समानता का प्रश्न : घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का दुरुपयोग बनाम धारा 498A

समानता का प्रश्न : घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का दुरुपयोग बनाम धारा 498A

( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 1 के अंतर्गत ‘ भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ , सामाजिक न्याय , महिलाओं से संबंधित मुद्दे , लैंगिक न्याय से संबंधित कानून की आवश्यकता , घरेलू – हिंसा से संबंधित कानूनों का दुरुपयोग ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 , भारतीय दंड संहिता की धारा 498A , सर्वोच्च न्यायालय , भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 84, संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध ’ खंड से संबंधित है। ) 

 

खबरों में क्यों ?

 

 

  • हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A (अब भारतीय न्याय संहिता) और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, भारत में सबसे अधिक दुरुपयोग किए जाने वाले कानूनों में शामिल हैं।
  • भारत में विवाहित महिलाओं के खिलाफ हो रही क्रूरता और उत्पीड़न को रोकने के लिए सन 1983 में धारा 498A को लागू किया गया था। 
  • भारत में लागू घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है। हालांकि, इन कानूनों के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं, जिससे सर्वोच्च न्यायालय ने इन पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई है।
  • इस कानून के संदर्भ में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि इस कानून का दुरुपयोग इसका उद्देश्य अमान्य नहीं करता, लेकिन इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

 

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A : 

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 498A का प्रावधान विवाहित महिलाओं को पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के शिकार होने से बचाने के लिए 1983 में लागू किया गया था। 

 

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत प्रावधान :

  • दंड : इस अपराध के लिए दोषी व्यक्ति को तीन साल तक की कारावास की सजा दी जा सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • क्रूरता की परिभाषा : इसमें जानबूझकर किए गए ऐसे कार्य शामिल हैं, जो किसी महिला को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य (मानसिक या शारीरिक) को गंभीर नुकसान पहुंचाने का जोखिम उत्पन्न करते हैं।
  • शिकायत दर्ज करने का अधिकार : भारत में इस कानून के तहत शिकायत अपराध से पीड़ित महिला या उसके रक्त – संबंधी , विवाह या दत्तक ग्रहण संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा दर्ज की जा सकती है और यदि पीड़ित महिला का ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं है, तो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित या नामित कोई भी लोक सेवक शिकायत दर्ज करा सकता है
  • समय सीमा : कथित घटना के तीन वर्ष के भीतर शिकायत दर्ज हो जाना चाहिए।
  • संज्ञेय और गैर-जमानती : भारत में यह अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है, जिसका अर्थ है कि अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) : भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 84 इसी प्रावधान से संबंधित है, जिसमें समान उद्देश्यों के तहत उपाय प्रदान किए गए हैं।

 

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 का परिचय और उद्देश्य :

 

