राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 का पुनर्मंथन : बदलाव या बोझ का विस्तार

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 का पुनर्मंथन : बदलाव या बोझ का विस्तार

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास, भारत में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों में सुधार की वर्तमान प्रासंगिकता, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे, भारत में समावेशी विकास और गरीबी उन्मूलन की दिशा में सरकार द्वारा प्रारंभ किए गए पहल ’ खण्ड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES), तेंदुलकर समिति, बहुआयामी गरीबी सूचकांक, नीति आयोग, रंगराजन समिति, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, अंत्योदय अन्न योजना ’ खण्ड से संबंधित है।)

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में जारी घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES), 2023-24 के निष्कर्षों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण बदलावों को रेखांकित किया है। सर्वेक्षण के अनुसार, आय स्तर में अभिवृद्धि, निर्धनता के स्तर में सापेक्षिक कमी तथा खाद्य पदार्थों पर होने वाले व्यय में सकारात्मक परिवर्तन दर्ज किया गया है। 
  • ये निष्कर्ष राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के वर्तमान स्वरूप के पुनर्मूल्यांकन की अनिवार्यता को दर्शाते हैं। 
  • भारत में वर्तमान समय में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के अंतर्गत लाभार्थियों का निर्धारण वर्ष 2011-12 के आँकड़ों पर आधारित है, जिसके तहत वर्तमान में लगभग 81 करोड़ व्यक्तियों को रियायती या सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। जबकि वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता महसूस हो रही है।

 

भारत में गरीबी रेखा का मूल्यांकन/ निर्धारण करने का वर्तमान तरीका : 

 

भारत में गरीबी रेखा के आकलन हेतु विभिन्न समयों पर विशेषज्ञ समितियों का गठन किया गया है, जिनके प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

  • तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009) : इस समिति ने गरीबी रेखा का निर्धारण न्यूनतम कैलोरी उपभोग के मानक के आधार पर परिभाषित किया। वर्ष 2004-05 की कीमतों के आधार पर, ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा ₹27 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्रों के लिए ₹33 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित की गई। इस समिति ने गरीबी के मापन में आय एवं मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पर विशेष बल दिया। वर्तमान में, यही मानदंड भारत सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से गरीबी के आकलन का आधार बना हुआ है।
  • रंगराजन समिति (वर्ष 2014) : इस समिति ने गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु एक अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया। इसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा को संशोधित कर ₹32 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्रों के लिए ₹47 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित किया गया। इस संशोधन में उपभोग के विस्तृत स्वरूप के साथ-साथ शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक कारकों को भी समाहित किया गया। वर्ष 2011-12 के लिए इस समिति द्वारा अनुमानित गरीबी दर 29.5% थी, जबकि तेंदुलकर समिति का अनुमान 21.9% था। यद्यपि रंगराजन समिति की रिपोर्ट को देश में आधिकारिक नीति निर्धारण अथवा गरीबी के अनुमान के लिए स्वीकार नहीं किया गया है, परन्तु यह गरीबी के बहुआयामी विश्लेषण पर बल देता है।

 

वर्तमान समय में भारत में विद्यमान खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता क्यों है ?

 

 

भारत में विद्यमान खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों के पुनर्मूल्यांकन की तात्कालिकता अनेक महत्त्वपूर्ण कारकों से प्रेरित है, जिनका विश्लेषण निम्नलिखित है:

