खुशहाल बचपन – सुरक्षित स्कूल : भारत के स्कूलों में शारीरिक दंड से मुक्ति

खुशहाल बचपन – सुरक्षित स्कूल : भारत के स्कूलों में शारीरिक दंड से मुक्ति

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत सामाजिक न्याय, बच्चों से संबंधित मुद्दे , सामाजिक सशक्तिकरण, विद्यालयों में शारीरिक दंड का मुद्दा, शारीरिक दंड के संबंध में संवैधानिक और कानूनी प्रावधान ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ स्कूलों में बच्चों के लिए शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में, तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग ने राज्य के स्कूलों में बच्चों के शारीरिक दंड के उन्मूलन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जो छात्रों के शारीरिक और मानसिक कल्याण की रक्षा करने और किसी भी प्रकार के उत्पीड़न को रोकने पर केंद्रित हैं। 
  • तमिलनाडु द्वारा जारी यह दिशा-निर्देश भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में एक सकारात्मक और समर्थक वातावरण स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। 
  • यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में बच्चों के शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव का विषय उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डालता है।

 

भारत में स्कूलों में बच्चों के लिए शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव के लिए निर्धारित दिशा – निर्देशों के प्रमुख प्रावधान : 

भारत में बच्चों के लिए शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव के लिए निर्धारित दिशा -निर्देशों के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है – 

  1. उद्देश्य : ये दिशा-निर्देश शारीरिक दंड, मानसिक उत्पीड़न, और भेदभाव को समाप्त करने और छात्रों के लिए एक सुरक्षित और विकासात्मक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।
  2. मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा : इनमें छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करने और सभी हितधारकों को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के दिशा – निर्देशों के प्रति जागरूक करने के लिए जागरूकता शिविरों का आयोजन करना शामिल है।
  3. निगरानी समितियां : प्रत्येक स्कूल में स्कूल प्राचार्यों, अभिभावकों, शिक्षकों, और वरिष्ठ छात्रों को शामिल करते हुए निगरानी समितियों की स्थापना पर जोर दिया गया है, जो शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव के लिए निर्धारित दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी और मुद्दों का समाधान करेंगी।
  4. सकारात्मक कार्रवाइयां : भारत में बच्चों के प्रति शारीरिक दंड के विरुद्ध सकारात्मक कार्रवाइयों का एक दिशा – निर्देश जारी किया गया है, जिसमें बहु-विषयक हस्तक्षेप, जीवन कौशल शिक्षा, और बच्चों की शिकायतों के लिए एक प्रणाली शामिल है।

 

शारीरिक दंड की परिभाषा :

 

  • शारीरिक दंड की परिभाषा : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अनुसार, शारीरिक दंड वह क्रियाएँ हैं जो बच्चों को दर्द, चोट या हानि पहुँचाती हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकारों पर समिति के अनुसार : शारीरिक दंड को “किसी भी प्रकार का दंड जिसमें शारीरिक बल का उपयोग किया जाता है और जिसका उद्देश्य बच्चों को कुछ हद तक दर्द या असुविधा पहुँचाना होता है” के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • प्रचलन : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, शारीरिक दंड वैश्विक स्तर पर घरों और स्कूलों दोनों में अत्यधिक प्रचलित है।
  • आंकड़े : विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2 से 14 वर्ष की आयु के लगभग 60% बच्चे नियमित रूप से अपने माता-पिता या अन्य देखभाल करने वालों द्वारा शारीरिक रूप से दंडित किए जाते हैं।

 

शारीरिक दंड के उदाहरण :

  • बच्चों को बेंच पर खड़ा करना।
  • दीवार के सामने कुर्सी जैसी मुद्रा में खड़ा करना।
  • सिर पर स्कूल बैग लेकर बैठना।
  • पैरों में हाथ डालकर कान पकड़ना।
  • घुटनों के बल बैठना।
  • जबरन कोई पदार्थ खिलाना।
  • बच्चों को स्कूल परिसर के भीतर बंद स्थानों तक सीमित रखना।

 

मानसिक उत्पीड़न के उदाहरण :

