05 Nov सर्वोच्च न्यायालय : खराब चिकित्सीय परिणामों के लिए डॉक्टरों को लापरवाह नहीं ठहराया जा सकता
( यह लेख यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा के मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र – 2 के अंतर्गत ‘ शासन एवं राजव्यवस्था , भारत में सार्वजानिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे , नीरज सूद और अन्य बनाम जसविंदर सिंह (नाबालिग) और अन्य का मामला ’ खंड से और यूपीएससी के प्रारंभिक परीक्षा के अंतर्गत ‘ सर्वोच्च न्यायालय , भारत में चिकित्सकीय लापरवाही , रेस इप्सा लोक्विटर , BNS की धारा 106(1) , बोलम बनाम फ्रिएर्न अस्पताल प्रबंधन समिति (2005) , जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य (2006) , कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हॉस्पिटल (2010) ’ से संबंधित है।)
खबरों में क्यों ?
- हाल ही में, 25 अक्टूबर 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि चिकित्सा पेशेवरों को केवल असफल उपचार परिणामों के कारण चिकित्सकीय लापरवाही का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय नीरज सूद और अन्य बनाम जसविंदर सिंह (नाबालिग) और अन्य के मामले में आया, जिसमें न्यायमूर्ति पामिदीघंतम श्री नरसिम्हा और पंकज मित्तल की बेंच ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के फैसले को पलट दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चिकित्सा पेशेवरों को उनके कार्यों के परिणामस्वरूप लापरवाही का दोषी ठहराने से पहले यह देखना आवश्यक है कि क्या उपचार प्रक्रिया में कोई वास्तविक त्रुटि या लापरवाही हुई है, या यदि परिणाम केवल अप्रत्याशित या असफल थे, तो उन्हें इसके लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया यह निर्णय भारत में चिकित्सा पेशेवरों के अधिकारों की रक्षा करता है और चिकित्सा कार्य में उचित मानकों का पालन करने की आवश्यकता को भी स्पष्ट करता है।
मामले की पृष्ठभूमि :
- इस मामले में एक डॉक्टर के खिलाफ मेडिकल लापरवाही का आरोप था, जो 1996 में एक नाबालिग के प्टोसिस सर्जरी (पलक के झुकाव को सुधारने के लिए) के दौरान कथित तौर पर लापरवाही बरते थे।
- बच्चे के पिता ने आरोप लगाया कि इस सर्जरी के कारण बच्चे की आंख की स्थिति और भी बिगड़ गई, और इसके परिणामस्वरूप उसे चिकित्सा खर्च, मानसिक तनाव और भविष्य में होने वाली संभावित आमदनी के नुकसान के लिए मुआवजा दिया जाए।
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने मामले की सुनवाई के बाद डॉक्टर के खिलाफ निर्णय दिया और उन्हें मेडिकल लापरवाही का दोषी ठहराया था।
चिकित्सकीय लापरवाही से संबंधित प्रमुख सिद्धांत और कानूनी परीक्षण :
- बोलम परीक्षण (Bolam Test) : सर्वोच्च न्यायालय ने “बोलम परीक्षण” को यह निर्धारित करने का मानक माना है कि चिकित्सक ने लापरवाही की है या नहीं। इस परीक्षण के अनुसार, यदि चिकित्सक ने चिकित्सा के एक जिम्मेदार हिस्से द्वारा स्वीकृत विधियों का पालन किया है, तो उसे लापरवाही का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, भले ही वह अन्य विशेषज्ञ या भिन्न तरीके से कार्य करें।
- सबूत का बोझ (Burden of Proof) : लापरवाही का आरोप साबित करने की जिम्मेदारी शिकायतकर्ता (रोगी) की होती है। यदि वह यह साबित नहीं कर पाता कि चिकित्सक के कार्य चिकित्सा मानकों से भिन्न थे, तो चिकित्सक को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- रेस इप्सा लोक्विटर (Res Ipsa Loquitur) : “रेस इप्सा लोक्विटर” एक लैटिन वाक्य है, जिसका अर्थ है “बात खुद बोलती है”। यह सिद्धांत उन मामलों में लागू होता है, जहां लापरवाही इतनी स्पष्ट हो कि अतिरिक्त साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि केवल परिणाम (जैसे रोगी की स्थिति का बिगड़ना) लापरवाही का प्रमाण नहीं हो सकता है।
