दुराहे पर खड़ा भारत : जनसंख्या में वृद्धि और घटता कुल प्रजनन दर

दुराहे पर खड़ा भारत : जनसंख्या में वृद्धि और घटता कुल प्रजनन दर

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भारतीय समाज , स्वास्थ्य , जनसंख्या और संबद्ध मुद्दे , बच्चों से संबंधित मुद्दे , महिलाओं से संबंधित मुद्दे , जनसंख्या नियंत्रण एवं घटती प्रजनन दर के प्रभाव ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण , आंतरिक प्रवास, घटता कुल प्रजनन दर , सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0, वृद्ध होती जनसंख्या और आर्थिक स्थिरता ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ? 

 

  • हाल ही में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरी एंड रिस्क फैक्टर स्टडी (GBD) से यह जाहिर  हुआ है कि पिछले कुछ दशकों में भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) में काफी कमी आई है। 
  • भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) में इस कमी के परिणामस्वरूप, भारत में विशेष रूप से दक्षिणी राज्यों में, उसके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभावों को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है।

 

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष : 

 

इस अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं – 

  1. भारत की प्रजनन दर में गिरावट होना : भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 1950 के दशक के 6.18 से घटकर 2021 में 1.9 हो गई है, जो कि प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से भी कम है। अनुमान है कि 2100 तक यह दर और गिरकर 1.04 पर पहुँच जाएगी, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक महिला के लिए औसतन एक ही बच्चा होगा।
  2. भारत के भिन्न राज्यों के क्षेत्रीय अंतर का होना : दक्षिणी राज्य जैसे केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक ने पहले ही उत्तरी राज्यों की तुलना में प्रतिस्थापन-स्तर की प्रजनन दर प्राप्त कर ली है। विशेषकर, केरल में 2036 तक वृद्ध जनसंख्या बच्चों से अधिक हो सकती है। उच्च श्रम मजदूरी और जीवन की गुणवत्ता जैसे कारणों से प्रवासी श्रमिकों की संख्या 2030 तक 60 लाख तक पहुँचने का अनुमान है।
  3. महिला सशक्तिकरण और सामाजिक-आर्थिक कारक : महिला साक्षरता, कार्यबल में उनकी भागीदारी, और महिला सशक्तिकरण ने प्रजनन दर में गिरावट पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। इसके अलावा, विवाह और मातृत्व में देरी या गर्भ धारण में परहेज करने जैसे बदलते दृष्टिकोण भी इस गिरावट के प्रमुख कारण हैं।
  4. बदलते सामाजिक प्रतिमान, स्वास्थ्य के प्रति बदलता दृष्टिकोण और प्रवासन का होना : पुरुषों और महिलाओं में बांझपन के मामलों में वृद्धि और गर्भपात की बढ़ती स्वीकृति ने भी प्रजनन दर में कमी में योगदान किया है। इसके अलावा, कई युवा लोग शिक्षा और रोजगार के लिए विदेश जा रहे हैं, जिससे देश में प्रजनन दर और कम हो रही है।
  5. प्रजनन दर और प्रतिस्थापन स्तर : राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, TFR 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है। प्रतिस्थापन स्तर 2.1 माना जाता है, जिसका मतलब है कि जनसंख्या का स्तर बिना किसी वृद्धि या गिरावट के स्थिर रहेगा। 
  6. दीर्घकालिक जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ पैदा होना : भारत की वर्तमान जनसंख्या की तुलना में हालाँकि, 2.1 से कम कुल प्रजनन दर (TFR) नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि का कारण बन सकती है, जिससे संभावित रूप से दीर्घकालिक जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं, जो वृद्ध होती जनसंख्या, का कारण बन सकती है।

 

निम्न प्रजनन दर के संभावित परिणाम :

 

  1. जनसंख्या का आयु-ध्रुव तीव्र गति से बढ़ना और वृद्ध होती जनसंख्या : जन्म दर में गिरावट और जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण जनसंख्या का आयु-ध्रुव तीव्र गति से बढ़ रहा है। वर्तमान में भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 149 मिलियन लोग हैं, जो कुल जनसंख्या का 10.5% हैं। 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 347 मिलियन और जनसंख्या का 20.8% तक पहुँचने का अनुमान है।
  2. सामाजिक कल्याण और स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी खर्चे से उत्पन्न होने वाला आर्थिक प्रभाव : युवा कार्यबल में कमी और वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि के कारण निर्भरता अनुपात में वृद्धि हो रही है, जिससे सामाजिक कल्याण और स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी दबाव बढ़ेगा। पेंशन और वृद्धों की देखभाल की बढ़ती लागत से सरकार और परिवार दोनों के लिए वित्तीय बोझ बढ़ेगा। 
  3. भारत को मध्य आय के जाल में फंसने का खतरा उत्पन्न होना : विकसित देशों की तुलना में, जहाँ प्रति व्यक्ति आय अधिक है, भारत को बिना पर्याप्त आर्थिक संसाधनों के वृद्धावस्था के संकट का सामना करना पड़ रहा है। अगर भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ वृद्धि नहीं रहती है, तो उसे मध्य आय के जाल में फंसने का खतरा हो सकता है।
  4. श्रम बाजार पर पड़ने वाला संभावित प्रभाव : प्रजनन दर में गिरावट से कार्यबल में कमी आ सकती है, जो उत्पादकता में कमी और आर्थिक विकास में रुकावट का कारण बन सकता है।