  • बच्चे के लिए व्यंग्य, अपशब्दों और अपमानजनक भाषा का उपयोग करना।
  • बच्चे का उपहास करना या करवाना।
  • बच्चे का अपमान करना या उसे लज्जित करना।
  • बच्चों को भावनात्मक रूप से कष्ट पहुँचाना और उसके लिए समस्याग्रस्त वातावरण निर्मित करना।

 

शारीरिक दंड का औचित्य :

  • अमेरिका के 22 राज्यों में स्कूलों में शारीरिक दंड की विधिक अनुमति है।
  • भारत में भारतीय दण्ड संहिता (IPC), 1860 की धारा 88 और 89 शारीरिक दंड के लिए कुछ प्रावधान निर्धारित करती हैं।

 

किशोर न्याय अधिनियम  2015 :

  • “बच्चे का सर्वोत्तम हित” धारा 2(9) में बच्चे की पहचान, शारीरिक, भावनात्मक, और बौद्धिक विकास को ध्यान में रखने की बात कही गई है।

 

बच्चों के विरुद्ध शारीरिक दंड का प्रभाव :

  • मानसिक स्वास्थ्य : बढ़ी हुई चिंता और अवसाद, आत्मसम्मान में कमी, आक्रामकता और हिंसा, संबंधों में कठिनाई।
  • शारीरिक स्वास्थ्य : शारीरिक चोट, मादक द्रव्यों का सेवन।

 

वर्तमान समय में भारत में बच्चों के प्रति शारीरिक दंड के संबंध में संवैधानिक और कानूनी प्रावधान क्या हैं ?

 

 

भारत में बच्चों के प्रति शारीरिक दंड के विरुद्ध संवैधानिक और कानूनी प्रावधान इस प्रकार हैं – 

वैधानिक प्रावधान :

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE), 2009 : भारतीय संविधान की धारा 17 में बच्चों के प्रति शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न पर पूर्ण प्रतिबंध है, और इसे दंडनीय अपराध माना गया है।
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 : भारतीय संविधान की धारा 23 के अनुसार, नाबालिग के प्रति दुर्व्यवहार करने वाले वयस्क को जेल और जुर्माना दोनों ही हो सकता हैं।

 

कानूनी प्रावधान :

  • भारतीय दण्ड संहिता (IPC) 1860 :
    • धारा 305: बच्चे को आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित है।
    • धारा 323: स्वेच्छा से चोट पहुँचाने से संबंधित है।
    • धारा 325: स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुँचाने से संबंधित है।

 

भारत में बच्चों के प्रति शारीरिक दंड से संबंधित न्यायिक मामले :

 

  • अंबिका एस नागल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2020 : इस मामले में हिमाचल प्रदेश  राज्य के उच्च न्यायालय ने यह माना कि माता-पिता ने अपने बच्चे को स्कूल में सज़ा और अनुशासन के अधीन होने की निहित सहमति दी है।
  • राजन बनाम पुलिस के उप-निरीक्षक, 2014 : केरल उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए कि शिक्षक के पास दंड देने का अधिकार है, के तहत बच्चों को शारीरिक दंड देने को बरकरार रखा।

 

संवैधानिक प्रावधान :

 

  • अनुच्छेद 21A : इसके अनुसार 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है ।
  • अनुच्छेद 24 : भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को जोखिमपूर्ण कार्यों में लगाने पर प्रतिबंध है।
  • अनुच्छेद 39(e) : भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार यह राज्य का कर्त्तव्य है कि किसी भी प्रकार की आर्थिक असमानता के कारण बच्चों के साथ दुर्व्यवहार न हो।
  • अनुच्छेद 45 : इस अनुच्छेद के तहत  0-6 वर्ष के बच्चों की देखभाल करना राज्य का कर्त्तव्य है।
  • अनुच्छेद 51A(k) : भारत में संविधान के इस अनुच्छेद के तहत माता – पिता का यह मौलिक कर्त्तव्य है कि उनके बच्चे को 6 से 14 वर्ष की आयु के लिए शिक्षा प्राप्ति को सुनिश्चित किया जाए। 

 

भारत में बच्चों के प्रति शारीरिक दंड से संबंधित सांविधिक निकाय :

