जलवायु परिवर्तन और आर्कटिक के बर्फ के पिघलने का मानसून पर असर

जलवायु परिवर्तन और आर्कटिक के बर्फ के पिघलने का मानसून पर असर

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भौतिक भूगोल , भारतीय मानसून का विविधतापूर्ण प्रणाली , भारत के लिए मानसून का महत्त्व, भारतीय मानसून पर आर्कटिक समुद्री बर्फ का प्रभाव, भारतीय कृषि के लिए मानसून पैटर्न में बदलाव का अर्थ ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ जल संसाधन , पश्चिमी विक्षोभ , आर्कटिक सागर की बर्फ पिघलना , एल नीनो और ला नीना जैसी जलवायु परिवर्तन की घटनाएँ , भारतीय कृषि की सिंचाई प्रणाली ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में हुए एक शोध अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते आर्कटिक समुद्री बर्फ का स्तर घट रहा है, जिसका सीधा असर भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) पर पड़ रहा है। इससे मानसून की अस्थिरता और अनिश्चितता बढ़ रही है।
  • इस शोध में भारत के राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR) और दक्षिण कोरिया के कोरिया ध्रुवीय अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • इस शोध अध्ययन के अतिरिक्त, एक अलग अध्ययन में उत्तर-पश्चिमी भारत में इस मानसून सीज़न में हुई अत्यधिक बारिश को जलवायु संकट से जुड़े दीर्घकालिक परिवर्तनों का परिणाम बताया गया है। 
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित शोध अध्ययन के ये निष्कर्ष हमें यह समझने में मदद करते हैं कि जलवायु परिवर्तन कैसे स्थानीय जलवायु पैटर्न को प्रभावित कर रहा है, और इसके संभावित नकारात्मक परिणाम क्या हो सकते हैं।

 

आर्कटिक समुद्री बर्फ और भारतीय मानसून पर इसका प्रभाव : 

मध्य आर्कटिक सागर की बर्फ में कमी :

  • वर्षा में परिवर्तन : आर्कटिक महासागर और उसके आस-पास के समुद्री बर्फ आवरण में कमी के कारण पश्चिमी और प्रायद्वीपीय भारत में वर्षा में कमी आती है, जबकि मध्य और उत्तरी भारत में वर्षा में वृद्धि होती है।
  • कारण : महासागर से वायुमंडल में ऊष्मा स्थानांतरण में वृद्धि होती है, जिससे रॉस्बी तरंगें मज़बूत होती हैं, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को बदल देती हैं।
  • प्रभाव : बढ़ी हुई रॉस्बी तरंगें उत्तर-पश्चिम भारत पर उच्च दबाव और भूमध्य सागर पर निम्न दबाव उत्पन्न करती हैं, जिससे उपोष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट उत्तर की ओर स्थानांतरित हो जाता है।

 

बेरेंट्स-कारा सागर क्षेत्र की समुद्री बर्फ में कमी :

  • वर्षा में परिवर्तन : बेरेंट्स-कारा सागर में समुद्री बर्फ की कमी के कारण दक्षिण-पश्चिम चीन पर उच्च दाब और सकारात्मक आर्कटिक दोलन होता है, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है।
  • कारण : समुद्री बर्फ के कम होने से सागर गर्म होता है, जिससे उत्तर-पश्चिमी यूरोप में साफ आसमान देखने को मिलते हैं।
  • प्रभाव : यह व्यवधान उपोष्णकटिबंधीय एशिया और भारत में ऊपरी वायुमंडलीय स्थितियों को प्रभावित करता है, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर भारत में अधिक वर्षा होती है, जबकि मध्य तथा उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में कम वर्षा होती है।

 

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव : 

  • जलवायु परिवर्तन के कारण अरब सागर और आस-पास के जल निकायों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे मौसम के पैटर्न में अस्थिरता आ रही है। यह मानसूनी वर्षा की परिवर्तनशीलता को बढ़ाता है, जिससे कृषि और जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।इस प्रकार, आर्कटिक समुद्री बर्फ की स्थिति भारतीय मानसून के पैटर्न को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है, जिससे वर्षा का वितरण असमान हो जाता है और विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।

 

उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिशेष वर्षा का मुख्य कारण : 

