07 May विकसित भारत @2047 : सतत विकास में पंचायत उन्नति सूचकांक की भूमिका
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के अंतर्गत सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 के ‘ भारतीय राजनीति और शासन व्यवस्था, पंचायती राज व्यवस्था, सतत विकास में पंचायत उन्नति सूचकांक की भूमिका, शासन का विकेंद्रीकरण, स्थानीय स्वशासन ’ खण्ड से और प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ पंचायती राज व्यवस्था, स्थानीय स्वशासन, सतत् विकास लक्ष्य, पंचायती राज संस्थाओं का वित्तीय सशक्तीकरण, 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) ’ खण्ड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (24 अप्रैल) के अवसर पर एक महत्वपूर्ण पहल की घोषणा की। उन्होंने पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) को राष्ट्र के सामने रखते हुए इसे स्थानीय स्वशासन को मज़बूत करने और टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDG) से जुड़े मसलों पर देश की 2.16 लाख पंचायतों की प्रगति का मूल्यांकन करके ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है।
- यह सूचकांक देश की 2.16 लाख से अधिक पंचायतों की रैंकिंग कर उनके प्रदर्शन को परखता है, जिससे स्थानीय शासन को अधिक प्रभावशाली और विकासोन्मुख बनाया जा सके।
पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) का परिचय :
परिभाषा एवं उद्देश्य : पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) एक समग्र आकलन तंत्र है जिसे ग्राम पंचायतों की सामाजिक-आर्थिक प्रगति को मापने के लिए विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य है पंचायत स्तर पर विकास की स्थिति को समझना, कमजोरियों की पहचान करना और डेटा-आधारित योजनाएं बनाना और इस जानकारी के आधार पर योजनाएँ बनाने में मदद करता है।
पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) की प्रमुख विशेषताएं :
- यह सूचकांक सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा विकसित किया गया है।
- पंचायत उन्नति सूचकांक (PAI) टिकाऊ विकास लक्ष्यों (LSDG) को स्थानीय स्तर पर लागू करने और राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क (NIF) के अनुरूप है।
- इसका उद्देश्य पंचायतों में सभी लोगों की जमीनी स्तर पर सहभागिता और उत्तरदायी शासन को बढ़ावा देना है।
- यह पहल जमीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी को बढ़ावा देती है, सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों के ज़रिए ग्राम पंचायतों के विकास का आकलन करती है, सुधार की ज़रूरत वाले क्षेत्रों की पहचान करती है और सबूतों के आधार पर योजना बनाने में सहायक होती है। इस प्रकार, यह 2030 के टिकाऊ विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- भारत में हर साल 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है, जो भारतीय संविधान के 73वें संशोधन की याद दिलाता है, जिसने भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया था।
राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस की पृष्ठभूमि :
- इस दिवस की शुरुआत भारत में सबसे पहले वर्ष 2010 में हुई थी, और यह 1992 में लागू हुए 73वें संविधान संशोधन की वर्षगांठ को चिह्नित करता है, जिसने भारत में पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया था। इस संशोधन ने ग्रामीण विकास और स्वशासन के लिए एक नई दिशा निर्धारित की थी।
- तब से भारत में प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।
- पंचायती राज प्रणाली ने ग्रामीण भारत में लोकतांत्रिक शासन को मजबूत किया है, जिससे ग्रामीण नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने और स्थानीय विकास में भागीदारी करने का अवसर मिला है।
- पंचायती राज प्रणाली ने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को अपनी राय व्यक्त करने और विकास और सशक्तिकरण का हिस्सा बनाकर उनके उत्थान में मदद की है।
पंचायतों का कार्यकाल :
- भारत में पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
- प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र चुनाव आयोग मतदाता सूची के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिए होते हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243G में पंचायतों की शक्तियों का वर्णन है।
- इन्हें ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाओं को तैयार करने के लिए अधिकृत किया गया है।
- पंचायती राज व्यवस्था में छूट की व्यवस्था भारत के कुछ राज्यों में लागू नहीं होती है। जैसे नगालैंड, मेघालय, मिज़ोरम और कुछ अन्य क्षेत्रों में। इन क्षेत्रों में शामिल हैं:
- आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान: ये राज्य पाँचवीं अनुसूची के तहत सूचीबद अनुसूचित क्षेत्र में आते हैं।
- मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र: यहाँ पर जिला परिषदें मौजूद हैं।
- पश्चिम बंगाल, दार्जिलिंग ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र:: इस क्षेत्र में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल है।
- संसद ने पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 के माध्यम से भाग 9 और 5वीं अनुसूची क्षेत्रों के प्रावधानों को बढ़ाया है।
- भारत में वर्तमान में 10 राज्य (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल हैं।
भारत में पंचायती राज संस्थाओं का ऐतिहासिक विकास – क्रम :
- पंचायती राज भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है, जो प्राचीन काल से चली आ रही है। इन संस्थानों को प्राचीन काल में “पंचायत” के रूप में जाना जाता था और ये मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार थे।
