06 May कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सतत् वन प्रबंधन : नीतिगत नवाचार और वन नीति निर्माण
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के अंतर्गत ‘ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, वन संसाधन और उसका संरक्षण, सतत् वन प्रबंधन में आधुनिक प्रौद्योगिकी की आवश्यकता और भूमिका, कार्बन क्रेडिट ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ जियोफेंसिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, 18 वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023, राष्ट्रीय वन नीति 1988, कार्बन सिंक, ग्रीनहाउस गैस, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBM), कृषि वानिकी, पेरिस समझौता, RFID टैग ’ खण्ड से संबंधित है।)
ख़बरों में क्यों?
- हाल ही में मध्य प्रदेश ने वन प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित रीयल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम (RTFAS) को पायलट परियोजना के रूप में लागू किया है।
- इस तकनीकी नवाचार के साथ वह भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसने सक्रिय वन संरक्षण के लिए डिजिटल निगरानी प्रणाली को अपनाया है।
- यह पहल, भारत में सतत् वन प्रबंधन की दिशा में तकनीकी हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जहाँ पारंपरिक उपायों के साथ अब आधुनिक तकनीक को भी जोड़ा जा रहा है।
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 की 18वीं श्रृंखला के अनुसार, मध्य प्रदेश देश में सबसे बड़े वन क्षेत्र (85,724 वर्ग किमी) वाला राज्य है। किंतु, इसी राज्य में 2023 में सबसे अधिक वनों की क्षति (612.41 वर्ग किमी) भी दर्ज की गई है, जो चिंता का विषय है।
- वर्तमान में भारत का कुल वन एवं वृक्ष आवरण 25.17% है, जो कि राष्ट्रीय वन नीति 1988 द्वारा निर्धारित 33% लक्ष्य से काफी कम है। ऐसे में मध्य प्रदेश की यह पहल देश के अन्य राज्यों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत कर सकती है।
टिकाऊ एवं सतत् वन – प्रबंधन में तकनीक किस तरह मददगार है?
- जंगलों पर नज़र रखना : इसरो के रिसोर्ससैट जैसे ताकतवर सैटेलाइट हमें बताते हैं कि हमारे जंगल कितने स्वस्थ हैं और कहाँ कटाई हो रही है। वहीं, हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग से हम यह भी जान पाते हैं कि जंगलों में कितना कार्बन जमा है और वहाँ कितनी तरह के पेड़-पौधे और जीव-जंतु हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तो पुराने और नए डेटा को देखकर यह भी बता सकता है कि भविष्य में कहाँ वन कटने का खतरा है।
- वनाग्नि का पूर्वानुमान और त्वरित प्रतिक्रिया : जंगलों में आग लगना एक बड़ी समस्या है। लेकिन अब AI वाले कैमरे और थर्मल सेंसर धुएँ और गर्मी को पहचानकर तुरंत अलर्ट भेज सकते हैं। फायरसैट नाम के सैटेलाइट तो सिर्फ जंगल की आग का पता लगाने और उसे ट्रैक करने के लिए ही बनाए गए हैं। ड्रोन हमें आग की सीधी तस्वीरें भेजकर उसे बुझाने में मदद करते हैं और यह भी बताते हैं कि कहाँ सूखी पत्तियाँ जमा हैं, जिससे आग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
- RTFAS जैसी उपग्रह-आधारित प्रणालियों से अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों पर लगाम : रियल-टाइम फॉरेस्ट अलर्ट सिस्टम (RTFAS) जैसे सैटेलाइट आधारित सिस्टम से जंगल में होने वाली गैरकानूनी गतिविधियों, जैसे पेड़ काटना, खेती करना या निर्माण करना, का पता 2-3 दिनों में चल जाता है, जिससे वन विभाग तुरंत कार्रवाई कर सकता है।
- मानव और वन्यजीव के बीच होने वाले संघर्ष में तकनीकी हस्तक्षेप और लगाम : AI से लैस कैमरे और GPS ट्रैकिंग जानवरों की गाँव के आसपास की हरकतों पर नज़र रखते हैं। इससे यह पता चलता है कि कब और कहाँ जानवरों के आने की संभावना है, जिससे इंसानों और वन्यजीवों के बीच टकराव कम हो जाता है। पोचरकैम जैसे खास कैमरे तो इंसानों को पहचानकर दूर से ही वन विभाग को सूचना दे देते हैं, जिससे शिकारियों को पकड़ना आसान हो जाता है। अगर हाथी या बाघ गाँव की तरफ आ रहे हैं, तो RFID टैग और जियोफेंसिंग से अधिकारियों को तुरंत पता चल जाता है।
- वनीकरण अभियानों को डेटा-आधारित बनाते हुए वनों का पुनर्जीवन करना : जब हम नए पेड़ लगाते हैं, तो ग्रीन बॉट्स जैसे उपकरण उनकी बढ़वार, मिट्टी की सेहत और मौसम में बदलाव पर नज़र रख सकते हैं। इससे हमारे पास जंगल के स्वास्थ्य का एक बड़ा डेटाबेस तैयार हो जाता है।
- जैव विविधता की निगरानी के साथ जैव विविधता संरक्षण करना : रेनफॉरेस्ट कनेक्शन जैसे ध्वनि सेंसर जंगलों में पक्षियों और मेंढकों की आवाज़ पहचान सकते हैं और यह भी बता सकते हैं कि अमेज़न के जंगलों में कौन सी endangered प्रजातियाँ कहाँ हैं। पानी या मिट्टी के सैंपल से मिले पर्यावरणीय DNA (eDNA) से मछलियों और उभयचरों की जेनेटिक जानकारी मिल सकती है, जिससे यह पता चलता है कि कहीं कोई ऐसी जलीय जीव तो नहीं है जो वहाँ का नहीं है या कोई दुर्लभ प्रजाति खतरे में तो नहीं है।
टिकाऊ एवं सतत् वन – प्रबंधन क्यों अनिवार्य है?
- जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए : पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद मिलती है। यह पर्यावरण और उद्योगों दोनों के लिए ज़रूरी है।
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार और नीति अनुकूलन के लिए : यूरोपीय संघ जैसे देश अब कार्बन-गहन उत्पादों पर टैक्स लगा रहे हैं। अगर हम ज़्यादा पेड़ लगाते हैं, तो हमारे उत्पादों में कार्बन का स्तर कम होगा, जिससे हमें टैक्स कम देना पड़ेगा और हम अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे।
- पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती एवं पर्यावरण को स्वस्थ रखने के लिए : ज़्यादा पेड़ होने से मिट्टी की सेहत सुधरती है, मिट्टी का कटाव रुकता है, भूजल बढ़ता है, पानी ज़्यादा समय तक ज़मीन में रहता है और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता है।
- सामाजिक – आर्थिक सशक्तिकरण के लिए : जंगलों से लकड़ी, ईंधन और कृषि वानिकी जैसे उद्योग चलते हैं, जिससे गाँवों में रहने वाले लोगों को कमाई का एक और ज़रिया मिलता है। इसीलिए ग्रामीण क्षेत्रों में वानिकी आधारित आजीविका को बढ़ावा मिलता है और काष्ठ, ईंधन, औषधीय पौधों जैसे संसाधनों के माध्यम से आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित होती है।
भारत की हरित पहलों की दिशा में सतत् और टिकाऊ वन – प्रबंधन के लिए उठाए जाने वाले कदम :
- ग्रीन इंडिया मिशन (GIM) : इस मिशन के तहत 2017 से 2021 के बीच भारत के वन क्षेत्र में 0.56% की बढ़ोतरी हुई है, जो एक सकारात्मक संकेत है।
- राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति (2014) : यह नीति किसानों को अपनी ज़मीन पर पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है, ताकि प्राकृतिक वनों पर दबाव कम हो सके।
- भारत में वनों के बाहर वृक्ष कार्यक्रम : इस कार्यक्रम का उद्देश्य गैर-वन क्षेत्रों में पेड़ लगाकर हरियाली बढ़ाना है और इसमें निजी कंपनियाँ भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं।
- प्रतिपूरक वनरोपण निधि (CAMPA) : जब किसी औद्योगिक काम के लिए वन भूमि का उपयोग किया जाता है, तो इस फंड से दूसरी जगह पर नए पेड़ लगाए जाते हैं, ताकि पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके।
सतत् और टिकाऊ वन – प्रबंधन के लिए सामुदायिक और निजी क्षेत्र का योगदान :
- CSR के तहत वृक्षारोपण अभियान : कई प्रमुख उद्योग, विशेषकर ऑटोमोबाइल, ऊर्जा और सीमेंट क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियाँ अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत वृक्षारोपण कार्यक्रमों में संलग्न हैं।
- कृषि वानिकी द्वारा आजीविका संवर्धन : किसान पारंपरिक फसलों के साथ-साथ इमारती लकड़ी, फलदार वृक्ष एवं औषधीय पौधों की खेती कर आय के विविध स्रोत विकसित कर रहे हैं।
- कार्बन क्रेडिट रणनीतियाँ और निवेश : हरित परियोजनाओं में निवेश के माध्यम से निजी कंपनियाँ कार्बन क्रेडिट अर्जित कर रही हैं, जिससे आर्थिक और पारिस्थितिकीय लाभ दोनों मिलते हैं। अतः कई उद्योग कार्बन क्रेडिट कमाने के लिए वनरोपण परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं।
सतत् और टिकाऊ वन – प्रबंधन को प्रभावशाली बनाने में समाधान की राह :
- कार्बन बाजार को संस्थागत बनाना : पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत एक राष्ट्रीय कार्बन क्रेडिट रजिस्ट्री तथा नियामक ढांचा स्थापित कर वैश्विक कार्बन व्यापार में भारत की हिस्सेदारी को सशक्त किया जा सकता है।
- उद्योगों की भागीदारी को ज्यादा से ज्यादा शामिल कर बाध्यता में बदलना : जो उद्योग ज़्यादा प्रदूषण फैलाते हैं, उनके लिए कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए पेड़ लगाना ज़रूरी कर देना चाहिए। साथ ही, जो कंपनियाँ टिकाऊ वानिकी में निवेश करती हैं, उन्हें टैक्स में छूट मिलनी चाहिए। इस्पात, सीमेंट जैसे उच्च उत्सर्जन क्षेत्रों के लिये वृक्षारोपण आधारित कार्बन ऑफसेट अनिवार्य किया जाना चाहिए।
