आकस्मिक बाढ़ और सोमालिया

आकस्मिक बाढ़ और सोमालिया

सामान्य अध्ययन – 3 आपदा प्रबंधन, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), जलवायु संवेदनशीलता, संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA)   

 

खबरों में क्यों? 

 

  • हाल ही में अप्रैल माह के मध्य से सोमालिया में हो रही मूसलाधार बारिश के चलते अचानक आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। इस आपदा में अब तक कम से कम 17 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 84,000 से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में बाढ़ के कारण बुनियादी ढांचे को गंभीर क्षति पहुंची है और प्रभावित समुदायों को तुरंत राहत और सहायता की जरूरत है।
  • स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, सोमालिया की सरकार ने राहत कार्यों के समन्वय के लिए एक विशेष समिति का गठन किया है, जिसमें संघीय मंत्रियों के साथ-साथ क्षेत्रीय प्रशासन के अधिकारी भी शामिल हैं।
  • सोमालिया की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है और यह देश पहले भी जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों , जैसे – दीर्घकालिक सूखा और भारी वर्षा से उत्पन्न बाढ़—का सामना करता रहा है। 
  • इस हालिया आपदा ने फिर से यह स्पष्ट कर दिया है कि सोमालिया की जलवायु संवेदनशीलता किस कदर गंभीर है। यह आपदा न केवल मानवीय संकट को गहराती है, बल्कि देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिरता पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।

 

क्या है आकस्मिक बाढ़ ?

 

  • आकस्मिक बाढ़ वह स्थिति है जब अत्यधिक बारिश, बांध टूटने या हिमखंडों के अचानक पिघलने जैसी घटनाओं के कारण बहुत कम समय में जलस्तर तेजी से बढ़ जाता है। 
  • आमतौर पर यह बाढ़ कुछ ही घंटों के भीतर उत्पन्न होती है और इसका प्रभाव तीव्र व विनाशकारी होता है।
  • इस प्रकार की बाढ़ की सबसे बड़ी पहचान इसकी तात्कालिकता और तीव्रता है। यह बिना किसी स्पष्ट चेतावनी के आती है और कुछ ही पलों में नदियों, नालों या सूखे इलाकों को जलमग्न कर देती है। 
  • इसकी रफ्तार इतनी अधिक होती है कि यह इंसानों, वाहनों और इमारतों को भी अपने साथ बहा ले जाने में सक्षम होती है।
  • आमतौर पर यह बाढ़ उन क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है, जहाँ ज़मीन पानी को जल्दी नहीं सोख पाती है। जैसे कि – शुष्क या पर्वतीय क्षेत्र। 
  • इसके अलावा, यदि किसी क्षेत्र में जल निकासी की व्यवस्था कमजोर हो या वनों की अंधाधुंध कटाई हुई हो, तो आकस्मिक बाढ़ के प्रभाव और भी भयावह हो सकते हैं।
  • अपनी अप्रत्याशित प्रकृति और तेज गति के कारण, आकस्मिक बाढ़ को सबसे खतरनाक प्राकृतिक आपदाओं में गिना जाता है, जो न केवल जीवन बल्कि संपत्ति को भी व्यापक नुकसान पहुँचा सकती है।

 

आकस्मिक बाढ़ से सुरक्षा के लिए एनडीएमए के सुझाव और अपनाए जाने वाली प्रमुख रणनीतियाँ : 

 

  1. समय रहते चेतावनी देने की व्यवस्था : जोखिम वाले इलाकों में रहने वाले लोगों को संभावित खतरे से पहले सतर्क करने के लिए सटीक मौसम पूर्वानुमान और रियल-टाइम निगरानी प्रणालियों का विकास और कार्यान्वयन आवश्यक है।
  2. जन सहभागिता और जागरूकता : स्थानीय समुदायों को बाढ़ जैसे खतरों के प्रति संवेदनशील बनाना और उन्हें आपदा प्रबंधन की प्राथमिक जानकारी से लैस करना जरूरी है। इसके लिए स्कूलों, पंचायतों और स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से प्रशिक्षण और अभ्यास कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
  3. मजबूत एवं टिकाऊ बुनियादी ढांचा : बांध, तटबंध, जलाशय आदि संरचनाओं को इस प्रकार डिज़ाइन और मेंटेन किया जाना चाहिए कि वे अतिवृष्टि और आकस्मिक जल प्रवाह को सहन कर सकें।
  4. विवेकपूर्ण रूप से भूमि उपयोग का नियोजन करना : बाढ़ संभावित क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण कार्यों पर रोक लगाकर, ऐसे इलाकों में विकास को योजनाबद्ध तरीके से संचालित किया जाना चाहिए, जिससे जोखिम को कम किया जा सके।
  5. आपातकालीन स्थिति में त्वरित कार्रवाई की योजना : निकासी मार्ग, राहत शिविर, संचार प्रणाली और बचाव दलों की तैनाती जैसी व्यवस्थाओं को पहले से तैयार और समय-समय पर अपडेट करना जरूरी है, ताकि संकट की घड़ी में तत्काल प्रतिक्रिया दी जा सके।

