18 Oct विश्व खाद्य दिवस 2024
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारत के कृषि क्षेत्र में वृद्धि एवं विकास , खाद्य सुरक्षा , गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे , कृषि विपणन ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ विश्व खाद्य दिवस , खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) , WWF की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट , राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013 , मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में 16 अक्तूबर 2024 को विश्व खाद्य दिवस मनाया गया, जिसमें भुखमरी उन्मूलन और लचीली वैश्विक खाद्य प्रणालियों के निर्माण की तत्काल आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- विश्व खाद्य दिवस वर्ष 2024 का विषय/ थीम है – ” बेहतर जीवन और बेहतर भविष्य के लिए भोजन का अधिकार।”
- यह दिन 16 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) की स्थापना का प्रतीक है।
- विश्व खाद्य दिवस वर्ष 1979 में खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के 20वें महाधिवेशन के दौरान अस्तित्व में आया और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1984 में इसका समर्थन किया।
- भोजन के अधिकार को मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 द्वारा मान्यता दी गई है।
- WWF की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट ने भारत के खाद्य उपभोग प्रणाली की प्रशंसा करते हुए इसे G-20 देशों में सर्वाधिक सतत् अथवा टिकाऊ के रूप में व्यक्त किया है।
- इसमें कहा गया है कि यदि वैश्विक जनसंख्या भारत की उपभोग प्रणाली को अपनाए, तो वैश्विक खाद्य उत्पादन को बनाए रखने के लिये वर्ष 2050 तक वैश्विक रूप से केवल 0.84 प्रतिशत भूभाग की आवश्यकता होगी।
- यह दिवस खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के प्रति वैश्विक प्रतिबद्धताओं को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है, और यह बेहतर बीज, उन्नत सिंचाई विधियों और कुशल कृषि मशीनरी के माध्यम से खाद्य उत्पादन में हुई महत्वपूर्ण प्रगति को भी रेखांकित करता है।
- हालांकि, वर्तमान में लगभग 2.33 बिलियन लोग मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जैसा कि खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI) रिपोर्ट में बताया गया है।
- इस संदर्भ में भोजन के अधिकार की अवधारणा ने 2013 में भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के पारित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका मुख्य उद्देश्य देश की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या को रियायती दरों पर खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना है।
खाद्य सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता :
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना
- पीएम पोषण योजना
- अंत्योदय अन्न योजना
- राइस फोर्टिफिकेशन
- मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF)
वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भारत की भूमिका :
- भारत आज खाद्य अधिशेष वाला देश है, जो दूध, दालों और मसालों का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- इसके अलावा, भारत खाद्यान्न, फल, सब्जियाँ, कपास, चीनी, चाय, और मछली पालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए, कई उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा की चुनौती को ध्यान में रखते हुए, भारत का खाद्य और पोषण सुरक्षा का समाधान प्रदाता बनना, वैश्विक दक्षिण के देशों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।
- निम्न और मध्यम आय वर्ग में खाद्य सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक है, जिसमें भारत भी शामिल है।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2024 के अनुसार, भारत 127 देशों में से 105वें स्थान पर है।
- लगभग 55.6% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ है, जो लगभग 788.2 मिलियन लोगों के बराबर है—यह एशिया में सबसे अधिक है।
- भारत का खाद्य और पोषण पर सार्वजनिक व्यय विश्व में सबसे कम है, जिसके परिणामस्वरूप कुपोषित व्यक्तियों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
- वैश्विक महामारी कोविड 19 के बाद, मध्यम और गंभीर खाद्य असुरक्षा के स्थिर स्तरों में वृद्धि देखी गई है, जो वर्तमान में 24.8% पर है।
- खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत में भूख में मामूली गिरावट आई है, जो महामारी के वर्षों (2020-22) के दौरान 14% से घटकर 13.7% (2021-23) हो गई है।
- वर्तमान में जारी आंकड़े महामारी से पहले के स्तरों से काफी अधिक हैं, जहां 2014-16 में भूख ने केवल 10.3% आबादी को प्रभावित किया था।
- सबसे चिंताजनक बात यह है कि भारत में भूख से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या 2014-16 और 2021-23 के बीच 5 करोड़ बढ़ गई है।
- इस संदर्भ में, भारत की भूमिका न केवल घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने में भी भारत की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- वर्तमान समय में भारत में खाद्य उत्पादन में वृद्धि और कुपोषण के स्तर को कम करने के लिए ठोस नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है, ताकि भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा के एजेंडे में एक प्रमुख स्थान हासिल कर सके।
भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए शुरू की गई प्रमुख सरकारी पहल :
भारत ने खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण सरकारी पहलों को लागू किया है। जो निम्नलिखित है –