- कर प्रोत्साहन और निवेश आकर्षण को बढ़ावा देना : धारणीय वानिकी में निवेश करने वाली कंपनियों को टैक्स लाभ देकर निजी क्षेत्र को इस दिशा में और अधिक आकर्षित किया जा सकता है।
- ग्रामीण समुदायों को संरचनात्मक समर्थन देने की जरूरत : संयुक्त वन प्रबंधन (JFM) जैसे कार्यक्रमों को और बढ़ा कर विस्तारित करना चाहिए और वन आधारित उत्पादों को बाज़ार तक पहुँचाने में उनकी मदद करनी चाहिए।
- निगरानी और कार्यान्वयन में पारदर्शिता को सुनिश्चित करते हुए निगरानी और नियमों का पालन सख़्ती से कराने की जरूरत : वनरोपण और संरक्षण की प्रभावी निगरानी हेतु उपग्रह और AI आधारित प्रणालियों को अपनाते हुए उल्लंघनकर्ताओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। सैटेलाइट तकनीक का इस्तेमाल करके यह देखना चाहिए कि कहाँ पेड़ लगाए जा रहे हैं और वन संरक्षण कानूनों का उल्लंघन करने वालों को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए।
निष्कर्ष :
- भारत ने आधुनिक तकनीकों—जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और उपग्रह आधारित निगरानी—को वन प्रबंधन में सम्मिलित कर पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक निर्णायक पहल की है। यदि नीति-निर्माताओं, औद्योगिक क्षेत्र और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग की यह भावना बनी रहती है, तो भारत न केवल अपने वनों की रक्षा कर सकेगा, बल्कि वैश्विक जलवायु संकट के विरुद्ध एक सशक्त भूमिका भी निभा सकेगा।
- इसके लिए आवश्यक है कि नवीनतम तकनीकी समाधान सतत रूप से अपनाए जाएँ, और क्रियान्वयन प्रक्रियाओं को अधिक पारदर्शी, समावेशी एवं परिणामोन्मुख बनाया जाए।
- भारत की हरित रणनीतियाँ—नीतिगत सक्रियता, नवाचार आधारित दृष्टिकोण और सामुदायिक सहभागिता—एक ऐसी त्रिसूत्रीय प्रणाली का निर्माण करती हैं, जो न केवल पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्स्थापना में सहायक है, बल्कि देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरणीय नेतृत्व की दिशा में भी अग्रसर करती है।
- सतत् वन प्रबंधन का यह मार्ग तभी सफल हो सकेगा जब इसे दीर्घकालिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक सोच और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ निरंतर आगे बढ़ाया जाए।
- भारत की वर्तमान हरित नीतियाँ, तकनीकी प्रगति और सभी की सक्रिय भागीदारी, न केवल देश की पर्यावरणीय स्थिरता को मज़बूत करती हैं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की पर्यावरण संरक्षण की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
- टिकाऊ वन प्रबंधन की यह राह नीति, प्रौद्योगिकी और समुदाय के समन्वय पर आधारित है, जिसे निरंतरता और प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से और भी शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 06th May 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. टिकाऊ एवं सतत् वन प्रबंधन में तकनीक किस प्रकार सहायक हो सकती है?
- उपग्रहों के माध्यम से वनों के स्वास्थ्य और कटाई की निगरानी करके।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके वनाग्नि के खतरे का पूर्वानुमान लगाकर और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करके।
- अवैध गतिविधियों का पता लगाकर वन विभाग को समय पर कार्रवाई करने में सक्षम बनाकर।
- केवल कागजी कार्रवाई को डिजिटल करके।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1, 2 और 4
B. केवल 1, 2 और 3
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपरोक्त सभी।
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. चर्चा कीजिए कि टिकाऊ एवं सतत् वन – प्रबंधन में तकनीक किस प्रकार सहायक है और यह क्यों अनिवार्य है? भारत की हरित पहलों के तहत इसे प्रभावशाली बनाने हेतु क्या कदम उठाए जा रहे हैं, जिनमें सामुदायिक और निजी क्षेत्र का योगदान तथा समाधान की राह शामिल है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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