  1. उपभोग व्यय में अभूतपूर्व वृद्धि होना : नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (MPCE) में उल्लेखनीय उछाल दर्ज किया गया है। वर्ष 2023-24 में ग्रामीण MPCE 45% की वृद्धि के साथ ₹4,122 तक पहुँच गया (आधार वर्ष 2011-12 की कीमतों पर ₹2,079)। इसी अवधि में शहरी MPCE में 38% की वृद्धि हुई और यह ₹6,996 दर्ज किया गया (आधार वर्ष 2011-12 की कीमतों पर ₹3,632)। यह स्पष्ट परिवर्तन इंगित करता है कि जनसंख्या के एक बड़े हिस्से की क्रय शक्ति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है।
  2. भारत में निर्धनता के स्तर में उल्लेखनीय संकुचन का होना : विभिन्न अध्ययनों और अनुमानों से भारत में गरीबी के स्तर में स्पष्ट कमी का संकेत मिलता है। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के वर्ष 2025 के एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत का गरीबी अनुपात 4-4.5% तक सीमित रहने का अनुमान है, जिसमें लगभग 6.7 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी की श्रेणी में होंगे। मुद्रास्फीति-समायोजित तेंदुलकर गरीबी रेखा के आधार पर किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि ग्रामीण गरीबी वित्त वर्ष 2012 के 25.7% से घटकर वित्त वर्ष 2024 में मात्र 4.86% रह गई है, जबकि शहरी गरीबी इसी अवधि में 13.7% से घटकर 4.09% हो गई है। विश्व बैंक के आँकड़े भी इसी प्रवृत्ति की पुष्टि करते हैं, जिसके अनुसार भारत में अत्यधिक गरीबी दर वर्ष 2011-12 के 21.9% से घटकर वर्ष 2024 में 8.7% (12.9 करोड़ लोग) तक कम हो जाएगी। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में केवल 11.28% आबादी बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त थी।
  3. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के लाभार्थी कवरेज में असंगति का होना : वर्तमान में, NFSA के अंतर्गत 81 करोड़ व्यक्तियों (ग्रामीण आबादी का 75% और शहरी आबादी का 50%) को रियायती खाद्यान्न प्रदान किया जा रहा है। जबकि नवीनतम गरीबी अनुमान लगभग 10% आबादी को ही गरीब दर्शाते हैं। यह आँकड़ा NFSA के व्यापक कवरेज और वास्तविक आवश्यकता के बीच एक स्पष्ट विसंगति को उजागर करता है, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्राथमिकता प्राप्त परिवार (PHH) श्रेणी के कई लाभार्थी वर्तमान में खाद्य सब्सिडी पर अपनी निर्भरता कम कर चुके हैं।
  4. खाद्य सब्सिडी की अवसर लागत का बढ़ता महत्व : सरकार द्वारा NFSA पर प्रतिवर्ष लगभग ₹2 लाख करोड़ का भारी व्यय किया जाता है। यदि लाभार्थी कवरेज को तर्कसंगत बनाया जाता है, तो इस प्रकार मुक्त होने वाले वित्तीय संसाधनों को रोजगार सृजन, औद्योगिक विकास और सामाजिक अवसंरचना जैसे अधिक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में पुनर्नियोजित किया जा सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था को अधिक व्यापक लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
  5. विशेषज्ञ समितियों की अनुशंसाएँ : शांता कुमार समिति (वर्ष 2015) ने भी सब्सिडी को बेहतर ढंग से लक्षित करने के उद्देश्य से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के कवरेज को जनसंख्या के 40% तक सीमित करने की सिफारिश की थी।
  6. अंत्योदय अन्न योजना (AAY) एवं प्राथमिकता प्राप्त परिवार (PHH) का वर्तमान परिदृश्य : NFSA, 2013 के तहत लाभार्थियों को AAY और PHH श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। AAY योजना के अंतर्गत भूमिहीन मजदूर, सीमांत किसान और दैनिक वेतन भोगी जैसे सर्वाधिक निर्धन वर्ग के लगभग 9 करोड़ लोग शामिल हैं, जिन्हें प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्रतिमाह प्राप्त होता है। वहीं, PHH श्रेणी में सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के आधार पर राज्यों द्वारा चिन्हित कमजोर आबादी (लगभग 72 करोड़ लोग) शामिल है, जिसके प्रत्येक सदस्य को 5 किलोग्राम (औसत परिवार आकार 4.2) खाद्यान्न प्रतिमाह प्राप्त होता है। अतः गरीबी के स्तर में आई कमी के आलोक में, इन श्रेणियों के अंतर्गत लाभार्थियों की पात्रता का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है। इन सब पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, यह स्पष्ट है कि भारत में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों का पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक है, ताकि इसे और अधिक लक्षित, प्रभावी और किफायती बनाया जा सके।