- वैदिक युग में पंचायत प्रणाली न्याय प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था थी। ये पंचायतें ग्राम प्रधान और ग्राम समुदाय के चार अन्य सम्मानित सदस्यों से बनी होती थी, जिन्हें ग्रामीणों द्वारा चुना जाता था।
- 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने भारत में स्थानीय स्वशासन के आधुनिक रूपों की शुरुआत की, जो पंचायती राज प्रणाली पर आधारित थे।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया गया है और अनुच्छेद 246 में राज्य विधानमंडल को स्थानीय स्वशासन से संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।
- पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution) को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया। यह भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है, जिसका अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों के माध्यम से स्थानीय मामलों का प्रबंधन। पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) ने ग्राम पंचायतों के नियोजन, लेखा, निगरानी कार्यों को एकीकृत करने के लिए वेब-आधारित पोर्टल ई-ग्राम स्वराज (e-Gram Swaraj) लॉन्च किया है। इसमें एरिया प्रोफाइलर एप्लीकेशन, स्थानीय सरकार निर्देशिका (Local Government Directory- LGD) और सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (Public Financial Management System- PFMS) के साथ ग्राम पंचायत की गतिविधियों की आसान रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग की जाती है।
भारत में पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) से संबंधित महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) के संवैधानिक प्रावधान भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत स्वशासन की त्रि-स्तरीय प्रणाली को स्थापित करने का उद्देश्य रखते हैं। यह प्रणाली भारतीय संविधान के भाग IX में उल्लिखित है, जिसमें अनुच्छेद 243 से 243- O(ओ) शामिल हैं।
73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 के कुछ प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं –
- त्रिस्तरीय प्रणाली : ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतों की त्रिस्तरीय प्रणाली की स्थापना की गई है, जिसमें ग्राम पंचायत (ग्राम परिषद), पंचायत समिति (ब्लॉक परिषद), और जिला परिषद (जिला परिषद) शामिल हैं।
- जनसंख्या : प्रत्येक गाँव के लिए ग्राम स्तर पर कम से कम 500 व्यक्तियों की आबादी वाली पंचायत की स्थापना का प्रावधान है।
- चुनाव : पंचायतों के नियमित चुनाव अनिवार्य हैं, और अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार चुनाव आयोजित किए जाते हैं।
- आरक्षण : सभी स्तरों पर पंचायतों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण होता है, साथ ही गाँव और मध्यवर्ती स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्षों के पद का भी आरक्षण होता है।
- राज्य वित्त आयोग : पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने और उन्हें धन, सहायता अनुदान और करों के हस्तांतरण के लिए सिफारिशें करने के लिए वित्त आयोगों के गठन का प्रावधान करना।शामिल होता है।
- शक्तियाँ और कार्य : पंचायतों की शक्तियाँ, अधिकार और जिम्मेदारियाँ प्रदान करना, जिसमें आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएँ तैयार करना और कृषि, कुटीर और लघु उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के लिए योजनाओं का कार्यान्वयन शामिल है।
- राज्य चुनाव आयोग : भारत में तीन स्तरों पर स्थानीय सरकारों के चुनाव कराने के लिए एक राज्य चुनाव आयोग की स्थापना का प्रावधान है । जिसके तहत पंचायतों का विघटन और पंचायतों में आकस्मिक रिक्तियों को भरना और पंचायतों के अध्यक्षों या सदस्यों का निलंबन या निष्कासन करना शामिल होता है।
भारत में पंचायती राज संस्थाओं के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ :
भारत में पंचायती राज संस्थानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं –
- वित्तीय संसाधनों की कमी : पंचायती राज संस्थानों के पास अक्सर अपने कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं होते हैं। इससे विकास परियोजनाओं को लागू करने और बुनियादी सेवाएं प्रदान करने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।
- सीमित शक्तियाँ और कार्य : पंचायती राज संस्थानों के पास सरकार के अन्य स्तरों की तुलना में सीमित शक्तियाँ और कार्य होते हैं, जो स्थानीय मुद्दों को संबोधित करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
- कमजोर क्षमता और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी : कई पंचायती राज संस्थानों में अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए क्षमता और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी होती है। इससे विकास परियोजनाओं की खराब योजना और कार्यान्वयन हो सकता है।
- महिलाओं और वंचित समूहों की सीमित भागीदारी : पंचायती राज संस्थानों में अक्सर महिलाओं और वंचित समूहों की भागीदारी का स्तर कम होता है, जो पूरे समुदाय की जरूरतों और हितों का प्रतिनिधित्व करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप : पीआरआई राजनीतिक हस्तक्षेप के अधीन हो सकते हैं, जिससे उनकी स्वतंत्रता और निर्णय लेने की प्रक्रिया कमजोर हो सकती है।
- जानकारी तक सीमित पहुंच : पीआरआई के पास अक्सर जानकारी तक सीमित पहुंच होती है, जिससे जानकारीपूर्ण निर्णय लेने और विकास परियोजनाओं की योजना बनाने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।
- सरकार के अन्य स्तरों के साथ खराब समन्वय : पीआरआई को सरकार के अन्य स्तरों के साथ समन्वय करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जो विकास परियोजनाओं को लागू करने और अपने समुदायों को सेवाएं प्रदान करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
भारत में पंचायती राज संस्थानों को कैसे मजबूत किया जा सकता है ?