  • अरब सागर की आर्द्रता में वृद्धि होना : अरब सागर की बढ़ती आर्द्रता के कारण उत्तर-पश्चिमी भारत में मानसून अधिक आर्द्र हो जाता है। उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों में यह प्रवृत्ति जारी रहने की संभावना होती है।
  • पवन प्रतिरूपों में परिवर्तन होना : वर्षा में वृद्धि पवन प्रतिरूपों में परिवर्तन से जुड़ी होती है। अरब सागर क्षेत्र में तेज पवनें और उत्तरी भारत में मंद पवनें उत्तर-पश्चिमी भारत में आर्द्रता को अवरुद्ध करती हैं। इन पवनों के कारण अरब सागर से वाष्पीकरण भी बढ़ता है, जिससे वर्षा में वृद्धि होती है।
  • दाब प्रवणता में बदलाव होना : वायु प्रतिरूपों में परिवर्तन दाब प्रवणता में बदलाव के कारण होता है। मस्कारेने द्वीप समूह (हिंद महासागर) के आस-पास बढ़े हुए दाब और भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में घटते दाब से उत्तर-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है।
  • पूर्व-पश्चिम दाब प्रवणता में वृद्धि होना : पूर्वी प्रशांत क्षेत्र पर उच्च दाब का प्रभाव पूर्व-पश्चिम दाब प्रवणता को बढ़ाता है, जिससे पवनों की गति में वृद्धि होती है और मानसून की आर्द्रता में और बढ़ोतरी होती है।

 

‘रॉस्बी’ तरंग क्या होता है ? 

  • ‘रॉस्बी’ तरंग बड़े पैमाने की वायुमंडलीय तरंगें होती हैं, जो मुख्य रूप से पृथ्वी के वायुमंडल के मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होती हैं। ये तरंगें पश्चिम से पूर्व की ओर बहने वाली उच्च ऊँचाई वाली वायु धाराओं के साथ जेट धाराओं के रूप में बनती हैं और इनका घुमावदार पैटर्न होता है जो उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में मौसम को प्रभावित करता है। ये तरंगें वैश्विक मौसम पैटर्न को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और तापमान चरम सीमा और वर्षा के स्तर को प्रभावित करती हैं। रॉस्बी तरंगें वैश्विक ताप वितरण को संतुलित करने में मदद करती हैं, ध्रुवीय क्षेत्रों को अधिक ठंडा होने से और भूमध्यरेखीय क्षेत्रों को अधिक गर्म होने से रोकती हैं।

 

भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) : 

  • भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) एक मौसमी जलवायु घटना है, जो जून से सितंबर के बीच होती है। इस दौरान, हिंद महासागर से आने वाली नम हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप में भारी वर्षा लाती हैं।

 

भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) के प्रमुख कारक : 

  • महासागरीय तापमान : भारतीय, अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के सतह के तापमान में परिवर्तन ISMR को प्रभावित करते हैं। 
  • वायुमंडलीय तरंगें : मध्य अक्षांशों पर प्रवाहित होने वाली बड़ी वायुमंडलीय तरंगें और सर्कम-ग्लोबल टेलीकनेक्शन (CGT) भी ISMR को प्रभावित करते हैं।

 

भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) का गठन : 

  • सूर्य का प्रभाव : सूर्य का प्रकाश भारतीय भू-भाग को तेजी से गर्म करता है, जिससे एक निम्न-दाब पट्टी विकसित होती है जिसे अंतःउष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) कहा जाता है।
  • व्यापारिक पवनें : दक्षिण-पूर्व से आने वाली व्यापारिक पवनें कोरिओलिस बल के कारण भारतीय भू-भाग की ओर मुड़ जाती हैं और अरब सागर से आर्द्रता ग्रहण कर भारत में वर्षा करती हैं।

 

भारत में मानसून की मुख्य शाखाएँ : 

भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून दो मुख्य शाखाओं में विभाजित होता है। जो निम्नलिखित है – 

  1. अरब सागर शाखा : यह शाखा पश्चिमी तट पर वर्षा करती है।
  2. बंगाल की खाड़ी शाखा : यह शाखा भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर भागों में वर्षा करती है। ये शाखाएँ पंजाब और हिमाचल प्रदेश में मिलती हैं।

 

शीतकालीन मानसून वर्षा : 

  • पूर्वोत्तर मानसून सर्दियों में लौटने वाला मानसून है, जो अक्तूबर से दिसंबर तक सक्रिय रहता है। यह मानसून साइबेरियाई और तिब्बती पठारों पर बनने वाले उच्च दाब सेल्स के कारण उत्पन्न होता है। भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) भारतीय कृषि, जल संसाधन एवं  इसके पैटर्न का अध्ययन करना जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और संपूर्णअर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

 

भारत में मानसून का महत्त्व : 

 