- चिकित्सकीय लापरवाही (Medical Negligence) : चिकित्सकीय लापरवाही तब होती है जब चिकित्सक रोगी को उचित देखभाल प्रदान करने में विफल रहता है, जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक या मानसिक नुकसान हो सकता है, कभी-कभी मृत्यु भी। अदालत ने यह भी कहा कि चिकित्सक को केवल इस कारण से लापरवाही का दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि रोगी ने उपचार के बाद अच्छा परिणाम नहीं दिखाया। उत्तरदायित्व तभी साबित होगा जब यह प्रमाणित हो कि चिकित्सक ने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए आवश्यक कौशल का प्रयोग नहीं किया। इस प्रकार, “रेस इप्सा लोक्विटर” सिद्धांत केवल उन मामलों में लागू होता है, जहां लापरवाही का स्पष्ट प्रमाण हो और केवल परिणामों के आधार पर लापरवाही का निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।
भारत में चिकित्सीय उपेक्षा के आवश्यक तत्त्व :
भारत में चिकित्सीय उपेक्षा के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं:
- विधिक कर्त्तव्य : चिकित्सा से संबंधित पेशेवर व्यक्ति या चिकित्सक को रोगी की उचित देखभाल करने का कर्त्तव्य विधिक कर्त्तव्य के अंतर्गत आता है।
- कानूनी दायित्व का उल्लंघन : चिकित्सक द्वारा यह कर्त्तव्य निभाने में किसी प्रकार की लापरवाही या चूक का होना आवश्यक है। कानूनी दायित्व का उल्लंघन होने पर ही उसे चिकित्सकीय लापरवाही माना जाता है।
- चिकित्सकीय लापरवाही के कारण रोगी को मानसिक नुकसान या हानि पहुँचना : चिकित्सकीय लापरवाही के कारण रोगी को शारीरिक या मानसिक नुकसान हुआ हो। रोगी को हुई चोट या हानि का स्पष्ट संबंध चिकित्सक द्वारा कर्त्तव्य के उल्लंघन से होना चाहिए।
भारत में चिकित्सीय उपेक्षा से संबंधित प्रमुख मामले :
- बोलम बनाम फ्रिएर्न अस्पताल प्रबंधन समिति (2005) : इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि चिकित्सीय उपेक्षा तब मानी जाती है जब चिकित्सक अपेक्षित मानकों का पालन नहीं करता। हालांकि, यदि उचित सावधानी बरती जाती है तो उसे उपेक्षा नहीं मानी जा सकती है।
- जैकब मैथ्यू बनाम पंजाब राज्य (2006) : इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने चिकित्सीय और आपराधिक उपेक्षा के बीच अंतर को भी स्पष्ट किया और उपेक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया: जब चिकित्सक या अन्य कोई व्यक्ति सामान्य देखभाल या कौशल का उपयोग करने में विफल रहता है, जिससे रोगी को शारीरिक या संपत्ति संबंधित नुकसान होता है।
- कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हॉस्पिटल (2010) : सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि उपेक्षा का मतलब है कुछ ऐसा करना या न करना, जो एक विवेकशील व्यक्ति करेगा या नहीं करेगा।
BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा का प्रभाव :
- कड़े दंड का प्रावधान : चिकित्सीय उपेक्षा के मामलों में कड़ा दंड लागू करने का मुख्य उद्देश्य ऐसे कृत्यों को रोकना है।
- चिकित्सक का कर्त्तव्य सुनिश्चित करना : चिकित्सक का प्रमुख कर्त्तव्य रोगी की देखभाल करना और उसे अधिकतम सुरक्षा प्रदान करना होता है।
- विधि के प्रति जागरूकता की कमी से उत्पन्न विधिक समस्याएं : रोगी को उपेक्षा के मामलों में न्याय प्राप्त करने के लिए अक्सर कठिनाई का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने अधिकारों को साबित करने का बोझ उठाना होता है और विधि के प्रति जागरूकता की कमी होती है।
- विधिक कार्रवाई के डर से चिकित्सकों पर दबाव का होना : कभी-कभी चिकित्सक विधिक कार्रवाई के डर से उचित निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं, जो रोगी को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा से संबंधित नई विधि :
- स्वास्थ्य देखभाल के मानकों को बेहतर बनाने के उद्देश्य से BNS के तहत चिकित्सीय उपेक्षा के मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।
- पहले, चिकित्सीय उपेक्षा की परिभाषा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304A के तहत दी जाती थी, लेकिन अब इसे BNS की धारा 106 में शामिल किया गया है।
- BNS के नवीनतम प्रावधानों के तहत चिकित्सीय उपेक्षा के लिए सजा की अवधि को बढ़ाकर अधिकतम पांच वर्ष कर दिया गया है।
- पंजीकृत चिकित्सा पेशेवर द्वारा की गई लापरवाही या गलत कार्य के लिए विशेष दंड का प्रावधान किया गया है, जो सामान्य दंड से कम और इस मामले में अधिकतम दो वर्ष की सजा हो सकती है।
- BNS के अनुसार, चिकित्सीय उपेक्षा के मामलों में अब अनिवार्य रूप से कारावास की सजा दी जाएगी।
भारत में चिकित्सीय उपेक्षा से संबंधित नियमों में BNS की धारा 106(1) क्या है ?