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) : यह अधिनियम ग्रामीण जनसंख्या के 75% और शहरी जनसंख्या के 50% को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के माध्यम से सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इस योजना के तहत लगभग 81 करोड़ लाभार्थी शामिल हैं, जिसमें प्राथमिकता वाले परिवार (PHH) और अंत्योदय अन्न योजना (AAY) के लाभार्थी शामिल हैं। विशेष रूप से, इस योजना में 16 करोड़ महिलाएं भी शामिल हैं, जिससे महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर दिया गया है।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) : कोविड-19 महामारी के दौरान गरीबों को सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई इस योजना को 1 जनवरी, 2024 से अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ाया गया है। इसके तहत लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाएगा।
- पीएम पोषण (POSHAN शक्ति निर्माण) योजना : यह योजना सरकारी स्कूलों में बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार के उद्देश्य से 2021-22 से 2025-26 तक लागू की जाएगी, जिसमें ₹130,794.90 करोड़ का वित्तीय आवंटन किया गया है। इस योजना का विशेष ध्यान वंचित छात्रों की स्कूल में उपस्थिति को बढ़ावा देने पर है।
- अंत्योदय अन्न योजना (AAY) : यह योजना समाज के सबसे कमजोर वर्गों को लक्षित करती है और वर्तमान में 8.92 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को सहायता प्रदान की जा रही है, जिसमें विशेष रूप से महिलाओं को ध्यान में रखा गया है।
- फोर्टिफाइड चावल का वितरण : वित्तीय वर्ष 2019-20 से, पोषण मूल्य को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से लगभग 406 लाख मीट्रिक टन फोर्टिफाइड चावल वितरित किया गया है।
- मूल्य स्थिरता और सामर्थ्य पर सरकारी कार्रवाई : मूल्य अस्थिरता का प्रबंधन करने के लिए सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF) का उपयोग किया है। 2020-21 में प्याज के बफर को 1 LMT से बढ़ाकर 2023-24 में 7 LMT किया गया है। इसके अलावा, सरकार कम आय वाले समूहों के लिए भारत दाल, भारत आटा और भारत चावल जैसी वस्तुओं को रियायती मूल्य पर उपलब्ध कराती है। इन पहलों के माध्यम से भारत खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
वर्तमान खाद्य सुरक्षा संरचना की आलोचना के पीछे का तर्क :
- आर्थिक तर्कसंगतता पर आधारित होना : अत्यधिक सब्सिडी वाला भोजन बड़े पैमाने पर आबादी को उपलब्ध कराना आर्थिक दृष्टि से उचित नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिए एक अधिक लक्षित दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें सबसे कमजोर वर्गों को प्राथमिकता दी गई थी।
- नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार गरीबी मापने के तरीके : नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, 2013-14 में 29.13% से 2022-23 में 11.28% तक गरीबी के अनुपात में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। इस गिरावट के मद्देनजर, 800 मिलियन से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन वितरित करने के औचित्य पर सवाल उठता है, जिससे सब्सिडी प्रथाओं में सुधार की आवश्यकता स्पष्ट होती है।
- खाद्य सुरक्षा पहलों के लक्ष्यों को कमजोर करना तथा सब्सिडी वितरण में अक्षमता का उजागर होना : आईसीआरआईईआर द्वारा किए गए शोध में कई अक्षमताएँ उजागर हुई हैं, जिसमें यह पाया गया है कि लगभग 25-30% खाद्य और उर्वरक सब्सिडी इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाती है। यह रिसाव कुल आवंटित संसाधनों का 40-50% हो सकता है, जो खाद्य सुरक्षा पहलों के लक्ष्यों को कमजोर करता है। इन बिंदुओं के माध्यम से, वर्तमान खाद्य सुरक्षा ढांचे की विभिन्न कमजोरियों और सुधार की आवश्यकता को उजागर किया गया है।
समाधान / आगे की राह :
- कृषि-खाद्य प्रणाली का डिजिटलीकरण करना : भारत में कृषि-खाद्य प्रणाली के डिजिटल समाधानों के कार्यान्वयन से अधिक कुशल और उत्तरदायी वितरण प्रणाली विकसित की जा सकती है। इससे खाद्यान्न वितरण में पारदर्शिता और प्रभावशीलता बढ़ेगी।
- लक्षित सब्सिडी का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करना : भारत में खाद्य सुरक्षा प्रणाली के तहत एक केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें सीमित जनसंख्या के एक प्रतिशत को मुफ्त भोजन प्रदान किया जाए। देश में जो सक्षम व्यक्ति हैं उन अन्य व्यक्तियों को उचित मूल्य चुकाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे सब्सिडी का दुरुपयोग कम हो सके।
- युक्तिसंगत निवेश की आवश्यकता : कृषि में बेहतर निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए, जैसे अनुसंधान एवं विकास, सटीक खेती और शिक्षा, जो 2030 तक टिकाऊ खाद्य सुरक्षा हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
- प्रभावी और आर्थिक रूप से स्थायी नीतियों की आवश्यकता : विश्व खाद्य दिवस खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को उजागर करता है। यह प्रभावी और आर्थिक रूप से स्थायी नीतियों की आवश्यकता पर भी ध्यान केंद्रित करता है, जो गरीबी और कृषि प्रथाओं के बदलते परिदृश्य के अनुकूल हो सकें।
- सतत विकास लक्ष्यों और शून्य भूख लक्ष्य की प्राप्ति की ओर कदम बढ़ाना : यदि वर्तमान सब्सिडी प्रणालियों में सुधार किया जाए, तो भारत सरकार कृषि उत्पादकता और लचीलापन बढ़ा सकती है, जिससे “शून्य भूख” लक्ष्य की दिशा में प्रगति संभव हो सकेगी, जैसा कि सतत विकास लक्ष्यों (SDG) में उल्लिखित है।
स्त्रोत – पीआईबी एवं इंडियन एक्सप्रेस।
Download plutus ias current affairs Hindi med 18th Oct 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1.भोजन के अधिकार की अवधारणा ने किस महत्वपूर्ण कानून के पारित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ?
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013
- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना
नीचे दिए कूट के आधार पर सही विकल्प का चयन करें:
A. केवल 1 और 4
B. केवल 2 और 3
C. केवल 1 और 3
D. इनमें से कोई नहीं।
उत्तर – A
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए, यह चर्चा करें कि विश्व खाद्य दिवस 2024 और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन के प्रति भारत सरकार का दृष्टिकोण कैसे देश में भूखमरी और कुपोषण से निपटने की क्षमता को प्रभावित करता है ? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
No Comments