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) : बच्चों के खिलाफ शारीरिक दंड को समाप्त करने के लिए NCPCR दिशानिर्देशों के अनुसार, प्रत्येक स्कूल को शारीरिक दंड निगरानी सेल का गठन करना होगा।

 

बच्चों के प्रति शारीरिक दंड से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून :

 

 

  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC), 1989 : अनुच्छेद 19 में बच्चों को हिंसा से जुड़े किसी भी प्रकार के अनुशासन से बचाने का अधिकार है।

 

भारत में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग : 

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) भारत में एक प्रमुख संस्था है जो बाल अधिकारों की रक्षा और संवर्धन के लिए समर्पित है। 
  • इसकी स्थापना मार्च 2007 में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के अंतर्गत की गई थी। 
  • भरात में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय संविधान और संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर कन्वेंशन के अनुसार बच्चों के अधिकारों का पालन किया जाए। 
  • भारत में यह आयोग महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के प्रमुख कार्यों में शामिल हैं :

  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जांच करना है ।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 के कार्यान्वयन की निगरानी करना है।
  • इसके अलावा, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बच्चों के खिलाफ होने वाले अन्य अपराधों और उनके अधिकारों के हनन के मामलों में भी हस्तक्षेप करता है। 
  • भारत में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग बच्चों के लिए एक सुरक्षित और सहायक वातावरण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न पहलों और अभियानों का संचालन करता है।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

 

भारत के स्कूलों में बच्चों के लिए शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव के लिए कुछ महत्वपूर्ण कानून निम्नलिखित है – 

  • बाल संरक्षण कानून (Child Protection Laws) : भारत में बच्चों की सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं। इन कानूनों के तहत सभी बच्चों के अधिकार सुरक्षित होते हैं और उन्हें संरक्षण दिया जाता है।
  • बच्चों के खिलाफ हिंसा के खिलाफ जागरूकता : बच्चों के खिलाफ हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। शिक्षकों, माता-पिता, और समाज के अन्य सदस्यों को बच्चों के अधिकारों की प्रमाणित जानकारी और उनके सुरक्षा के बारे में जागरूक करने की जरूरत है।
  • बच्चों के शिक्षकों के लिए जागरूकता : शिक्षकों को बच्चों के साथ व्यवहार करते समय उनके अधिकारों की प्रमाणित जानकारी होनी चाहिए। उन्हें शारीरिक दंड के बारे में भी जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे बच्चों के साथ सही तरीके से व्यवहार करें।
  • बच्चों के अधिकार की जांच : राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, शारीरिक दंड को किसी भी कार्रवाई के रूप में समझा जाता है जो बच्चे को दर्द, चोट और परेशानी का कारण बनता है, चाहे वह हल्का ही क्यों न हो। इन प्रावधानों के तहत भारत में  बच्चों के प्रति शारीरिक दंड के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते हैं और उनके अधिकारों की रक्षा करते हैं।
  • भारत में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा निर्धारित ये दिशा – निर्देश बच्चों को शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाने के लिए महत्वपूर्ण कदम हैं और उनके संरक्षण के लिए एक सकारात्मक दिशा प्रदान करते हैं।

स्त्रोत – द हिन्दू।

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 14th Feb 2025

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. निम्नलिखित अधिकारों पर विचार कीजिए : 

  1. भारत के प्रत्येक नागरिकों का सार्वजनिक सेवा तक समान पहुँच का अधिकार।
  2. सभी नागरिकों को शिक्षा का अधिकार।
  3. भारत में सभी को भोजन का अधिकार।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से “मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा” के अंतर्गत मानवाधिकार है/हैं?

A. केवल 1 और 2

B. केवल 2 और 3

C. केवल 2 और 3

D. केवल 1, 2 और 3

उत्तर – D

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में मानवाधिकार आयोग की संरचनात्मक सीमाएँ क्या हैं और बच्चों के प्रति शारीरिक दंड और दुर्व्यवहार से बचाव से संबंधित संवैधानिक एवं कानूनी प्रावधानों का उल्लेख करते हुए शारीरिक दंड के मुद्दे पर तर्कसंगत चर्चा करें? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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