 

भारत में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों को अत्यंत प्रभावी बनाने के लिए समाधानात्मक उपाय :

 

 

  1. वैज्ञानिक डेटा-संचालित लक्ष्योन्मुखीकरण : घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES), 2023-24 के नवीनतम आँकड़ों का उपयोग करते हुए, वर्तमान गरीबी स्तर के सटीक आकलन के आधार पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के अंतर्गत लाभार्थी सूचियों का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। स्पष्ट समावेशन एवं अपवर्जन मानदंडों का निर्धारण यह सुनिश्चित करेगा कि सहायता का लाभ केवल वास्तविक रूप से ज़रूरतमंद व्यक्तियों तक ही पहुँचे।
  2. खाद्य सब्सिडी वितरण प्रणाली में चरणबद्ध सुधार करते हुए क्रमिक प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) की ओर संक्रमण करना : खाद्य सब्सिडी वितरण प्रणाली में चरणबद्ध सुधार करते हुए, अंत्योदय अन्न योजना (AAY) के अंतर्गत आने वाले सर्वाधिक वंचित परिवारों के लिए खाद्य सब्सिडी का प्रावधान जारी रखा जा सकता है। वहीं, प्राथमिकता प्राप्त परिवारों (PHH) को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली में स्थानांतरित किया जाना चाहिए, जिससे उन्हें अपनी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिक वित्तीय स्वतंत्रता और विकल्प प्राप्त हो सकें। गैर-गरीब परिवारों के लिए सब्सिडी वाले खाद्यान्न पर निर्भरता को कम करने हेतु एक सुविचारित चरणबद्ध रणनीति कार्यान्वित की जानी चाहिए।
  3. प्रौद्योगिकी-आधारित पारदर्शिता, दक्षता एवं नियमित रूप से अद्यतन करने की आवश्यकता : आधार से जुड़े डेटाबेस और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित निगरानी प्रणालियों का उपयोग करके वितरण में होने वाले रिसाव को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। इसके अतिरिक्त, कर, वाहन और रोजगार संबंधी अभिलेखों के एकीकरण के माध्यम से लाभार्थी सूचियों को नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिए, जिससे अपात्र लाभार्थियों को हटाने और पात्र लाभार्थियों को शामिल करने की प्रक्रिया सुगम हो सके।
  4. पोषण सुरक्षा पर केंद्रित नीतिगत बदलाव करने की जरूरत : खाद्य सुरक्षा नीतियों के केंद्र में मात्रात्मक खाद्यान्न उपलब्धता के साथ-साथ गुणात्मक पोषण सुरक्षा को भी स्थान दिया जाना चाहिए। एनीमिया और बौनापन जैसी सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की समस्या के समाधान हेतु पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों (जैसे फल, सब्जियाँ, दालें) की उपलब्धता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (2023) रिपोर्ट के अनुसार, भारत की एक बड़ी आबादी स्वस्थ आहार वहन करने में सक्षम नहीं है, अतः इस पहलू पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
  5. स्थानीय खरीद एवं DBT के बीच समन्वय स्थापित करने की जरूरत : लाभार्थियों को DBT से जुड़े खातों के माध्यम से स्थानीय बाजारों से खाद्य पदार्थ खरीदने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। यह रणनीति न केवल परिवहन लागत को कम करेगी और वितरण प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाएगी, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देगी और खाद्य सब्सिडी पर होने वाले कुल व्यय को नियंत्रित करने में सहायक होगी।
  6. सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) एवं व्यापक नीतिगत पुनर्संरेखण और योजनाओं के कार्यान्वयन पर विचार करने की आवश्यकता : दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में, एक न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिए सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) या बेरोजगारी भत्ता जैसी योजनाओं के कार्यान्वयन पर विचार किया जा सकता है। जैसे-जैसे जनसंख्या का व्यय शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की ओर स्थानांतरित होता है, खाद्य सुरक्षा नीतियों को व्यापक सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अनुकूलित किया जाना चाहिए, जिससे सुलभ आवश्यक सेवाओं के साथ-साथ किफायती खाद्य पदार्थों तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
  7. इन रणनीतियों के समेकित कार्यान्वयन से भारत में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों को अधिक प्रभावी, लक्षित और कुशल बनाया जा सकता है, जिससे न केवल सार्वजनिक संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा, बल्कि जरूरतमंद आबादी को समय पर और गुणवत्तापूर्ण सहायता भी प्राप्त हो सकेगी।

