21 Nov वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 : सतत कृषि के लिए मिट्टी की भूमिका
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 के अंतर्गत ‘ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, वनीकरण और जैव विविधता, पर्यावरण संरक्षण , पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, भारतीय कृषि, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 , अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (इटली), भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी (आईएसएसएस), और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 अक्टूबर 2024 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पूसा, दिल्ली में आयोजित वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया।
- वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 का विषय- “खाद्य सुरक्षा से परे मृदा की देखभाल: जलवायु परिवर्तन शमन और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं” था।
- इस वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (इटली), भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी (आईएसएसएस), और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।
भारत में मिट्टी : वर्तमान परिदृश्य
- भारत में कृषि, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए मिट्टी एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जहां 60% से अधिक आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। हालांकि, भारत में मृदा स्वास्थ्य को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इन मुद्दों को संबोधित करने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए इसके वर्तमान परिदृश्य को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भारत में मिट्टी के प्रकार :
जलोढ़ मिट्टी :
- संघटन : यह रेत, गाद और मिट्टी के महीन कणों से बनी होती है, जिसमें खनिज जैसे फास्फोरस, पोटेशियम और कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
- वितरण : मुख्य रूप से गंगा मैदान, हिमालय तलहटी और ओडिशा, पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्र में पाई जाती है।
- प्रमुख फसलें : गेहूं, चावल, गन्ना, मक्का, सब्जियाँ, फल।
काली मिट्टी :
- संघटन : यह लौह, कैल्शियम और मैग्नीशियम से समृद्ध होती है, जिसमें ह्यूमस अधिक होता है।
- वितरण : दक्कन पठार, विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक।
- प्रमुख फसलें : कपास, मूंगफली, सोयाबीन, ज्वार, चना, तम्बाकू।
लाल मिट्टी :
- संघटन : यह मिट्टी लोहे और एल्युमिनियम से समृद्ध होती है और इस मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए उर्वरक की आवश्यकता होती है।
- वितरण : दक्षिणी और पूर्वी भारत के हिस्सों में, जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा।
- प्रमुख फसलें : मूंगफली, दालें, बाजरा, मक्का, कपास।
लैटेराइट मिट्टी :
- संघटन : यह लौह और एल्यूमीनियम ऑक्साइड से भरपूर होती है, लेकिन इसमें पोषक तत्वों की कमी रहती है।
- वितरण : उच्च वर्षा वाले क्षेत्र, जैसे पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर राज्य, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल।
- प्रमुख फसलें : चाय, कॉफी, रबर, नारियल, इलायची, मसाले।
शुष्क मिट्टी :
- संघटन : यह मिट्टी अत्यधिक क्षारीय और खारा होती है, जिसमें कार्बनिक तत्व कम होते हैं।
- वितरण : यह मिट्टी मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है।
- प्रमुख फसलें : गेहूं, जौ, बाजरा, मिर्च, चना।
मृदा संरक्षण के लिए सरकारी योजनाएँ और नीतियाँ :
- भारत सरकार की प्रमुख प्राथमिकता मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखना और कृषि उत्पादकता में सुधार लाना है। भारत में मृदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ और नीतियाँ लागू की गई हैं, जिनसे जल, उर्वरता हानि और पर्यावरणीय गिरावट जैसी समस्याओं का समाधान किया जा सके। अतः भारत सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मृदा के संरक्षण और कृषि की स्थिरता सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा रहा है। जिनमें निम्नलिखित योजनाएँ शामिल है –
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) :
- उद्देश्य : टिकाऊ कृषि और मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
- मुख्य क्रियाएँ : जैविक खेती, कृषि वानिकी, पोषक तत्व प्रबंधन, जल-उपयोग दक्षता और संरक्षण जुताई को बढ़ावा देना।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (एसएचसीएस) :
- उद्देश्य : किसानों को मृदा की गुणवत्ता और सुधार के लिए सिफारिशें देना।
- मुख्य क्रियाएँ : मिट्टी परीक्षण, उर्वरक उपयोग पर मार्गदर्शन और संतुलित उर्वरीकरण को बढ़ावा देना।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) :
- उद्देश्य : जल-उपयोग दक्षता बढ़ाना और सिंचाई से जुड़ी मृदा समस्याओं को कम करना।
- मुख्य क्रियाएँ : सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों, जल संचयन और वर्षा जल प्रबंधन को प्रोत्साहित करना।
एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) :
- उद्देश्य : जलसंभर क्षेत्रों में मृदा, जल और वनस्पति का संरक्षण।
- मुख्य क्रियाएँ : मृदा क्षरण नियंत्रण, चेक डैम और वनरोपण को बढ़ावा देना।
राष्ट्रीय जलग्रहण प्रबंधन परियोजना (एनडब्ल्यूएमपी) :
- उद्देश्य : जल संभर प्रबंधन और मृदा संरक्षण को बढ़ावा देना।
- मुख्य क्रियाएँ : मृदा अपरदन और जल संरक्षण उपायों पर ध्यान केंद्रित करना।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) :
- उद्देश्य : उन्नत कृषि पद्धतियों के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य को सुधारना।
- मुख्य क्रियाएँ : सीढ़ीदार निर्माण, जल-कुशल सिंचाई और जैविक खेती को प्रोत्साहित करना।
राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (एनएपी) :