 

आकस्मिक बाढ़ के प्रमुख कारण : 

 

  1. अचानक और अत्यधिक वर्षा का होना : कम समय में तेज़ बारिश से ज़मीन की जल सोखने की क्षमता जवाब दे देती है, जिससे तेज़ी से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।
  2. बादल फटने की घटनाओं का होना : कुछ ही मिनटों में अत्यधिक वर्षा की यह प्रक्रिया सीमित इलाके में अत्यधिक जलभराव पैदा कर सकती है।
  3. ढलानदार और पहाड़ी भौगोलिक क्षेत्र : ऐसे क्षेत्रों में पानी बहुत तेज़ी से नीचे की ओर बहता है, जिससे वहां आकस्मिक बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
  4. अवरुद्ध या असंगठित जल निकासी प्रणाली : शहरों में यदि जल निकासी का प्रबंध सुदृढ़ न हो, तो थोड़ी ही बारिश में पानी जमा होकर बाढ़ का रूप ले सकता है।
  5. बांध अथवा ग्लेशियर झील से अचानक जलस्राव : बांध टूटने या ग्लेशियर झील फटने (GLOF) जैसी घटनाओं से जल प्रवाह इतना तीव्र हो सकता है कि नीचे के क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ आ जाती है।
  6. वनों की कटाई और भूमि उपयोग में बदलाव होना : वनस्पति की कमी से मिट्टी की जलधारण क्षमता घटती है, जिससे वर्षा का जल सतह पर बहकर बाढ़ की स्थिति बना सकता है।
  7. जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ने वाला प्रभाव : बदलते मौसम के कारण अब अत्यधिक और अनियमित बारिश की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जिससे आकस्मिक बाढ़ों की संख्या और तीव्रता दोनों में इज़ाफा हुआ है।

 

भारत में आकस्मिक बाढ़ की संवेदनशीलता का व्यापक प्रभाव और परिणाम : 

 

  1. मानव जीवन और आजीविका पर संकट उत्पन्न होना : अकस्मात आने वाली बाढ़, विशेषतः सीमित पूर्व-चेतावनी के साथ, ग्रामीण एवं शहरी कमजोर समुदायों को गहरे संकट में डाल देती है। इनमें जानमाल की हानि, बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन और जीविकोपार्जन के साधनों का विनाश प्रमुख हैं।
  2. अवसंरचनात्मक क्षति का होना : तेज़ बहाव और जलभराव के कारण देश की सड़कें, पुल, रेलवे लाइनों, बिजली आपूर्ति प्रणालियों और अन्य आवश्यक अवसंरचनाओं को व्यापक क्षति होती है। इससे न केवल आवागमन और सेवाएँ बाधित होती हैं, बल्कि पुनर्निर्माण में भी भारी खर्च आता है।
  3. कृषि उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ना : अचानक आई बाढ़ खेतों में खड़ी फसलों, पशुधन और भंडारित अनाज को तबाह कर देती है। इसके साथ ही उपजाऊ मिट्टी का कटाव और सिंचाई संसाधनों का क्षय, किसानों के लिए खाद्य असुरक्षा और आर्थिक संकट का कारण बनता है।
  4. शहरी क्षेत्रों में संकट की तीव्रता का उत्पन्न होना : भारतीय शहरों में जल निकासी व्यवस्था की खामियाँ, अनियोजित शहरीकरण और भूमिगत संरचनाओं की कमी, आकस्मिक बाढ़ को और अधिक खतरनाक बना देती हैं। इसका परिणाम जलभराव, यातायात अवरोध, संपत्ति का नुकसान और सार्वजनिक जीवन में भारी असुविधा का उत्पन्न होना होता है।
  5. स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों में वृद्धि होना : बाढ़ के बाद रुका हुआ जल मच्छरों एवं रोगजनकों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाता है। परिणामस्वरूप डेंगू, मलेरिया, हैजा और लेप्टोस्पायरोसिस जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। दूषित जल स्रोत पीने के पानी की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।
  6. पर्यावरणीय असंतुलन का उत्पन्न होना : बाढ़ से न केवल मिट्टी का क्षरण होता है, बल्कि नदियों के किनारों, जैव विविधता और आर्द्रभूमियों को भी नुकसान पहुँचता है। बाढ़ जल औद्योगिक कचरे, प्लास्टिक और अन्य विषैले पदार्थों को जल स्रोतों में ले जाकर पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित करता है।
  7. आर्थिक प्रभाव और वित्तीय दबाव उत्पन्न होना : इन सब प्रभावों के सम्मिलित रूप से देश पर भारी आर्थिक बोझ पड़ता है। बुनियादी ढाँचे की मरम्मत, राहत प्रयास, बीमा दावे और आर्थिक पुनर्वास योजनाएँ सार्वजनिक वित्त को प्रभावित करती हैं और क्षेत्रीय विकास की गति को धीमा कर देती हैं।
  8. जनसंख्या विस्थापन और सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न होना : बार-बार आने वाली आकस्मिक बाढ़ की घटनाएँ लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर करती हैं। इससे अस्थायी शिविरों या पुनर्वास क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता है और संसाधनों की कमी के कारण सामाजिक तनाव उत्पन्न होता है।