- BNS की धारा 106 के अंतर्गत उपेक्षा से संबंधित नियमों का विवरण दिया गया है।
- इसके खंड (1) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी जल्दबाजी या उपेक्षा के कारण होती है, जो गैर-इरादतन हत्या के दायरे में नहीं आती, तो संबंधित व्यक्ति को अधिकतम पांच वर्ष तक की कारावास सजा और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
- यदि कोई पंजीकृत चिकित्सा पेशेवर अपनी कार्यप्रणाली में लापरवाही करता है, तो उसे दो वर्ष तक की कारावास सजा और वित्तीय दंड का सामना करना पड़ेगा।
- इस उपधारा में स्पष्ट किया गया है कि “पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायी” वह व्यक्ति है, जिसके पास राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के तहत मान्यता प्राप्त चिकित्सा योग्यता है और जिसका नाम राष्ट्रीय या राज्य चिकित्सा रजिस्टर में दर्ज है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का प्रभाव और भविष्य की दिशा :
- भारत में चिकित्सा पेशेवरों के लिए इस सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय चिकित्सा पेशेवरों को लापरवाही के आधार पर किए जाने वाले निराधार दावों से सुरक्षा प्रदान करता है, विशेष रूप से तब जब मानक चिकित्सा प्रक्रियाओं का पालन करने के बावजूद जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि केवल प्रतिकूल परिणामों के आधार पर लापरवाही का आरोप नहीं लगाया जा सकता; इसके लिए स्पष्ट और ठोस प्रमाण की आवश्यकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के माध्यम से चिकित्सा पेशेवरों को यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे उचित देखभाल और कौशल का प्रयोग करें, लेकिन जब वे स्थापित चिकित्सा प्रोटोकॉल का पालन करते हैं, तो अप्रत्याशित परिणामों के लिए उन्हें कानूनी तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
- यह निर्णय डॉक्टरों के लिए कानूनी सुरक्षा को सुदृढ़ करता है, जिससे चिकित्सा पेशेवरों को व्यावहारिक और जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में संतुलित जवाबदेही का सामना करने में मदद मिलती है।
निष्कर्ष :
- भारत में सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय ने चिकित्सा पेशेवरों के खिलाफ लापरवाही के आरोपों को लेकर एक नई दृष्टि प्रस्तुत की है और स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। एक न्यायसंगत और प्रभावी कानूनी प्रणाली के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि दोनों, मरीज और डॉक्टर, की चिंताओं को समुचित रूप से संबोधित किया जाए।
स्त्रोत – इंडियन एक्सप्रेस एवं जनसत्ता।
Download plutus ias current affairs (HINDI) 5th Nov 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. भारत में चिकित्सा पेशेवरों की जिम्मेदारी और चिकित्सीय लापरवाही के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय ने किस महत्वपूर्ण पहलू पर जोर दिया है?
- चिकित्सा पेशेवरों की जिम्मेदारी केवल असफल उपचार परिणामों के लिए होगी।
- चिकित्सा पेशेवरों को केवल अप्रत्याशित परिणामों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
- चिकित्सा पेशेवरों को उनके कार्यों के लिए कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
- चिकित्सा पेशेवरों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके कार्य सही तरीके से किए गए हों, न कि केवल परिणामों पर ध्यान दिया जाए।
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा कथन सही है ?
A. केवल 1 और 3
B. केवल 2 और 4
C. इनमें से कोई नहीं।
D. उपर्युक्त सभी।
उत्तर – B
मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
Q.1. चर्चा कीजिए कि भारत में सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कि चिकित्सा पेशेवरों को केवल असफल उपचार परिणामों के आधार पर लापरवाही का दोषी नहीं ठहराया जा सकता, चिकित्सा पेशेवरों के अधिकारों की रक्षा और उनके कार्यों में मानक अनुपालन को सुनिश्चित करने में कितना प्रभावी होगा ? भारत में इस निर्णय का चिकित्सीय लापरवाही से संबंधित कानूनी चुनौतियों और मरीजों के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ( शब्द सीमा – 250 अंक – 15 )
Qualified Preliminary and Main Examination ( Written ) and Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) three times Of UPSC CIVIL SERVICES EXAMINATION in the year of 2017, 2018 and 2020. Shortlisted for Personality Test (INTERVIEW) of 64th and 67th BPSC CIVIL SERVICES.
M. A M. Phil and Ph. D From (SLL & CS) JAWAHARLAL NEHRU UNIVERSITY, NEW DELHI.
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