25 Sep अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति का फैसला : भारत के लिए अवसर या चुनौती?
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 3 के अंतर्गत ‘ भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना , संसाधनों की प्रगति और विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय , वैश्विक आर्थिक रुझानों पर भारत की मौद्रिक नीति प्रतिक्रिया ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ भारत पर वैश्विक बाजारों का प्रभाव , बैंकिंग क्षेत्र में ब्याज दर का प्रभाव , रोजगार बनाम मुद्रास्फीति , फिलिप्स वक्र ’ खंड से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) ने आर्थिक गतिविधियों और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपने बेंचमार्क ब्याज दर में 50 आधार अंकों की कटौती की है।
- वैश्विक स्तर पर किसी भी अर्थव्यवस्था में कम ब्याज दरें उधार लेने और खर्च करने को प्रोत्साहित करती हैं, जबकि उच्च ब्याज दरें विकास में बाधा डाल सकती हैं।
- अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी प्रमुख ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट (आधार अंकों) की कटौती की है, जो पिछले 4 वर्षों में पहली बार हुई है।
- कोविड-19 के दौरान आपातकालीन दर कटौतियों के अलावा, अमेरिकी केंद्रीय बैंक की दर निर्धारण समिति ‘फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC)’ ने 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भी 50 बेसिस पॉइंट (आधार अंकों ) की कटौती की थी।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व (फेड) क्या है ?
- यूएस फेडरल रिजर्व, जिसे आमतौर पर फेड के नाम से जाना जाता है, संयुक्त राज्य अमेरिका की केंद्रीय बैंकिंग प्रणाली है। सन 1913 ई. में स्थापित इस संयुक्त राज्य अमेरिका की केंद्रीय बैंकिंग प्रणाली का मुख्य कार्य निम्नलिखित है –
- मौद्रिक नीति का निर्धारण और प्रबंधन करना : इसका प्रमुख कार्य आर्थिक स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने के लिए देश की मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दरों का प्रबंधन करना है ।
- बैंकों और वित्तीय संस्थानों का विनियमन और पर्यवेक्षण करना : यह बैंकों और वित्तीय संस्थानों का विनियमन और पर्यवेक्षण भी करता है, ताकि उनकी सुरक्षा और सुदृढ़ता सुनिश्चित हो सके।
- वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना तथा मध्यम दीर्घकालिक ब्याज दरें हासिल करना : फेड का मुख्य उद्देश्य सरकार और वित्तीय संस्थाओं को बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना तथा अधिकतम रोजगार, स्थिर कीमतें और मध्यम दीर्घकालिक ब्याज दरें हासिल करना है।
अमेरिकी फेड की मौद्रिक नीति :
- अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति का संचालन भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य केंद्रीय बैंकों के समान ही होता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था में ऋण की उपलब्धता और लागत को नियंत्रित करके रोजगार और मुद्रास्फीति को प्रभावित करना होता है।
- अमेरिकी फेड का वैधानिक अधिदेश अधिकतम रोजगार और स्थिर कीमतों को बढ़ावा देना है, जिसे आमतौर पर दोहरे अधिदेश के रूप में जाना जाता है।
- फेड की मौद्रिक नीति का प्राथमिक उपकरण संघीय निधि दर (फेडरल फंड्स रेट) है, जिसमें होने वाले परिवर्तन अन्य ब्याज दरों को प्रभावित करते हैं।
- अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति का यह दर घरों और व्यवसायों के लिए उधार लेने की लागत और व्यापक वित्तीय स्थितियों पर भी प्रभाव डालती है।
फेड दर कटौती क्या होता है ?
- फेड रेट कट (कटौती) का अर्थ है फेडरल रिजर्व द्वारा फेडरल फंड्स रेट को कम करने का निर्णय। यह वह ब्याज दर है जिस पर बैंक एक-दूसरे को रात भर के लिए पैसे उधार देते हैं। फेड रेट कट के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित है –
- उद्देश्य : ब्याज दरों में कटौती का उद्देश्य उधार लेना सस्ता करके आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करना, उपभोक्ता खर्च और व्यावसायिक निवेश को बढ़ावा देना है।
- प्रभाव : कम ब्याज दरों से ऋण में वृद्धि, उपभोक्ता खर्च में वृद्धि और रोजगार सृजन हो सकता है। साथ ही, यह अपस्फीति से निपटने में भी मदद करता है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में कटौती क्यों किया है ?
- अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने हाल ही में ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है, जो कोविड-19 महामारी के बाद पहली बार किया गया है। यह निर्णय कई महत्वपूर्ण कारणों से लिया गया है। जो निम्नलिखित है –
- बढ़ती बेरोजगारी के दौर में रोजगार सृजन से संबंधित चिंताएं : बढ़ती बेरोजगारी (अगस्त 2024 में 4.2%) ने संकेत दिया कि उच्च दरें नौकरी की वृद्धि को नुकसान पहुंचा रही हैं, जिससे रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
- स्थिर कीमतें और अधिकतम रोजगार के अवसरों को स्थिर बनाए रखने के लिए दोहरा अधिदेश : फेड का लक्ष्य स्थिर कीमतें और अधिकतम रोजगार के अवसरों को स्थिर बनाए रखना है। इसलिए दर में कटौती इन लक्ष्यों को संतुलित करने में मदद करती है।
- अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए : महामारी के बाद की वसूली वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू में दरों में कटौती की गई थी। बाद में, बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटने के लिए दरों को बढ़ाया गया।
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए : मुद्रास्फीति में कमी लाने के लिए वर्ष 2023 के मध्य तक मुद्रास्फीति 2% के लक्ष्य के निकट स्थिर हो गई थी।
- ब्याज दरों में कटौती के निहितार्थ : कम ब्याज दरें ऋण को सस्ता बनाती हैं, जिससे व्यापार विस्तार और रोजगार को बढ़ावा मिलता हैऔर इससे मुद्रास्फीति पर नियंत्रण बना रहता है।
फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती का वैश्विक प्रभाव :
- फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दर में कमी से अमेरिका में विकास को अधिक प्रोत्साहन मिलेगा, जो वैश्विक विकास के लिए सकारात्मक संकेत हो सकता है।
- किसी अर्थव्यवस्था में ब्याज दर में कमी आने पर उधार लेना सस्ता हो जाता है, जिससे मांग में वृद्धि होने के साथ ही व्यवसायों के विस्तार को प्रोत्साहन मिलता है।
- अमेरिकी शेयर बाज़ार में निवेश करने वाले विदेशियों पर फेड दर में कटौती एक सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है क्योंकि निम्न ब्याज दरों से शेयर की कीमतों में वृद्धि होती है।
- डॉलर से संबद्ध मुद्राओं वाले केंद्रीय बैंक प्राय: अपने मौद्रिक दर निर्णयों को फ़ेड से जोड़ते हैं, जिससे उन देशों के उधारकर्ताओं पर भी इसका प्रभाव होता है।
- वस्तुओं एवं सेवाओं की बेहतर मांग से मजदूरी (पारिश्रमिक) में वृद्धि होती है, जो विकास चक्र को पुनर्जीवित करती है।
- यह कदम विशेष रूप से तब अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है जब चीन में रियल एस्टेट संकट और आर्थिक मंदी के संकेत दिख रहे हैं।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर में कटौती का भारत पर प्रभाव :
- भारतीय रिजर्व बैंक की प्रतिक्रिया : अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों के समान ही भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी भविष्य में दर में कटौती की संभावना कुछ सीमा तक अमेरिकी फेड द्वारा दरों में कटौती के निर्णय पर आधारित होती है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने आखिरी बार मई 2020 में रेपो दर में 40 आधार अंकों की कटौती करके इसे 4% कर दिया था। उसके बाद से भारत के केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति से निपटने के लिए रेपो दर में 250 अंकों की बढ़ोतरी करके इसे 6.5% कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति दर का लक्ष्य 4±2 निर्धारित किया है।
- आरबीआई को अपनी दरें समायोजित करने के लिए बाध्य होना : भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी दरें समायोजित करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी रहे और विदेशी निवेश आकर्षित हो सके।
- विदेशी निवेश में वृद्धि होना : अमेरिका में कम ब्याज दरें वैश्विक निवेशकों को भारत की ओर आकर्षित कर सकती हैं, जिससे भारतीय बाजारों में विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ सकता है।
- निर्यात और आयात का प्रभावित होना : निर्यातकों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि मजबूत रुपया भारतीय उत्पादों को विदेशी बाजारों में महंगा बना सकता है। वहीं, आयातकों को मजबूत रुपए से लाभ होगा क्योंकि आयात सस्ता हो जाएगा।
- मुद्रा विनिमय दरों में बदलाव होना : अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में मजबूती की संभावना है, जिससे आयात सस्ता हो सकता है और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने में मदद मिल सकती है।
- रोजगार के अवसर का बढ़ना और आर्थिक विकास होना : कम उधार लागत भारत में निवेश और आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं और आर्थिक विकास को गति मिल सकती है।
- कैरी ट्रेड अपील : निवेशक भारत की ऊंची ब्याज दरों से लाभ उठाने के लिए अमेरिका में कम दरों पर उधार ले सकते हैं, जिससे भारतीय बाजारों में निवेश बढ़ सकता है।