 

निष्कर्ष : 

 

  • गरीबी के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट और घरेलू उपभोग की क्षमता में परिलक्षित उत्थान को देखते हुए, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के वर्तमान विस्तृत दायरे का पुनर्मूल्यांकन अपरिहार्य प्रतीत होता है। खाद्य सब्सिडी योजनाओं का अनुकूलन न केवल वित्तीय संसाधनों के पुनर्नियोजन का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक प्रगति को गति मिलेगी, बल्कि भारत के लिए एक अधिक धारणीय एवं समावेशी कल्याणकारी ढांचे की नींव भी सुदृढ़ होगी। घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण, से प्राप्त अद्यतन आँकड़े, तेंदुलकर समिति के निर्धारण वर्ष (2004-05) और NFSA के आधार वर्ष (2011-12) से काफी आगे की वास्तविकता को दर्शाते हैं। परिणामस्वरूप, आय में हुई वृद्धि और गरीबी में संभावित संकुचन के परिप्रेक्ष्य में, NFSA, 2013 के अंतर्गत लाभान्वितों की वर्तमान सूची की प्रासंगिकता पर गहन विचार-विमर्श आवश्यक है। यह पुनर्मूल्यांकन न केवल वास्तविक हकदारों की अधिक सटीक पहचान सुनिश्चित करेगा, अपितु सार्वजनिक कोष के विवेकपूर्ण आवंटन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

 

स्त्रोत – पी. आई. बी एवं द हिन्दू।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. भारत में गरीबी रेखा के निर्धारण के संबंध में, निम्न कथनों पर विचार कीजिए :   

  1. तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा का निर्धारण शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक-आर्थिक कारकों के आधार पर किया। 
  2. इस समिति के द्वारा गरीबी रेखा का निर्धारण न्यूनतम कैलोरी उपभोग के मानक के आधार पर किया गया था।
  3. इस समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा ₹32 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन और शहरी क्षेत्रों के लिए ₹47 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित की। 
  4. समिति ने गरीबी के मापन में आय एवं मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पर विशेष बल दिया।

निम्नलिखित में से कौन सा / से कथन तेंदुलकर समिति (वर्ष 2009) की सिफारिशों को सही ढंग से दर्शाते हैं?

A. केवल 1 और 3

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं।

D. उपरोक्त सभी।

उत्तर – B 

व्याख्या : 

तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा का निर्धारण न्यूनतम कैलोरी उपभोग के आधार पर किया और गरीबी के मापन में आय एवं मूलभूत आवश्यकताओं पर जोर दिया। कथन 1 रंगराजन समिति से संबंधित है और कथन 3 रंगराजन समिति द्वारा संशोधित गरीबी रेखा से संबंधित है।

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. हालिया आर्थिक बदलावों के मद्देनज़र, चर्चा कीजिए कि भारत में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रमों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता क्यों है, और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 के अंतर्गत लाभार्थियों के निर्धारण को और अधिक प्रभावी बनाने के साथ-साथ इन कार्यक्रमों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कौन से उपाय सुझाए गए हैं? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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