 

निम्न प्रजनन दर से निपटने के लिए वैश्विक दृष्टिकोण :

 

  1. जर्मनी : जर्मनी में निम्न प्रजनन दर से निपटने के लिए उदार श्रम कानून, पैतृक अवकाश और लाभों के कारण जर्मनी ने अपनी जन्म दर में वृद्धि हासिल की है।
  2. डेनमार्क : डेनमार्क में निम्न प्रजनन दर से निपटने के लिए वहां की 40 वर्ष से कम आयु की महिलाओं के लिए राज्य द्वारा वित्तपोषित इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) उपचार की सुविधा प्रदान की जाती है।
  3. रूस और पोलैंड : रूस और पोलैंड में निम्न प्रजनन दर से निपटने के लिए रूस में जहाँ अधिक बच्चों वाले परिवारों को एकमुश्त वित्तीय प्रोत्साहन देता है, वहीं पोलैंड में एक से अधिक बच्चों वाले परिवारों को नकद सहायता प्रदान करता है।

 

समाधान / आगे की राह :

 

 

  1. श्रम बाजार के अनुसार नीतिगत स्तर पर सुधार करने की जरूरत : भारत को श्रम बाजार की उपयुक्त नीतियाँ अपनाने की आवश्यकता है, जैसा कि जर्मनी और डेनमार्क ने किया है। इसके तहत, कार्य-जीवन संतुलन को बेहतर बनाने के लिए माता-पिता को अधिक लाभ और सहायता प्रदान की जा सकती है, ताकि वे प्रजनन दर को बढ़ावा दे सकें। 
  2. डिजिटल और व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ सार्वजनिक संस्थाओं का आधुनिकीकरण करने की जरूरत : आजकल, एक बच्चे के पालन-पोषण पर 30 लाख से लेकर 1.2 करोड़ रुपए तक खर्च हो जाते हैं, जिससे कई मध्यम वर्गीय परिवार इस जिम्मेदारी से हतोत्साहित हो जाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए, शिक्षा को सस्ता और उपलब्ध बनाने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही, कौशल में असंगति की समस्या के समाधान हेतु डिजिटल और व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ सार्वजनिक संस्थाओं का आधुनिकीकरण भी जरूरी है। 
  3. जनांकिकीय लाभांश को सहायता प्रदान करते हुए आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की जरूरत :  भारत के नीति निर्माता अगर वृद्ध होती जनसंख्या को सहायता देने में सफल होते हैं, तो भारत का आर्थिक विकास सुरक्षित रह सकता है, अन्यथा जनांकिकीय लाभांश का नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, सब्सिडी और कर लाभ प्रदान करने से परिवारों को आर्थिक मदद मिल सकती है।
  4. माताओं और बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकताओं पर ध्यान देने की जरूरत : भारत में माताओं और बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, बाल देखभाल संस्थानों को बढ़ावा देना और प्रसवपूर्व देखभाल को प्राथमिकता देना अत्यंत जरूरी है। तेलंगाना में गर्भावस्था किटों के वितरण जैसी पहलों का देशभर में विस्तार करके मातृ स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है, जिससे प्रजनन दर में भी सुधार हो सकता है।
  5. संवहनीय IVF सेवाओं को प्रोत्साहित करना और प्रजनन सहायता को मुहैया करवाना : कामकाजी महिलाओं के लिए यह आवश्यक है कि उनके कॅरियर को प्रभावित किए बिना प्रजनन दर बढ़ाने के उपाय उपलब्ध हों। इसके लिए संवहनीय IVF उपचार और सरोगेसी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, ताकि अधिक परिवार बच्चों की परवरिश कर सकें।

 

स्त्रोत – राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण एवं द हिन्दू। 

Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 27th Jan 2025

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. हाल ही में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार भारत में कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट का मुख्य कारण क्या है ?

  1. महिला साक्षरता और महिलाओं का कार्यबल भागीदारी में वृद्धि होना। 
  2. विवाह, गर्भधारण और मातृत्व में देरी होना। 
  3. केवल पारंपरिक शिक्षा प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करना। 
  4. उच्च श्रम मजदूरी और उच्च जीवन गुणवत्ता का होना। 

उपर्युक्त में से कौन सा कथन सही है ? 

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. केवल 2 और 3 

D. केवल 1 और 2 

उत्तर – D

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में जनसांख्यिकी परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, घटती प्रजनन दर और इससे जुड़े सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को लेकर बढ़ती चिंता के मुख्य कारण क्या हैं? इसके साथ ही यह चर्चा कीजिए कि भारत में प्रजनन दर में गिरावट के संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं और इसे सुधारने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 ) 

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