- इस प्रकार, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर में कटौती का भारत पर व्यापक और विविध प्रभाव हो सकता है, जो आर्थिक विकास, निवेश, और मुद्रा विनिमय दरों पर निर्भर करेगा।
आगे की राह :
पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहित करना :
- भारत को वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता है। इसके लिए व्यापार करने में आसानी के उपायों को लागू करना अत्यंत आवश्यक है। यह सुनिश्चित करेगा कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में सहजता से प्रवेश कर सकें और निवेश कर सकें।
उपाय :
- बुनियादी ढांचे का विकास करना : सड़क, रेल, बंदरगाह और हवाई अड्डों का उन्नयन करके परिवहन, ऊर्जा और संचार जैसे बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा देना, ताकि उत्पादन और वितरण की प्रक्रिया को सुदृढ़ किया जा सके।
- प्रौद्योगिकी और विनिर्माण में नवाचार में निवेश को प्रोत्साहित करना : नवीनतम तकनीकों को अपनाना और अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना तथा उभरती हुई प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्रोत्साहित करना, जैसे कि डेटा एनालिटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और स्वचालन, जिससे विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा बढ़ सके।
- व्यवसाय से संबंधित सरकारी नीतियों का सरलीकरण करना : व्यवसाय से संबंधित सरकारी नीतियों, नियमों और विनियमों को सरल बनाना, जिससे व्यवसाय शुरू करना और चलाना आसान हो सके।
- कम ब्याज दरों का लाभ उठाकर, भारत को अपनी पूंजी लागत को कम करने और अधिक निवेश आकर्षित करने की दिशा में आगे बढ़ना : वैश्विक स्तर पर कम अमेरिकी ब्याज दरों का लाभ उठाकर, भारत को अपनी पूंजी लागत को कम करने और अधिक निवेश आकर्षित करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।
मौद्रिक स्थिरता बनाए रखना :
- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को वैश्विक आर्थिक रुझानों का बारीकी से विश्लेषण करने की आवश्यकता है, लेकिन इसके साथ ही घरेलू आर्थिक स्थितियों को प्राथमिकता भी देनी चाहिए। मौद्रिक नीति का उद्देश्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना, वित्तीय स्थिरता को बनाए रखना और निरंतर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि को सुनिश्चित करना है।
उपाय :
- मुद्रास्फीति पर नियंत्रण : आरबीआई को ऐसे उपायों को लागू करना चाहिए जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सहायक हों, जैसे कि ब्याज दरों का समुचित समायोजन।
- वित्तीय प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सख्त निगरानी और नियामक उपायों को लागू करना : वित्तीय प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सख्त निगरानी और नियामक उपायों को लागू करना आवश्यक है।
- निरंतर विकास को सुनिश्चित करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि और ग्रहणीय विकास को प्रोत्साहन देना : भारत को अपनी घरेलू उपभोक्ता मांग को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त नीतियों का निर्माण करना होगा, जिससे निरंतर आर्थिक विकास के लिए नीतिगत समर्थन को सुनिश्चित किया जा सके।
निष्कर्ष :
- भारत को विदेशी निवेश आकर्षित करने और मौद्रिक स्थिरता बनाए रखने के लिए संतुलित और रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इन उपायों के माध्यम से भारत न केवल विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकेगा, बल्कि मौद्रिक स्थिरता को भी बनाए रख सकेगा। यह न केवल आर्थिक विकास को गति देगा, बल्कि भारत को एक मजबूत वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा।
स्त्रोत – इंडियन एक्सप्रेस एवं पीआईबी।
Download plutus ias current affairs Hindi med 25th Sep 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारतीय रिजर्व बैंक की नीति पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर नीति का क्या प्रभाव हो सकता है?
कथन 1. अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर नीति के कारण भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी दरें बढ़ानी पड़ सकती हैं।
कथन 2. अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर नीति के कारण भारतीय रिजर्व बैंक को दरें घटानी पड़ सकती हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1
B. केवल 2
C. न तो 1 और न ही 2
D. 1 और 2 दोनों
उत्तर – D
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति के संदर्भ में, क्या आप यह मानते हैं कि स्थिर जीडीपी वृद्धि और कम मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक मजबूत स्थिति में रखा है? तर्कसंगत मत प्रस्तुत करें। (UPSC CSE – 2016)
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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