 

निष्कर्ष : 

 

  1. आकस्मिक बाढ़, अपने तीव्र और अनपेक्षित स्वरूप के कारण, आधुनिक समय की सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक बन चुकी है। यह न केवल जीवन की हानि का कारण बनती है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिक तंत्र पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ती है। सोमालिया में हालिया बाढ़ त्रासदी ने एक बार फिर यह उजागर किया है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न आपदाओं को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह वैश्विक समुदाय के लिए एक चेतावनी है कि जलवायु संकट अब भविष्य की नहीं, वर्तमान की चुनौती है।
  2. भारत की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। देश के अनेक हिस्सों में अनियमित और अत्यधिक वर्षा, अव्यवस्थित शहरी विस्तार, वन क्षेत्र की अंधाधुंध कटाई और कमजोर जल निकासी प्रणाली ने आकस्मिक बाढ़ की घटनाओं को अधिक गंभीर और बारंबार बना दिया है। इससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है—चाहे वह लोगों की जान-माल की क्षति हो, कृषि प्रणाली पर असर, या फिर पर्यावरणीय असंतुलन।
  3. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा तैयार की गई रूपरेखा निश्चित रूप से आपदा के पूर्व-नियोजन और त्वरित प्रतिक्रिया के लिए एक ठोस दिशा प्रदान करती है, लेकिन यह तभी प्रभावशाली हो सकती है जब इसे जमीनी स्तर पर ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ लागू किया जाए।
  4. अतः यह आवश्यकता है कि हम समग्र और बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाएँ। जिसमें तकनीकी सुदृढ़ता (जैसे कि सटीक पूर्वानुमान और चेतावनी तंत्र), सामाजिक जागरूकता, स्थायी विकास नीतियाँ और जलवायु अनुकूलन रणनीतियाँ एक साथ मिलकर कार्य करें। विशेष रूप से बाढ़-संवेदनशील क्षेत्रों में सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय शासन की सक्रिय भूमिका इस आपदा से निपटने की क्षमता को मजबूत बना सकती है।
  5. इस प्रकार, आकस्मिक बाढ़ को केवल एक प्राकृतिक घटना के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नीतिगत चुनौती के रूप में देखने की आवश्यकता है, जिसका समाधान भी उतना ही बहुआयामी और समन्वित होना चाहिए।

 

स्त्रोत – द हिन्दू। 

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 15th May 2025

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. आकस्मिक बाढ़ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें :
1. तीव्र वर्षा के छह घंटे के भीतर अचानक बाढ़ आ जाती है।
2. वनों की कटाई का आकस्मिक बाढ़ की आवृत्ति पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है।
3. खराब शहरी जल निकासी प्रणालियाँ आकस्मिक बाढ़ के प्रभाव को और खराब कर सकती हैं।
4. पहाड़ी क्षेत्रों की तुलना में समतल मैदानों में आकस्मिक बाढ़ अधिक आम है।
ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?

A. केवल 1 और 3

B. केवल 2 और 4

C. केवल 1, 3, और 4

D. केवल 1, 2, और 3

उत्तर – A

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में जलवायु परिवर्तन और मानव जनित कारकों के कारण आकस्मिक बाढ़ लगातार अधिक विनाशकारी होती जा रही है। ऐसे में भारत में आकस्मिक बाढ़ के प्रमुख कारण और इसके दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं ? तर्कसंगत मत प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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