  1. घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 भारत की संसद् द्वारा पारित एक अधिनियम है जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करना है और पीड़ित महिलाओं को विधिक सहायता / कानूनी सहायता उपलब्ध कराना है। 
  2. भारत में यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुआ।
  3. घरेलू हिंसा की परिभाषा : इस अधिनियम में घरेलू हिंसा को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, यौनिक या लैंगिक, मौखिक और आर्थिक दुर्व्यवहार को घरेलू हिंसा की श्रेणी में रखता है। इसमें किसी महिला के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाना, धमकी देना, उत्पीड़न करना और संसाधनों से वंचित करना भी शामिल है।
  4. दायरा और कवरेज : इस अधिनियम के तहत सभी उम्र की महिलाएँ आती हैं, चाहे वह पत्नी, माता, बहन, बेटियाँ या लिव-इन पार्टनर हों। यह उन्हें उनके पति, पुरुष साथी, रिश्तेदारों या घर के अन्य सदस्यों द्वारा की जाने वाली हिंसा से बचाता है।
  5. निवास का अधिकार : यह अधिनियम महिलाओं को साझा घर में रहने का अधिकार प्रदान करता है, चाहे वह संपत्ति पर उनका कानूनी स्वामित्व हो या न हो।
  6. संरक्षण आदेश : पीड़ित महिलाएँ न्यायालय से संरक्षण आदेश प्राप्त कर सकती हैं, जो दुर्व्यवहार को रोकने और पीड़िता को उसके कार्यस्थल या निवास में प्रवेश करने से रोकने में मदद करता है।
  7. परामर्श और सहायता सेवाएँ : इस अधिनियम के तहत सुरक्षा चाहने वाली महिलाओं के लिए विधिक सहायता, चिकित्सा सुविधाएँ, और आश्रय गृह जैसी सहायक सेवाएँ प्रदान करने का प्रावधान अनिवार्य किया गया है।
  8. मौद्रिक राहत और मुआवजा : इस अधिनियम के तहत महिलाओं को घरेलू हिंसा से होने वाली क्षति (चिकित्सा व्यय, आय की हानि, आदि) के लिए वित्तीय मुआवज़ा मांगने का अधिकार दिया गया है। इसमें न्यायालय पीड़िता के भरण-पोषण के भुगतान का भी आदेश दे सकता है।
  9. त्वरित न्यायिक प्रक्रिया : इस अधिनियम में घरेलू हिंसा के मामलों के समाधान के लिए समयबद्ध प्रक्रिया सुनिश्चित की गई है। इसके तहत मजिस्ट्रेटों को 60 दिनों के भीतर शिकायतों का निपटारा करना आवश्यक है ताकि पीड़िता को समय पर राहत और न्याय मिल सके।
  10. गैर-सरकारी संगठनों (NGO) की भूमिका : यह अधिनियम गैर सरकारी संगठनों और महिला संगठनों को शिकायत दर्ज करने और पीड़ितों को सुरक्षा और सहायता प्रदान करने में मदद करने की अनुमति देता है।

 

घरेलू हिंसा में योगदान देने वाले प्रमुख कारक : 

 

 

घरेलू हिंसा में योगदान देने वाले कारक निम्नलिखित हैं – 

  1. सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड : कई समाजों में घरेलू हिंसा को मौन स्वीकृति दी जाती है, खासकर जब यह निजी स्थानों में होती है। सांस्कृतिक मान्यताएँ महिलाओं को अपनी बात रखने या मदद मांगने से हतोत्साहित करती हैं, जिससे दुर्व्यवहार का चक्र जारी रहता है।
  2. पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना : पितृसत्तात्मक मानदंडों की गहरी जड़ें लैंगिक असमानता को बढ़ावा देती हैं, जिससे पुरुषों का वर्चस्व और महिलाओं पर नियंत्रण मजबूत होता है। इस कारण घरेलू हिंसा को अधिकार जताने का एक साधन मान लिया गया है। इससे घरों में अधिकार जताने के साधन के रूप में हिंसा सामान्य बन गई है।
  3. परिवार में पुरुष सदस्यों पर आर्थिक निर्भरता : महिलाएँ जब आर्थिक रूप से पुरुष सदस्यों पर निर्भर होती हैं, तो अक्सर उन्हें घरेलू हिंसा सहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। आर्थिक स्वतंत्रता की कमी उन्हें अपमानजनक रिश्तों को छोड़ने या कानूनी सहायता लेने में सीमित कर देती है।
  4. मनोवैज्ञानिक कारक : क्रोध प्रबंधन की समस्याएँ और अनसुलझे आघात व्यक्तियों को परिवार के सदस्यों के प्रति हिंसक व्यवहार करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। दुर्व्यवहार करने वाले लोग अपने कार्यों को नियंत्रण और अधिकार की विकृत धारणाओं के माध्यम से उचित ठहरा सकते हैं।
  5. दहेज और विवाह से असंतुष्टि के कारण होने वाले वैवाहिक विवाद : दहेज से संबंधित हिंसा घरेलू हिंसा का एक महत्वपूर्ण कारक है।  दहेज की मांग या विवाह से असंतुष्टि के कारण होने वाले विवाद अक्सर महिलाओं के विरुद्ध भावनात्मक या शारीरिक हिंसा का कारण बनते हैं।
  6. मादक द्रव्यों का सेवन : शराब और मादक औषधियों का सेवन घरेलू हिंसा में महत्वपूर्ण योगदान देता है। नशे में धुत्त व्यक्ति आक्रामक व्यवहार कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों में शारीरिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार हो सकता है।
  7. शिक्षा और जागरूकता का अभाव : सामान्य तौर पर लोगों में विधिक अधिकारों और सहायता तंत्र के संबंध में सीमित शिक्षा और जागरूकता की कमी घरेलू हिंसा को बढ़ावा देती है।
  8. हिंसा का अंतर-पीढ़ी संचरण : अपने घरों में घरेलू हिंसा को देखने वाले बच्चे बड़े होकर इस व्यवहार को दोहराने की अधिक संभावना रखते हैं, जिससे घरेलू हिंसा का चक्र पीढ़ियों तक चलता रहता है।
  9. कमज़ोर कानून प्रवर्तन और न्यायिक विलंब : अप्रभावी कानून प्रवर्तन या कानून प्रवर्तन की कमी और विलंबित न्याय घरेलू हिंसा की पुनरावृत्ति में योगदान देते हैं। पीड़ित अक्सर प्रतिशोध के भय या व्यवस्था में अविश्वास के कारण विधिक सहायता लेने से हतोत्साहित होते हैं।

