संसाधनों तक पहुंच में सुधार करें, जिससे देश में आरक्षण की आवश्यकता कम – से – कम हो।
- चिंताओं का समाधान : आरक्षण के कारण अयोग्य उम्मीदवारों की पदोन्नति की चिंताओं को देखते हुए उचित मान्यताओं को विकसित करने पर भी ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है।
- दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत : आरक्षण को दीर्घकालिक सामाजिक न्याय और समान अवसरों की प्राप्ति के लिए एक अस्थायी उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए।
- क्षमता विकास को प्रोत्साहित करना : भारत में पदोन्नत SC/ST/OBC कर्मचारियों के लिए गहन प्रशिक्षण और मेंटरशिप कार्यक्रमों का प्रस्ताव करना चाहिए, जिससे कौशल अंतर को पाटा जा सके और वे अपनी नई भूमिकाओं में सफल हो सकें।
निष्कर्ष : भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण धीरे – धीरे ही सही किन्तु पदोन्नति में आरक्षण देने के प्रति विकसित होता जा रहा है, जो समानता और सकारात्मक कार्रवाई के बीच संतुलन स्थापित करता है। जबकि अदालत ने राज्यों को इस प्रकार के आरक्षण की अनुमति दी है। लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इससे प्रशासनिक कुशलता और किसी भी प्रकार का सार्वजनिक हित प्रभावित न हो।
स्रोत – टाइम्स ऑफ इंडिया एवं पीआईबी।
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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q. 1. पदोन्नति में एससी / एसटी आरक्षण के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- भारत में मौलिक अधिकारों का उल्लेख संविधान के तीसरे भाग में, अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक में किया गया है, जिसके तहत सात मौलिक अधिकारों का प्रावधान हैं।
- सच्चर समिति की रिपोर्ट भारत में मुस्लिम समुदाय के शिक्षा, रोजगार और आर्थिक पिछड़ेपन से संबंधित है।
- मौलिक अधिकार सभी भारतीय नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी देता है और यह नागरिकों के व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण के लिए अनिवार्य हैं।
- जरनैल सिंह बनाम भारत संघ मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय नें पदोन्नति में आरक्षण के लिए मात्रात्मक डेटा की आवश्यकता को समाप्त कर दिया था।
उपर्युक्त कथन / कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 3
B. केवल 2, 3 और 4
C. केवल 1 और 3 दोनों
D. न तो 1 और न ही 4
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारतीय नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत मौलिक अधिकारों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि पदोन्नति में आरक्षण भारत में किस प्रकार नौकरशाही दक्षता के साथ समावेशिता को संतुलित करने में एक चुनौती पेश करता है? भारतीय प्रशासनिक प्रणाली में पदोन्नति में आरक्षण के प्रमुख चुनौतियों और उसके समाधानात्मक उपायों पर तर्कसंगत चर्चा कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 10 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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