भारत के जेलों में जाति : भारत की न्याय प्रणाली में असमानताएँ

भारत के जेलों में जाति : भारत की न्याय प्रणाली में असमानताएँ

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भारतीय समाज , भारत में जातिवादी और वर्णवादी सामाजिक व्यवस्था , भारत के जेलों में जाति के आधार पर होने वाली न्याय प्रणाली में असमानता ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सुकन्या शांता बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले , भारत में जेल सुधार समितियों की प्रमुख सिफारिशें , कानूनी प्रावधान और प्रमुख निर्णय , मैनुअल स्कैवेंजिंग , नेल्सन मंडेला नियम , मॉडल जेल मैनुअल ’ खंड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव पर रोक लगाने के लिये कई निर्देश जारी किए हैं।
  • भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुकन्या शांता बनाम भारत संघ मामले में यह निर्णय दिया है। 
  • न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि किसी भी कैदी को उसकी जाति के आधार पर कार्य या आवास व्यवस्था न दी जाए। 
  • इस फैसले से जेलों में जातिगत भेदभाव की प्रथा को समाप्त करने और उसमें सुधार करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता सुकन्या शांता, जो पेशे से पत्रकार हैं ने जेलों में जातिगत भेदभाव पर आधारित एक लेख लिखा था और भारत के जेलों में आपत्तिजनक प्रावधानों को निरस्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय  में याचिका दायर की थी।

 

सुकन्या शांता बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि : 

 

सुकन्या शांता बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि निम्नलिखित है:

  • पत्रकार सुकन्या शांता ने अपने लेख “ पृथक्करण से लेकर श्रम तक, मनु की वर्ण व्यवस्था भारतीय जेल प्रणाली पर नियंत्रण ” में भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव पर प्रकाश डाला था। उन्होंने राज्य जेल मैनुअल में आपत्तिजनक प्रावधानों को निरस्त करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

 

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला :

  • भेदभावपूर्ण प्रथाओं का असंवैधानिक होना : सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और विमुक्त जनजातियों (डीएनटी) के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को असंवैधानिक करार दिया है।
  • मौलिक मानवीय गरिमा के खिलाफ होना : डीएनटी कैदियों के साथ “आदतन अपराधी” जैसा व्यवहार करना मौलिक मानवीय गरिमा के खिलाफ है।
  • जाति आधारित श्रम आवंटन भारतीय संविधान के विरुद्ध होना : जाति आधारित श्रम आवंटन, जैसे सफाई का काम हाशिए पर पड़ी जातियों को और खाना पकाने का काम उच्च जातियों को सौंपना, संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत निषिद्ध अस्पृश्यता को दर्शाना : भारत के कई राज्यों के जेल में भोजन ‘उपयुक्त जाति’ द्वारा पकाने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत निषिद्ध अस्पृश्यता को दर्शाता है।
  • व्यक्तिगत विकास में बाधा डालना : जाति आधारित भेदभाव व्यक्तिगत विकास में बाधा डालता है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
  • जबरन श्रम के समान होना : भारत के जेलों में विशिष्ट जातियों को नीच काम सौंपना अनुच्छेद 23 के तहत जबरन श्रम के समान है।
  • मॉडल जेल मैनुअल : सन 2016 के मॉडल जेल मैनुअल में जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने में खामियां पाई गई है। इस प्रकार, सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों में जाति-आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं।

 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किया गया दिशा – निर्देश और भारत में जेलों की स्थिति : 

 

 

  • सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे जाति आधारित पूर्वाग्रहों से निपटने के लिए अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) और अमानतुल्लाह खान बनाम पुलिस आयुक्त, दिल्ली (2024) मामलों में निर्धारित दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करें। इन दिशानिर्देशों में पुलिस अधिकारियों से प्रक्रियागत सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपेक्षा की गई है, विशेष रूप से कमजोर समुदायों के लिए, ताकि प्रणालीगत पूर्वाग्रहों के खिलाफ व्यापक लड़ाई को मजबूती मिल सके।