 

घरेलू हिंसा के तहत प्रदत्त कानूनी उपायों का दुरुपयोग कैसे किया जाता है ?

  1. तत्काल गिरफ्तारी और प्रारंभिक जाँच का अभाव : धारा 498A एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है। धारा 498A के तहत, बिना पूर्व जांच के तत्काल गिरफ्तारी संभव है, जिसका दुरुपयोग अभियुक्त पर दबाव बनाने के लिए किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप अनुचित तरीके से हिरासत में लिया गया या दोष सिद्ध होने से पहले ही आरोपी और उसके परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचता है।
  2. व्यक्तिगत लाभ हेतु झूठे आरोप : घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 और धारा 498A का कभी-कभी दुरुपयोग किया जाता है, जिसके तहत पति और उनके परिवारों को परेशान करने के लिए झूठी शिकायतें दर्ज की जाती हैं। इन प्रावधानों का उपयोग व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए या वैवाहिक विवादों में लाभ उठाने के लिए किया जाता है, जिसमें संपत्ति के निपटान, रखरखाव के दावे या हिरासत के प्रति लड़ाई शामिल होते हैं।
  3. वित्तीय समझौते के लिए दबाव : झूठे मामलों का उपयोग पतियों को वित्तीय समझौते करने या गुज़ारा भत्ता देने के लिए मजबूर करने में किया जाता है। गिरफ्तारी या लंबी कानूनी लड़ाई के भय से प्रायः आरोपी अनुचित मांगों को मानने के लिए मजबूर हो जाता है।
  4. अभियुक्त को सामाजिक और मनोवैज्ञानिक क्षति : घरेलू हिंसा के आरोपों से संबंधित कलंक अभियुक्त की सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसिक स्वास्थ्य और पेशेवर जीवन को अपूरणीय क्षति पहुँचा सकता है। यदि आरोपी को बरी भी कर दिया जाता है, तो भी आरोपों से संबंधित नकारात्मक धारणा के कारण उसे दीर्घकालिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
  5. दुरुपयोग पर न्यायिक टिप्पणियाँ : भारत में विभिन्न न्यायालयों ने धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम के दुरुपयोग को स्वीकार किया है, और इसमें नीतिगत सुधारों की मांग की है, जिसमें गिरफ्तारी से पहले उचित जांच की आवश्यकता भी शामिल है। घरेलू हिंसा एक जटिल सामाजिक समस्या है, जिसमें कई कारक शामिल हैं। इसके प्रभावी समाधान के लिए सामाजिक, आर्थिक और कानूनी सुधारों की अत्यंत आवश्यकता है।