  1. खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका और कृषि के लिए महत्वपूर्ण होना : मानसून भारतीय कृषि का अभिन्न हिस्सा है, जो खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है। लगभग 61% किसान वर्षा पर निर्भर हैं। एक संतुलित और समय पर आने वाला मानसून भारत की 55% वर्षा-आधारित फसलों की उत्पादकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे समग्र कृषि और अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  2. भारत के जल संसाधन प्रबंधन में सहायक होना : भारत में वार्षिक वर्षा का 70-90% हिस्सा मानसून के दौरान (जून से सितंबर) प्राप्त होता है। यह नदियों, झीलों और भूजल के पुनर्भरण के लिए आवश्यक है। इस अवधि में जल का उपयोग सिंचाई, पेयजल और जलविद्युत उत्पादन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
  3. समग्र अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला आर्थिक प्रभाव : अच्छा मानसून ग्रामीण आय और उपभोक्ता मांग में वृद्धि करता है। इसके विपरीत, खराब मानसून खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति का कारण बन सकता है, जिससे समग्र अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, और इसके परिणामस्वरूप मौद्रिक नीति और सरकारी व्यय में बदलाव होता है।
  4. भारत के विविध पारिस्थितिकी तंत्रों के संतुलन को बनाए रखने में सहायक : मानसून भारत के विविध पारिस्थितिकी तंत्रों का समर्थन करता है। यह जैवविविधता, वन्यजीवों की गतिशीलता और आवास की सेहत को प्रभावित करता है। मानसून के पैटर्न में बदलाव से वनस्पति और जीवों की जीविका पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
  5. वैश्विक जलवायु विनियमन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना : भारतीय मानसून वैश्विक जलवायु विनियमन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वायुमंडलीय पैटर्न को प्रभावित करता है और जलवायु परिवर्तन की घटनाओं, जैसे एल नीनो और ला नीना, के साथ अंतःक्रिया करता है। इस प्रकार, भारत में मानसून केवल एक मौसम की घटना नहीं है, बल्कि यह भारत के आर्थिक, सामाजिक और पारिस्थितिकीय संतुलन का एक महत्वपूर्ण आधार स्तंभ भी है।

 

आर्कटिक महासागर और जलवायु परिवर्तन में इसका महत्व : 

 

  • आर्कटिक महासागर विश्व का सबसे छोटा महासागर है, जो उत्तरी ध्रुव के चारों ओर स्थित है। इसकी सीमाएँ कनाडा, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के तटों से मिलती हैं। इस महासागर में प्रमुख समुद्रों में बैरेंट्स, कारा, लाप्टेव, पूर्वी साइबेरियाई और ब्यूफोर्ट सागर शामिल हैं।
  • हिम आवरण का मुख्य रूप से समुद्री बर्फ से ढका होना : आर्कटिक महासागर मुख्य रूप से समुद्री बर्फ से ढका हुआ है, जो मौसम के अनुसार पिघलता और जमता रहता है। हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हुई है, जिससे इसके हिम आवरण में गिरावट आ रही है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक : आर्कटिक महासागर जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। तेजी से बढ़ते तापमान के कारण हिम-आवरण में गिरावट हो रही है, जिससे नए शिपिंग मार्ग (जैसे उत्तरी समुद्री मार्ग) विकसित हो रहे हैं और संसाधनों तक पहुँच बढ़ रही है।
  • प्राकृतिक संसाधनों की अवस्थिति : आर्कटिक महासागर में विश्व के अनुमानित 13% तेल और 30% प्राकृतिक गैस भंडार मौजूद हैं। इस प्रकार, आर्कटिक महासागर न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से बल्कि आर्थिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने और उनसे निपटने के लिए आर्कटिक क्षेत्र का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है।

 

स्रोत –  द हिंदू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक बर्फ का पिघलना किस प्रक्रिया का हिस्सा है और यह वैश्विक जलवायु को कैसे प्रभावित करता है?

A. ओज़ोन परत का पतला होना और जलवायु परिवर्तन की गति में कमी होना।

B. ग्लोबल वार्मिंग और समुद्री जल स्तर में वृद्धि होना।
C. वन्यजीवों की संख्या में वृद्धि और तापमान में कमी होना।
D. भूकंपीय गतिविधि और अधिक बर्फबारी होना।

  

उत्तर-  B. ग्लोबल वार्मिंग और समुद्री जल स्तर में वृद्धि होना।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में मानसून के प्रभावों को रेखांकित करते हुए यह चर्चा कीजिए कि क्या जलवायु परिवर्तन के चलते आर्कटिक समुद्री बर्फ का स्तर घटने से भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) पर अस्थिरता और अनिश्चितता बढ़ रही है? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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