भारत में जेलों की स्थिति भी कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है, जो कैदियों के अधिकारों और कल्याण को प्रभावित करती हैं। इनमें निम्नलिखित स्थितियाँ शामिल हैं:

  • कैदियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होना : भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जबकि अनुच्छेद 39A जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करता है। फिर भी, भारतीय जेलों में कैदियों के मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन हो रहा है।
  • विचाराधीन कैदियों की संख्या अधिक होने के कारण अत्यधिक भीड़भाड़ का होना : वर्तमान में भारत में जेलें 117% क्षमता पर संचालित हो रही हैं, जिसका मुख्य कारण विचाराधीन कैदियों की संख्या अधिक होना है।
  • जेलों में अस्वास्थ्यकर परिस्थितियों का होना : भारत के विभिन्न राज्यों के जेलों में कई कैदियों को उचित चिकित्सा सुविधाएँ नहीं मिल पाती हैं। महिला कैदियों को अक्सर पर्याप्त सैनिटरी उत्पाद और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं मिलती हैं।
  • पुलिस हिरासत में कैदियों के साथ होने वाली हिंसा और यातना : वर्ष 1986 के डी.के. बसु के केस में फैसले में यातना पर रोक लगाने के बावजूद हिरासत में हिंसा की खबरें जारी हैं, तथा हिरासत में मृत्यु के मामले भी बढ़ रहे हैं।
  • भारत में न्याय पाने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रियाओं का होना : भारत में अभी भी न्याय पाने के लिए लंबी कानूनी प्रक्रियाएँ चलती रहती है, जो जेल प्रशासन को बाधित करने के साथ – ही साथ कैदियों की पीड़ा को बढ़ाती हैं।
  • महिला कैदियों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ : भारत के विभिन्न राज्यों की जेलों में महिला कैदियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन उन्हें अक्सर अपर्याप्त सुविधाओं का सामना करना पड़ता है।भारत में  महिलाओं के लिए समर्पित जेलों की कमी है।
  • भारत के जेलों में जाति आधारित भेदभाव का मौजूद होना : जेलों में जाति आधारित भेदभाव अभी भी मौजूद है, जिससे कुछ वर्गों के लोगों को गंदे कामों में लगाया जाता है। भारतीय जेलों में अभी भी ब्रिटिश शासन के दौरान बनाये गए पुराने कानूनों के तहत, कुछ वर्गों/ जातियों को गंदे और अस्पृश्यता से संबंधित कामों या मैनुअल स्कैवेंजिंग जैसे कामों में लगाया जाता है, जिससे समाज में कुछ वर्गों या जाति समूहों के प्रति गलत धारणाएँ बनी रहती हैं। मैनुअल स्कैवेंजिंग कानून लागू होने के बावजूद, भारत के जेलों में यह प्रथा अभी भी जारी है।

 

भारत में जेल सुधार समितियों की प्रमुख सिफारिशें, कानूनी प्रावधान और प्रमुख निर्णय :

 

  1. मुल्ला समिति (1983) : इस समिति ने भारत में कैदियों के लिए बेहतर जेल आवास, भारतीय कारागार सेवाओं का सृजन, पारदर्शिता के लिए मीडिया दौरे, विचाराधीन कैदियों की संख्या में कमी, राष्ट्रीय नीति और सामुदायिक सेवा विकल्प प्रदान करने की सिफारिश सरकार को दी थी।
  2. कृष्ण अय्यर समिति (1987) : इस समिति ने पुलिस बल में महिलाओं की बढ़ती संख्या, महिला अपराधियों के लिए अलग संस्थान, और दोषी महिलाओं की गरिमा का संरक्षण की सिफारिश दी थी।
  3. अमिताव रॉय पैनल (2018) : इस पैनल ने विशेष फास्ट ट्रैक कोर्ट, वकील-कैदी अनुपात में सुधार, और वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करने की की सिफारिश की थी।
  4. आदर्श कैदी अधिनियम (2023) : इस अधिनियम के तहत कैदियों को मुफ्त कानूनी सहायता, पैरोल और फर्लो का प्रावधान, महिला एवं ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए विशेष सुविधाएं, और जेल प्रशासन में तकनीकी उपयोग करने का प्रावधान सुनिश्चित किया था।