 

समाधान / आगे की राह : 

 

 

  1. विधि के अंतर्गत जमानती और गैर-संज्ञेय अपराधों के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की जरूरत : जमानती अपराध : ऐसे अपराध जिनमें आरोपी को जमानत मिल सकती है। उदाहरण: चोरी, धोखाधड़ी। गैर-संज्ञेय अपराध : ऐसे अपराध जिनमें पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी नहीं कर सकती। उदाहरण: हत्या, बलात्कार।
  2. गिरफ्तारी से पहले गहन जाँच की उचित प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता : किसी भी गिरफ्तारी से पहले पुलिस को गहन जाँच की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए ताकि निर्दोष व्यक्तियों को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए।
  3. महिलाओं को हुए नुकसान और आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू करना : महिलाओं को हुए नुकसान की सीमा को ध्यान में रखते हुए, परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी में आनुपातिकता का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए।
  4. मिथ्या और भ्रामक शिकायतों के लिए जिम्मेदार ठहराने और जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता : मिथ्या और भ्रामक शिकायतें करने वाले व्यक्तियों को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। जिससे घरेलू हिंसा से संबंधित कानून का दुरुपयोग कम – से – कम हो सके और निर्दोष व्यक्ति को बचाया जा सके।
  5. लैंगिक आधारित न्यायपूर्ण कानून को बढ़ावा देने की जरूरत : भारत को ऐसे कानून लागू करने चाहिए जो लैंगिक न्याय को बढ़ावा दें, जिसमें पुरुषों के विरुद्ध घरेलू हिंसा को भी मान्यता दी जाए। इस प्रकार के कानून देश में लैंगिक आधार पर समानता को बढ़ावा देंगे और लैंगिक भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक और कानूनी अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
  6. समावेशी समाज के लिए विधिक ढाँचे की स्थापना अत्यंत जरूरी : किसी भी प्रकार के लैंगिक आधार पर होने वाले भेदभाव, हिंसा और आर्थिक असमानताओं से निपटने के लिए एक समावेशी विधिक ढाँचे की स्थापना की अत्यंत आवश्यक है, जो समावेशी समाज के निर्माण में सहायक हो।

 

स्रोत – पीआईबी एवं द हिन्दू।

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प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. निम्नलिखित स्थितियों पर विचार कीजिए।

  1. किसी महिला के साथ मौखिक और आर्थिक दुर्व्यवहार करना।
  2. शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करना।
  3. लैंगिक या यौनिक पहचान के आधार पर भेदभाव करना। 
  4. किसी महिला के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाना, धमकी देना, उत्पीड़न करना और संसाधनों से वंचित करना।

उपर्युक्त स्थितियों में से किन स्थितियों को घरेलू हिंसा के तहत परिभाषित किया किया गया है ? 

A. केवल 1 और 3 

B. केवल 2 और 4 

C. इनमें से कोई नहीं। 

D. उपरोक्त सभी। 

उत्तर – D

व्याख्या : 

  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 में घरेलू हिंसा को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, जिसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, यौनिक या लैंगिक, मौखिक और आर्थिक दुर्व्यवहार को घरेलू हिंसा की श्रेणी में रखता है। इसमें किसी महिला के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाना, धमकी देना, उत्पीड़न करना और संसाधनों से वंचित करना भी शामिल है।

 

 

मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न : 

 

Q.1. घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 और धारा 498A के दुरुपयोग के संदर्भ में, लैंगिक समानता की प्राप्ति हेतु लैंगिक तटस्थ कानूनों के लागू करने से संबंधित संभावित लाभों और चुनौतियों पर सामाजिक और कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए विस्तृत चर्चा करें। ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )

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