- उद्देश्य : इस योजना का मुख्य उद्देश्य वृक्षारोपण और वनीकरण के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य और जैव विविधता को सुनिश्चित करना है।
- मुख्य क्रियाएँ : कटाव-प्रवण क्षेत्रों में वृक्षारोपण और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना।
राज्य स्तरीय मृदा संरक्षण योजनाएँ :
- उद्देश्य : राज्य स्तर पर मृदा संरक्षण के लिए विशेष योजनाएँ लागू करना।
- मुख्य क्रियाएँ : पहाड़ी, तटीय और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में मृदा संरक्षण उपायों को बढ़ावा देना।
उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) :
- उद्देश्य : उर्वरकों के संतुलित उपयोग को सुनिश्चित करना।
- मुख्य कार्य : रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को रोकना और जैविक उर्वरकों को बढ़ावा देना।
मृदा उत्पादकता में गिरावट के कारण :
- मिट्टी की उत्पादकता में गिरावट कृषि स्थिरता के लिए एक गंभीर समस्या बन चुकी है और इसके विभिन्न कारणों से फसल की पैदावार और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
मृदा क्षरण :
- कटाव : हवा, पानी और गलत कृषि पद्धतियाँ जैसे अतिचारण और मोनोकल्चर खेती से मिट्टी का कटाव होता है, जिससे उपजाऊ ऊपरी मिट्टी बह जाती है।
- कार्बनिक पदार्थ की कमी : रासायनिक उर्वरकों के अधिक उपयोग और जैविक कृषि के अभाव में मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ कम हो जाता है, जिससे संरचना और पोषक चक्र पर असर पड़ता है।
रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग :
- पोषक तत्वों का असंतुलन : रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम का असंतुलन होता है।
- मृदा अम्लीकरण : रासायनिक उर्वरकों के निरंतर प्रयोग से मिट्टी का पीएच बदलकर अम्लीय या क्षारीय हो जाता है, जिससे उर्वरता में कमी आती है।
मृदा लवणीकरण और क्षारीकरण :
- सिंचाई पद्धतियाँ : अत्यधिक सिंचाई, विशेषकर शुष्क क्षेत्रों में, मिट्टी में नमक का जमाव करती है, जिससे लवणीकरण और क्षारीकरण होता है।
- अनुचित जल प्रबंधन : बाढ़ सिंचाई और खराब जल निकासी से जलभराव होता है, जो नमक जमा कर मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाता है।
मोनोकल्चर खेती :
- पोषक तत्वों की कमी : एक ही फसल की बार-बार खेती से मिट्टी में विशिष्ट पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
- जैव विविधता की कमी : मोनोकल्चर खेती से मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की विविधता घटती है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं।
वनों की कटाई और भूमि उपयोग परिवर्तन :
- मृदा संरक्षण की हानि : वनों की कटाई से मिट्टी की संरचना और उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- प्राकृतिक प्रक्रियाओं में विघटन : वनस्पति हटाने से प्राकृतिक मिट्टी सुधार प्रक्रिया जैसे पत्तियों का अपघटन रुक जाता है।
अत्यधिक चराई :
- मिट्टी संकुचन : अत्यधिक चराई से मिट्टी संकुचित होती है, जिससे पानी की अवशोषण क्षमता घटती है और कटाव बढ़ता है।
- वनस्पति आवरण का नुकसान : चराई से पौधों की जड़ों का आवरण कमजोर होता है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता पर असर पड़ता है।
जलवायु परिवर्तन :
- चरम मौसम घटनाएँ : बाढ़, सूखा और अनियमित वर्षा जैसी घटनाओं से मिट्टी में कटाव और पोषक तत्वों की हानि होती है।
- तापमान और नमी तनाव : बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा से मिट्टी की नमी घटती है, जिससे उसकी संरचना और उत्पादकता प्रभावित होती है।
कीटनाशक और शाकनाशी का अत्यधिक उपयोग :
- मृदा सूक्ष्म जीवों पर प्रभाव : रासायनिक कीटनाशक मिट्टी के लाभकारी सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं, जो उर्वरता बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं।
- जैव विविधता में कमी : यह रसायन मिट्टी की जैव विविधता को घटा देते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता में दीर्घकालिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
जलजमाव :
- खराब जल निकासी : खराब जल निकासी या सिंचाई से जलभराव होता है, जिससे मिट्टी में विषाक्त पदार्थ और लवण जमा होते हैं, और यह खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाती है।
निष्कर्ष :
- मिट्टी का स्वास्थ्य कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत में मिट्टी का क्षरण, पोषक तत्वों का असंतुलन और जलवायु परिवर्तन इसकी उत्पादकता को प्रभावित कर रहे हैं। सरकारी योजनाएं जैसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए संतुलित उर्वरक, जल संरक्षण और प्रभावी सिंचाई को प्राथमिकता देते हैं। रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक प्रयोग, मोनोकल्चर खेती और अनुचित सिंचाई जैसे मुद्दों का समाधान करना मिट्टी की उत्पादकता को पुनः स्थिर करने के लिए आवश्यक है। इसके साथ ही, कृषि वानिकी, फसल चक्र और जैविक खेती जैसी स्थायी प्रथाएं जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में सहायक हो सकती हैं।
स्त्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।
Download Plutus IAS Current Affairs HINDI 21st Nov 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1 . निम्नलिखित में से किस सरकारी योजना का उद्देश्य भारत में जल-उपयोग दक्षता में सुधार करना और मिट्टी के लवणीकरण को कम करना है?
A. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
B. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
C. राष्ट्रीय वाटरशेड प्रबंधन परियोजना
D. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में मृदा क्षरण विभिन्न कारकों के कारण होता है, जिनमें रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। इन कारकों का विश्लेषण करते हुए मिट्टी के कटाव और उर्वरता हानि को कम करने के लिए दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15)
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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