 

प्रमुख कानूनी मामले : 

  • हुसैनआरा खातून बनाम गृह सचिव (1979) : इस मामले में विचाराधीन कैदियों के लिए शीघ्र सुनवाई के अधिकार पर जोर दिया गया है।
  • राजस्थान राज्य बनाम बालचंद (1978) : जमानत का अधिकार के तहत जमानत नियम है, जेल नहीं।

 

कैदियों के साथ व्यवहार में सुधार हेतु वैश्विक प्रयास और समाधान की राह : 

 

 

  1. नेल्सन मंडेला नियम जेल से संबंधित एक ऐसे दिशा – निर्देशों का समूह है, जिसे विश्व के प्रमुख नेताओं ने स्थापित किया है। 
  2. इन नियमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी कैदियों के साथ सम्मान और दयालुता से व्यवहार किया जाए, भले ही वे कौन हों या उन्होंने क्या किया हो।
  3. ये नियम इस बात पर जोर देते हैं कि किसी व्यक्ति के साथ उसके सामाजिक या व्यक्तिगत पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
  4. नेल्सन मंडेला नियम जेलों में सुधार और कैदियों के प्रति दयालुता के व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए हैं, हालांकि ये कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। 
  5. वर्ष 2016 में भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी किया गया मॉडल जेल मैनुअल, जो इन नियमों पर आधारित है, दुनिया भर के देशों के लिए एक संदर्भ प्रदान करता है।
  6. वैश्विक सिफारिशों के बावजूद, कई देश अपनी जेल प्रणालियों में सुधार करने या मौजूदा नीतियों की पुनरावलोकन में संकोच कर रहे हैं। 
  7. इस स्थिति में सुधार के लिए, जेल अधिकारियों के लिए संवेदनशीलता कार्यक्रम और जागरूकता अभियानों का आयोजन किया जा रहा है, ताकि उन्हें निष्पक्ष और मानवीय व्यवहार के प्रति जागरूक किया जा सके।
  8. कैदियों के बीच समानता को बढ़ावा देने के लिए 1894 के कारागार अधिनियम जैसे कठोर प्रावधानों का पुनर्मूल्यांकन करने की वैश्विक मांग भी उठ रही है। 
  9. इस प्रकार के प्रयासों के माध्यम से, हम कैदियों के अधिकारों की रक्षा और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकते हैं।

 

स्रोत – द हिंदू।

 

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. कृष्ण अय्यर समिति ने भारत में जेल सुधार के संदर्भ में किस प्रकार के कैदियों के लिए विशेष ध्यान देने की सिफारिश की थी?

  1. विचाराधीन कैदी
  2. महिला और वृद्ध कैदी

उपरोक्त विकल्पों में से कौन सा विकल्प सही है ?

A. केवल 1

B. केवल 2

C. न तो 1 और न ही 2

D. 1 और 2 दोनों

उत्तर – D. 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत के जेलों में जाति के प्रभाव और न्याय प्रणाली में असमानताओं के कारणों और परिणामों का विश्लेषण करें तथा यह चर्चा करें कि भारत में विभिन्न जातियों के प्रति न्यायालयों, पुलिस और कारागारों में भेदभाव और असमानताओं का समाज क्या प्रभाव पड़ता है ? तर्कसंगत सुझाव प्रस्तुत कीजिए। ( शब्द सीमा – 250 अंक 15 )  

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