भारत में पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) को मजबूत करने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। जो निम्नलिखित है –
- वित्तीय स्थिति को मजबूत करना : पीआरआई को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने में सक्षम बनाने के लिए संसाधनों और वित्तीय स्वायत्तता का एक बड़ा हिस्सा प्रदान किया जाना चाहिए।
- शक्तियों और कार्यों को बढ़ाना : स्थानीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए पीआरआई को अधिक शक्तियां और कार्य देने चाहिए।
- पदाधिकारियों की क्षमता और प्रशिक्षण में सुधार : पीआरआई पदाधिकारियों को क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए एक राष्ट्रीय पंचायत नेतृत्व और प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए।
- महिलाओं और वंचित समूहों की भागीदारी को बढ़ावा देना : महिलाओं और वंचित समूहों की भागीदारी बढ़ाने के उपायों में सीटें आरक्षित करना और उन्हें प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करना शामिल है।
- पीआरआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना : राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए पीआरआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के उपायों की सिफारिश की गई है।
- सरकार के अन्य स्तरों के साथ पीआरआई के समन्वय को बढ़ाना : दूसरे एआरसी ने सरकार के अन्य स्तरों के साथ पीआरआई के समन्वय में सुधार करने के उपायों की सिफारिश की थी और यह सुनिश्चित किया कि उनकी विकास योजनाएं और परियोजनाएं सरकार के अन्य स्तरों के साथ संरेखित हों।
निष्कर्ष / आगे की राह :
पंचायती राज के विकास के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं –
- फंडिंग और संसाधन बढ़ाएं : स्थानीय सरकारों के लिए फंडिंग और संसाधन बढ़ाने से बुनियादी ढांचे और अन्य सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना : निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देना और स्थानीय सरकार के संचालन के बारे में जानकारी की पहुंच बढ़ाना।
- पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना : महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए कोटा निर्धारित करना और महिलाओं को स्थानीय सरकार में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करना आवश्यक है ।
- भागीदारी में संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना : जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव जैसी बाधाओं को दूर करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई नीतियों और कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों को शामिल करने के लिए लक्षित पहुंच प्रयासों जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
स्त्रोत – द हिन्दू एवं पी.आई.बी।
Download Plutus IAS Current Affairs (Hindi) 07th May 2025
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. स्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सर्वोत्तम रूप से कैसे समझाया जा सकता है? (UPSC – 2017)
A. संघवाद
B. लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
C. प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
D. प्रत्यक्ष लोकतंत्र
उत्तर – B
Q.2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। ( UPSC 2016 & 2019 )
- किसी भी व्यक्ति के पंचायत का सदस्य बनने के लिये निर्धारित न्यूनतम आयु 25 वर्ष है।
- समयपूर्व विघटन के बाद पुनर्गठित पंचायत केवल शेष अवधि के लिए ही मान्य होती है।
उपर्युक्त कथन / कथनों में से कौन सा/से कथन सही है/हैं?
A. केवल 1
B. केवल 2
C. 1 और 2 दोनों
D. न तो 1 और न ही 2
उत्तर – D
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243F के अनुसार, ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिये आवश्यक न्यूनतम आयु 21 वर्ष है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
- भारतीय संविधान की धारा 243E(4) के अनुसार, पंचायत की अवधि की समाप्ति से पहले एक पंचायत के विघटन पर गठित पंचायत केवल उस शेष अवधि के लिए ही कार्य करती है। अत: कथन 2 सही है। इस प्रकार, विकल्प B सही उत्तर है।
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. चर्चा कीजिए कि भारत में शासन के विकेन्द्रीयकरण के तहत स्थानीय शासन व्यवस्था के रूप में पंचायती राज प्रणाली का क्या महत्व और चुनौतियाँ है और इस व्यवस्था में व्याप्त चुनौतियों का समाधान क्या हो सकता है ? तर्कसंगत व्याख्या कीजिए। ( UPSC CSE- 2018 शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Q.2. सुशिक्षित और संगठित स्थानीय स्तर की सरकारी प्रणाली के अभाव में, ‘पंचायतें’ और ‘समितियाँ’ मुख्य रूप से राजनीतिक संस्थाएँ बनी हुई हैं और शासन के प्रभावी साधन नहीं हैं। आलोचनात्मक चर्चा करें। ( UPSC CSE – 2015 शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
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